सम्पादकीय

अवधारणा: विश्व शांति का अर्ध सत्य, एक आदर्श स्थिति की मनोकामना

Gulabi
21 Sep 2021 6:50 AM GMT
अवधारणा: विश्व शांति का अर्ध सत्य, एक आदर्श स्थिति की मनोकामना
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विश्व शांति का अर्ध सत्य

वीर सिंह। विश्व शांति की अवधारणा, इच्छा और उस स्थिति को स्थापित करने के प्रयास सुखद अनुभूति देते हैं। विश्व शांति सदैव मानव की एक ऐसी आदर्श स्थिति की मनोकामना है, जिसमें वह अपनी संपूर्ण स्वतंत्रता, रचनात्मकता और प्रफुल्लता के साथ जीवन यापन कर सके। विश्व शांति एक विचार है, जिसमें समाहित हैं अहिंसा, सभी देशों में आपसी सहयोग, दुनिया के सभी लोगों का सम्मान और सभी को जीवन की मूलभूत सुविधाओं की प्राप्ति।

विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, दर्शनों और विचारों की आदर्श राज्य निर्माण की अलग-अलग अवधारणाएं हो सकती हैं, लेकिन शांति का मार्ग वही है, जो मानव को उसकी गहरी मानवीयता का भान कराए। मानव अधिकारों, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, चिकित्सा अथवा कूटनीति को संबोधित करके विश्व शांति स्थापित करने का उद्देश्य सार्वभौमिक रूप से घोषित है। वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने युद्ध अथवा युद्ध की घोषणा के बिना देशों के आपसी संघर्षों को हल करने के उद्देश्य को स्पष्ट किया।
लेकिन तब से सैकड़ों हजारों युद्ध दुनिया में हो चुके हैं, लाखों लोगों का खून बह चुका है। हमारे आधुनिक काल में तो युद्ध विराम ही विश्व शांति का संकेतक बन गया है। किन्हीं दो देशों में जब तक तनाव भीषण युद्ध में परिवर्तित न हो जाए, तब तक यह माना जाता है कि 'शांति की स्थिति' बनी हुई है। दूसरे शब्दों में कहें, तो शांति का अर्थ बहुत संकीर्ण कर दिया गया है। विश्व शांति के मुद्दे बड़े लचकदार हैं। शांति का अभी कोई दर्शन शास्त्र सृजित नहीं हुआ है।
जिंदगी का एक इतना महत्वपूर्ण पहलू राजनीतिक उलटबांसियों और युद्ध के कुरुक्षेत्रों में फंसा है। देशों, धर्मों और विचारों में भले ही ईर्ष्या, द्वेष और वैमनस्य के ज्वालामुखी फटते रहें, सीमा पर लड़ाई जारी नहीं, तो शांति ही शांति! बिना रक्तपात के तख्ता पलट दिया गया तो शांति! तालिबान ने भी बिना युद्ध के सत्ता प्राप्त कर ली, वह भी स्थिति का लाभ उठाने वालों के लिए 'शांति' का एक उदाहरण! आतंकवाद भी विश्व शांति का कदाचित ही उल्लंघन माना जाता है।
भयानक गरीबी, कुपोषण, भुखमरी, हत्याएं, बलात्कार, मानवाधिकारों का हनन आदि भी शायद ही शांति उल्लंघन के सूचक माने जाते हैं। और वनों का विनाश, वन्यजीवों की हत्याएं, पालतू पशुओं को भोजन, दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए हत्या तो शांति की परिधि में ही रखा जाता है। यह अपरिभाषित शांति, शांति का अर्ध सत्य है, जो अशांति से भी अधिक भयावह है।
विश्व शांति की अवधारणा में निहित एक अधकचरा पहलू यह भी है कि इस पर मात्र मानव जाति का ही अधिकार है। मानव की, मानव के लिए, मानव द्वारा शांति। पृथ्वी के सभी अन्य प्राणियों को भी शांति की इतनी ही आवश्यकता है, जितनी मानव को। धरती पर लगभग 85 लाख जीवों में मानव एक है, और केवल एक की शांति के लिए अन्य सभी को 'शांतिपूर्ण दुनिया' में सब दुख-संकट झेलने के लिए छोड़ दिया जाए, यह घोर अनैतिक है!
