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- समझौतापरस्ती, बस तेरा...
नई सदी आई, लोगों की समझ बदल गई। बात का लहज़ा बदल गया। जीने का तौर-तरीका बदल गया। आज वही कामयाब है जो मौका देख कर केंचुल बदल जाए। अभी कुछ चुनाव संपन्न हुए। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है अपना देश। मतदान की बड़ी शक्ति बताई जाती है। कहते हैं यहां सत्ता परिवर्तन बुलेट अर्थात बंदूक की गोली से नहीं, बैलेट यानी वोट से होता है। इसके बाद नतीजा निकलता है। जो चुनाव संघर्ष में एक-दूसरे के साथ कीचड़ की होली खेल रहे थे, आरोपों और लांछनों की कथनी अतिकथनी के दांव चल रहे थे, वही चुनाव परिणाम के दिन पांसा पलटता देख एक-दूसरे के गले लगते देर नहीं लगाते। समझौतापरस्ती हवाओं में तैरने लगती है। जनता और उसके लिए क्रांति कर देने की घोषणा गई तेल लेने। गरीब का हित साधने की बात तो ऐसा टकसाली सिक्का है जो हर पैंतरा बदलता बैसाखी के रूप में अपनाता है। फिर सरकार का दायित्व, प्रशासन में असमंजस को खत्म करना और क्रांति के लिए देर आयद दुरुस्त आयद की नई शब्दावली सामने आ जाती है। भक्तजनों के झांझ मंजीरों के स्वर तेज़ हो जाते हैं। नायक पूजा का सुर बदल जाता है।