सम्पादकीय

पूरा नया मंत्रिमंडल

Rani Sahu
17 Sep 2021 2:24 PM GMT
पूरा नया मंत्रिमंडल
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गुजरात सरकार में जो फेरबदल हुआ है, वह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक नवाचार है

गुजरात सरकार में जो फेरबदल हुआ है, वह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक नवाचार है। यहां भाजपा ने मुख्यमंत्री के साथ ही पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया है। सत्ता में दो दशक से ज्यादा समय तक रहने के बाद भाजपा द्वारा किया गया यह प्रयोग सत्ता विरोधी लहर को रोकने की एक अभूतपूर्व कोशिश है। यह भारतीय राजनीति में साहस ही नहीं, दुस्साहस की श्रेणी का मामला है। कई बार हमने देखा है कि जब किसी एक मंत्री का भी पद छिनता है, तो पूरा मंत्रिमंडल अस्थिर हो जाता है, सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगते हैं, लेकिन गुजरात में एक नहीं, बल्कि सभी मंत्रियों को दो से तीन दिन के भीतर बदल दिया गया और तब भी सरकार की सेहत बरकरार लगती है। अगर यह प्रयोग वाकई सफल रहा और पार्टी में कमजोरी न आई, तो यह बदलाव एक मिसाल बन जाएगा। जो राजनीतिक प्रयोग हुआ है, वह आम राजनीतिक सोच से परे है। शायद ऐसा प्रयोग केवल गुजरात जैसे राज्य में ही संभव हो, लेकिन इससे पूरे देश की राजनीति में चर्चा होगी।

भाजपा ने गुजरात में इस बड़े बदलाव के दम पर जातिगत समीकरणों को भी साधने का प्रयास किया है। भूपेंद्र पटेल कैबिनेट में जिन 24 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है, उनमें आधे मंत्री पटेल और ओबीसी बिरादरी से आते हैं। मतलब, भाजपा पटेलों को नाराज नहीं करना चाहती। साथ ही, भाजपा ने यह संकेत भी दे दिया है कि उसे किसी विशेष जातिगत नेता की नहीं, बल्कि जाति की चिंता है। किसी भी जाति या उसके लोगों को सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए और जातिगत वोटों को किसी एक या दो नेताओं के पीछे नहीं खड़ा होना चाहिए। मतलब, मंत्री कोई रहे, जाति का प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है। यह बदलाव संकेत है कि लोगों को अपने नेता से नहीं, बल्कि अपनी भागीदारी से सरोकार रखना चाहिए। अगर ऐसा होने जा रहा है, तो फिर भारतीय राजनीति में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव होगा। वैसे भी आदर्श राजनीति में महत्व व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि सबकी भागीदारी और सेवा का है। हालांकि, यह सवाल पूछा जाएगा कि यह फॉर्मूला भाजपा कहां-कहां लागू करेगी? सत्ता संतुलन जाति के आधार पर ही होना है, तो गुजरात में जो हुआ है, वह सही है, जिस पर हर राजनीतिक पार्टी को विचार करना चाहिए।
भाजपा यह मानकर चल रही है कि पटेलों और ओबीसी की नाराजगी से उसे पिछले विधानसभा चुनाव में कुछ नुकसान हुआ था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा महज 99 सीटों पर सिमट आई थी, लेकिन अब भाजपा की कोशिश है कि उसकी सीटों की संख्या बढ़े, ताकि सम्मानजनक ढंग से अगले साल फिर सत्ता हासिल हो। देखने वाली बात है कि गुजरात में सारे चेहरे बदलने का यह प्रयोग निकाय चुनाव के स्तर पर कामयाब रहा था। लेकिन चेहरे बदलने का यह अभियान राज्य स्तर पर बहुत कारगर तभी होगा, जब मंत्रिमंडल से हटाए गए नेताओं के असंतोष का समाधान होगा। नए बने मंत्रियों को पार्टी के अंदर ही नहीं, बल्कि अपने समुदाय या क्षेत्र में भी अपनी सेवा से केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को करीब साल भर के समय में ही सही साबित करना होगा। बुनियादी रूप से हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चेहरे बदलने की समग्र कवायद तभी कामयाब होगी, जब आम लोगों में सरकार के प्रति पुराना विश्वास मजबूत होगा।
क्रेडिट बाय हिंदुस्तान


Rani Sahu

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