सम्पादकीय

एक मां के बच्चे के प्रति सरोकार

Rani Sahu
6 May 2022 7:16 PM GMT
एक मां के बच्चे के प्रति सरोकार
x
मदर्स डे किसी एक दिन का मोहताज़ नहीं, लेकिन फिर भी हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे विश्व भर में मनाया जाता है

मदर्स डे किसी एक दिन का मोहताज़ नहीं, लेकिन फिर भी हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे विश्व भर में मनाया जाता है। वो क्षण याद है मुझे, जब मैं मां बनी। नन्हें-नन्हें हाथों का स्पर्श मेरे मन में उमड़ रही करुणामयी इच्छाओं को और पंख दे रहा था। एक तरफ मन धन्यवादी था तो दूसरी तरफ कई चिंताओं की तरफ ध्यान न चाहते हुए भी जा रहा था। चिंता एक नहीं बल्कि लंबी सी सूची पर उकेरे गए कई बिंदु थे, जिनका शायद मुझे समस्या के तौर पर नाम तो पता था लेकिन निवारण नहीं। सबसे पहले जन्म से पूर्व ही मेरे बच्चे की धर्म व जाति निर्धारित थी। उसे भी उसका सदस्य बनाकर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से उसकी रक्षा के नाम पर खड़ी हुई सेनाओं में सैनिक के तौर पर नियुक्त कर दिया जाएगा। जब वो पूछता है कि मां धर्म व जाति क्या होती है?

बेशक उसके समझदार होने तक मैं इस सवाल को टालती भी जाऊं, लेकिन स्कूल में उसकी एडमिशन होने पर फार्म में मोटे-मोटे अक्षरों पर पूछा गया वह सवाल, मुझे स्वयं इशारा करता है कि समय रहते उत्तर देना ही उचित है। ऐसा न हो कि वो आसपास के प्रश्नों में उलझकर सही उत्तर ही न जान पाए। इसलिए बचपन से ही मैंने देश प्रथम का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया है। पैदा होते ही मेरे बच्चे के आसपास की आबोहवा विचारों से प्रदूषित हो रही है या विकास के नाम पर विकसित हो रही सभ्यता के नाम पर धीरे-धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही है। अभी तो मैं कोशिश कर रही हूं कि अपना आंचल फैलाकर छनकर ही उसकी हवा उस तक पहुंचे। लेकिन कब तक, इसका जवाब मेरे पास भी नहीं है। मां के तौर पर चिंताओं के बीच मैं अपने बच्चे को प्रदूषित हवा, पानी और भोजन का प्रयोग करते हुए बस देख सकती हूं
बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए किए जा रहे अंधाधुंध विकास ने तो उनका वर्तमान भी खराब कर दिया है। जब मैं अपने छोटे से बच्चे को पानी के स्रोत कुएं, तालाब और बांवड़ी, सिर्फ किताबों में पढ़ाती हूं, जिनका आज अस्तित्व ही नहीं है। इसी कारण उसे ये पंक्तियां झूठी लगती हैं। उसके लिए पानी का स्रोत वाटर प्यूरीफायर है। उसके लिए पानी के ये स्रोत मात्र किताबों का एक चैप्टर है जिसे पढ़कर उसे अपनी परीक्षा पास कर अगली कक्षा में जाना है। सबसे बड़ी ग्लानि मुझे तब होती है जब मैं स्वयं यूरिया खाद से भरा भोजन पकाकर उसे खिलाती हूं। मां के तौर पर इससे ज्यादा दुःखदायी क्या हो सकता है? जिस भोजन से मेरे बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास सुनिश्चित होगा, वो ही दूषित है। यह चिंता सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि हर उस मां की होगी कि मैं अपने बच्चे के लिए स्वच्छ हवा, पानी और भोजन सुनिश्चित नहीं कर पा रही हूं। चलो दूषित खानपान तो सरकारों की गलत नीतियों के मत्थे मढ़ दिया जाता है और हम सब बड़े साफ-सुथरे तरीके से किनारे हो जाते हैं। लेकिन हमारे बच्चों के मानसिक विकास की जिम्मेवारी तो हम ले ही सकते हैं। मैं चाहती हूं कि ब्रैंडिड उत्पादों की चाहना के बजाय मेरा बच्चा उच्च गुणवत्तापूर्ण आदतें अपने जीवन में लाए। व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से हर क्षेत्र में नंबर वन बनने की होड़ का हिस्सा न बने। मां के तौर पर नैतिक मूल्यों को उसके जीवन में आत्मसात करने की मेरी कोशिश में, मुझे समाज के हर तबके का योगदान एवं अनुशासन चाहिए। इस कोशिश में हम सरकारों पर दायित्व फैंक कर, अपनी जिम्मेवारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। याद रखिए जिंदगी के पड़ाव की ओर बढ़ रहे हमारे बच्चों की खुशहाली सांझे प्रयास से ही सुनिश्चित हो सकती है।
अपने और पराए के बीच की खाई से हमारे बच्चों का भविष्य संवर नहीं सकता। बस हम माएं जो कर सकती हैं, वो तो करें। इतनी आशा तो मैं माताओं से कर ही सकती हूं। हरेक मां अपने बच्चे की पहली शिक्षक होती है। बच्चा, मां से जो सीखता है, उसका उसके जीवन पर खासा प्रभाव पड़ता है। बचपन में बच्चे को जो सिखा दिया जाता है, वह खाली स्लेट पर लिखे शब्दों की तरह है। बचपन में बच्चा जो सीखेगा, उसका प्रभाव पूरी उम्र तक रहेगा। हर माता को अपने बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास की ओर ध्यान देना होता है। हर बच्चे के लिए उसका परिवार प्रथम पाठशाला की तरह होता है। कोई भी बच्चा मां से ही सीखता है कि दयालुता, परोपकार और सेवाभाव का जीवन में क्या महत्त्व है? प्रसिद्ध विचारक अफलातून ने बच्चों को कहानियों व उदाहरणों के जरिए पढ़ाने की पैरवी की थी। भारतीय समाज की ओर देखें, तो बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी से कहानियां सुनकर बहुत कुछ सीखते हैं। अब यह परंपरा संयुक्त परिवारों के विघटन के कारण विलुप्त होती जा रही है। आज की जरूरत है कि इसका विकल्प जल्द से जल्द ढूंढा जाए, अन्यथा बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। बचपन ही वह अवस्था है, जब किसी बच्चे की पूरा जीवन जीने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण की शुरुआत हो जाती है। बच्चे के जीवन में मां के महत्त्व का फिर से मू्ल्यांकन होना चाहिए तथा उसे सम्मान मिलना चाहिए।
निधि शर्मा
स्वतंत्र लेखिका


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story