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- महिलाओं की दशा
Written by जनसत्ता: हाल में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की पांचवी रिपोर्ट में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं, मगर ऐसे मामलों में सहायता मांगने वाली औरतों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ चौदह फीसद महिलाएं घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में सहायता मांगती हैं। वर्ष 2005-06 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा चौबीस फीसद था।
वर्ष 2005-06 की रिपोर्ट में सहायता मांगने वाली महिलाओं की अधिक संख्या होने का एक कारण अक्टूबर, 2006 में लागू हुए 'घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005' कानून भी है, जिसमें घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के संरक्षण हेतु संरक्षण अधिकारी, आश्रय गृहों और ऐसे मामलों में पुलिस के कर्तव्यों को परिभाषित किया गया है। जब भी कोई नया कानून आता है, तो उसकी जानकारी लोगों तक पहुंचती है।
समय बीतने के साथ वह कानून चर्चा से बाहर हो गया और आज इस कानून की जानकारी के अभाव में घरेलू हिंसा सहने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि सरकार अपने राजनीतिक प्रचार-प्रसार पर तो करोड़ों रुपए खर्च करती है, मगर जनता को उसके अधिकारों और कानून से अवगत कराने के लिए उसके पास कोई योजना नहीं है।
आतंकियों ने कश्मीर को अस्थिर करने का तरीका बदल लिया है। जहां सेना, पुलिस या समूह उनके निशाने पर होते थे, अब एक-एक को लक्षित करके हत्याएं कर रहे हैं। उनका मुख्य लक्ष्य हिंदू समुदाय ही है। इसके पीछे आतंकियों का उद्देश्य नब्बे के दशक की पुनरावृत्ति करना है, जिसमें वे सफल तो नहीं हो सकते, किंतु कुछ समय के लिए हिंदुओं के मन में भय जरूर पैदा कर सकते हैं। खेद इस बात का है कि अनुच्छेद 370 समाप्त होने का लाभ घाटी के विस्थापित हिंदुओं को नहीं मिला। इसके लिए सरकार को कुछ व्यावहारिक उपाय करने होंगे।