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भारत सहित पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों की दिल्ली में हुई बैठक में अफगानिस्तान को लेकर एक बार फिर जिस तरह की चिंताएं देखने को मिली हैं, वे बेवजह नहीं हैं।
भारत सहित पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों की दिल्ली में हुई बैठक में अफगानिस्तान को लेकर एक बार फिर जिस तरह की चिंताएं देखने को मिली हैं, वे बेवजह नहीं हैं। अफगानिस्तान की हर घटना का असर भारत और कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान पर पड़ रहा है। ये पांचों मध्य एशियाई देश अफगानिस्तान के पड़ोसी देश हैं। इसलिए विदेश मंत्रियों की बैठक में मूल मुद्दा यही छाया रहा कि अफगानिस्तान की जमीन से निकलने वाली आतंकवाद की आग से बचा कैसे बचा जाए।
भारत शुरू से इस बात पर जोर देता रहा है कि अफगानिस्तान को आतंकवाद का नया गढ़ बनने से रोकना होगा। वरना पाकिस्तान के बाद वह भी दुनियाभर में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने से बाज नहीं आने वाला। भारत की यह चिंता इसलिए भी ज्यादा बढ़ गई है कि अफगानिस्तान के हालात दिनोंदिन बदतर होते जा रहे हैं। अफगानिस्तान इस वक्त न सिर्फ भुखमरी और कंगाली से जूझ रहा है, बल्कि तालिबान राज इस देश के लिए हर तरह से दुस्वप्न साबित हो रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका और प्रबल होती जा रही है कि वहां अब तालिबान की हुकूमत आतंकवादी संगठनों को मजबूत कर दुनिया पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम करेगी।
अफगानिस्तान में तालिबान शासन को चार महीने से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन इन चार महीनों में वहां से ऐसे कोई संकेत नहीं आए हैं जिनसे जरा भी यह लगा हो कि तालिबान शासन दुनिया के साथ कदम मिला कर चलने को तैयार है। तालिबान शासकों ने स्पष्ट रूप से इस बात का भरोसा नहीं दिया है कि वह अपने मुल्क की जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा। अफगानिस्तान के पड़ोसी देश इसलिए भी ज्यादा परेशान हैं कि बड़ी संख्या में शरणार्थी उनके यहां पहुंच रहे हैं। तालिबान लड़ाकों और स्थानीय गुटों में जिस तरह का संघर्ष चल रहा है, उसने मानवीय संकट को और बढ़ा दिया है। महिलाएं, बच्चे और अल्पसंख्यकों पर तालिबान का कहर जारी है।
ऐसे में अफगानिस्तान को मानवीय संकट से बचाने की जिम्मेदारी से भागा भी नहीं जा सकता। इसलिए भारत और मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में आतंकवाद के अलावा अफगानिस्तान की मदद के रास्ते तलाशने पर भी गहन चर्चा हुई। इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि एशियाई शांति के लिए अफगानिस्तान को युद्ध का अखाड़ा और आतंकवाद का गढ़ बनने से रोकना सभी देशों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान को लेकर पिछले महीने भारत की पहल पर ही दिल्ली में मध्य एशियाई देशों, ईरान व रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक हुई थी। इसे दिल्ली संवाद नाम दिया गया था। विदेश मंत्रियों की यह बैठक भी उसी कड़ी में हुई है। दिल्ली संवाद की पहल कर भारत ने इस बात का स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अफगानिस्तान के हालात को लेकर न केवल चिंतित है, बल्कि वह उसे संकट से निकालने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव मदद के लिए भी तैयार है। और यह काम अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को साथ लिए बिना संभव नहीं है।
अफगानिस्तान को लेकर भारत की चिंताएं इसलिए भी हैं कि इस देश के पुनर्निर्माण में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है। आर्थिक मदद से लेकर तमाम बड़ी परियोजनाओं में योगदान दिया है। दिल्ली की यह पहल अफगानिस्तान के लिए किसी शुभ संकेत से कम नहीं है। पर तालिबान शासक इसे समझ कहां रहे हैं!
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