शांति की बातों में और शांति स्थापित करने के प्रयासों और प्रक्रियाओं में नैतिकता के मानदंड गधे के सिर से सींग की तरह लुप्त हैं। युद्ध विराम हो जाए, शांति की प्रक्रिया पूर्ण! इस प्रक्रिया में बस मनुष्य द्वारा मनुष्य की हत्या रोकनी होती है। ऐसा होना आवश्यक भी है। मानव जीवन भी उतना ही मूल्यवान है, जितना अन्य प्राणियों का। लेकिन मनुष्य का जीवन भी एक जीवन प्रक्रिया का हिस्सा है।
अगर अन्य प्राणियों का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वध होता है, तो इसमें भी जीवों की जान जाती है, मगर मानव समाज के लिए यह शांति की स्थिति से भिन्न नहीं है। दुनिया में प्रतिदिन भोजन और स्वाद के लिए जमीन पर रहने वाले 20 करोड़ जानवरों का वध किया जाता है। इसके साथ प्राकृतिक जलाशयों और कृत्रिम तालाबों से पकड़ कर मारी गई मछलियों और अन्य जलचरों को भी जोड़ें, तो प्रतिदिन तीन अरब जंतुओं की हत्या की जाती है।
इस प्रकार वर्ष भर में 36 अरब से अधिक निरीह जंतु विश्व शांति के लिए व्याकुल मानव रूपी जंतुओं के पेटों में समा जाते हैं और मानव जिह्वा को विविधतापूर्ण स्वादों से तृप्त कर जाते हैं। शांति-शांति चिल्लाने वाले मानव के लिए अरबों जानवरों की जीवन लीला शांत कर दी जाती है, जैसे उन निरीह जंतुओं के लिए शांति का कोई अर्थ ही नहीं। सर्वाधिक संहार समुद्री जीवों का होता है।
मछुआरों के जाल में केवल वही मछलियां नहीं आतीं, जिनके लिए वे जाल बिछाते हैं। उनमें अधिकांश वे जीव-जंतु होते हैं, जो उनके भोजन में नहीं आते। अनैच्छिक जंतुओं के जाल में फंसने के लिए एक तकनीकी शब्द है 'बाईकैच'। सितबंर, 2018 के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिवर्ष एक व्यक्ति को खिलाने के लिए बाईकैच के कारण 500 समुद्री जीवों की हत्या की जाती है। ये जीव भी शांति के अधिकारी हैं और इनकी शांति के बिना हमारी शांति अधूरी है।
कुछ वैज्ञानिक और विशेषज्ञ यदा-कदा मांस प्राप्त करने के लिए जानवरों को मारने के मानवीय तरीकों की बात करते हैं। ऐसा इसलिए कि गोश्त के बिना अपने मजहब को अधूरा मानने वाले, जानवरों को हलाल करके मारने की वे निरर्थक बात करते हैं। लेकिन जानवरों की हत्या का कोई भी तरीका मानवीय नहीं हो सकता। जमीन पर, मिट्टी और पानी में रहने वाले सभी जीव-जंतु एक ही जीवन-प्रक्रिया के हिस्से हैं।
किसी भी जीव के जीवन का संकट संपूर्ण जीवन के संकट की कड़ी होती है। मनुष्य प्रजाति के लिए उपलब्ध भोजन, जो शांति के लिए सबसे पहली आवश्यकता है, प्राकृतिक परिवेश से आता है। प्राकृतिक परिवेश (मिट्टी, पानी, हवा) स्वस्थ हैं, विभिन्न परिवेशों में रहने वाले जीव स्वस्थ हैं, तो मानव जाति की सभी मूलभूत जरूरतें पूरी होंगी, मानव समाजों में शांति प्रस्फुटित होगी और जीवन-दायिनी पृथ्वी पर जीवन खिलेगा-चहकेगा-महकेगा।
जीवन का खिलना-चहकना-महकना ही तो शांति की सबसे प्रखर अभिव्यक्ति है। विश्व शांति का बीज हमारी सोच में होता है। तालिबानी और आतंकवाद पैदा करने वाली सोच के बीजों को संपूर्ण रूप से नष्ट करके ही शांति के बीज धरती पर बोए जा सकते हैं, जिनकी फसलों के फल धरती की आने वाली पीढ़ियों को मिलते रहेंगे और शांति के वातावरण में धरती पर जीवन फूलता-फलता, चहकता-महकता रहेगा।
(-पूर्व प्रोफेसर, जी बी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय।)
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