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Written by जनसत्ता: भारत और आस्ट्रेलिया के बीच शिखर वार्ता में रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहना दोनों देशों की चिंता बताने के लिए काफी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके आस्ट्रेलियाई समकक्ष स्काट मारिसन के बीच वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए हुई शिखर वार्ता इस जरूरत को रेखांकित करती है कि रूस और यूक्रेन के बीच तत्काल युद्ध खत्म होना चाहिए। मारिसन के साथ शिखर वार्ता से पहले प्रधानमंत्री मोदी जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ दिल्ली में बैठक कर चुके हैं।
बैठकों का यह दौर वैश्विक राजनीति में तो भारत का कद बढ़ा ही रहा है, इससे यह भी साफ हो गया है कि अब बड़े देश भारत की नीतियों की उपेक्षा नहीं कर सकते। गौरतलब है कि अमेरिका के अलावा भारत, आस्ट्रेलिया और जापान तीनों ही उस चौगुटे (क्वाड समूह) के सदस्य हैं जो एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीनी विस्तारवाद से मुकाबले के लिए बनाया गया है। इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर क्वाड के सदस्य देश जो भी रणनीति अपनाएंगे, उसमें भारत की भूमिका अहम होगी। हालांकि जिस तरह अमेरिका, जापान और आस्टेÑलिया खुल कर रूस के खिलाफ उतरे हुए हैं, वहीं भारत ने अपने को तटस्थ रखते हुए देशहित में कदम उठाने की नीति को प्रमुखता दी है।
गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन की जंग अब दुनिया के ज्यादातर देशों के सिरदर्द बनती जा रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि रूस के विरोध को लेकर खेमेबंदी बढ़ रही है। अमेरिका और कई यूरोपीय देशों के साथ जापान और आस्ट्रेलिया भी रूस के खिलाफ हैं। चीन सहित कुछ देश रूस के साथ हैं। तुर्की और पाकिस्तान जैसे देश मध्यस्थता की बात कर रहे हैं। जबकि भारत अभी तक किसी खेमे के साथ नहीं है।
तटस्थता की नीति पर चलते हुए वह तत्काल युद्ध रोकने का पक्षधर है। भारत जहां अमेरिका के नेतृत्व वाले चौगुटे का अहम सदस्य है, वहीं यूक्रेन पर हमले लिए उसने रूस को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। बल्कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगने के बावजूद भारत ने उससे कच्चा तेल खरीदने का फैसला किया। सुरक्षा परिषद में भी रूस के खिलाफ मतदान के दौरान भारत गैरहाजिर रहा। अमेरिका को ये सब बातें चुभ रही हैं। इसीलिए वह जापान और आस्ट्रेलिया जैसे क्वाड सदस्यों के जरिए भारत पर रणनीतिक दबाव बनाने में लगा है। अमेरिका की चिंता यह भी है कि इस युद्ध के चक्कर में क्वाड का मकसद कहीं पीछे न छूट जाए।
यह सही है कि किसी भी देश को अपनी विदेश नीति तय करने का पूरा अधिकार है। अच्छी और संतुलित विदेश नीति भी वही होती है जो दुनिया के हालात के साथ अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखे। आस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ वार्ता में रूस को लेकर जैसी तल्खी दिखाई, उसके पीछे रणनीति यही रही होगी कि भारत भी रूस के खिलाफ वैसा ही रुख अपनाए। हालांकि जापान और आस्टेलिया दोनों के साथ भारत के कारोबारी रिश्ते काफी अच्छे हैं और इन वार्ताओं में दोनों देशों के साथ निवेश और व्यापार पर खासतौर से बात हुई है।
जापान और भारत के बीच छह समझौते हुए हैं और अगले पांच साल में जापान भारत में तीन लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगा। भारत-आस्ट्रेलिया की शिखर बैठक जो साझा बयान आया, उसमें जोर संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और राज्यों की संप्रभुता का सम्मान करने जैसी बातों पर है। होना भी यही चाहिए और भारत चाहता भी यही है। पर दुनिया के कितने देश ऐसा कर रहे हैं?