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- शिकायत को कान चाहिए
शिकायतों को ढोते जनमंच के आंगन में कुछ इरादे, कुछ वादे, कुछ आफत, कुछ शामत रही। दस जिलों में 1056 शिकायतों में आफत का पुलिंदा देखा गया, तो इन्हीं के बीच फटकार, पुरस्कार व नागरिक अधिकार भी देखे गए। मंत्रियों के कोट के बटन उनके व्यक्तित्व को इतना सख्त कर गए कि बेचारे अधिकारी कोप भाजक बन गए। नागरिक इतने तन गए कि प्रशासन की कलई खोलते उनके माइक तक को बहरा बना दिया गया, फिर भी दाद देनी होगी कि जनमंच की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए सरकारी फाइलों की लेटलतीफी काम कर रही है। सरकारी कार्यसंस्कृति की खाद जहां-जहां नजर आई वहां सुशासन की उत्पादकता में हरियाली गायब रही। बेशक जनमंच को चमत्कारी अदा में प्रस्तुत करने में सरकार सफल रही, लेकिन शिकायतों के पिटारे में सिसकियां अपना हाल बताती हैं। प्रदेश को मालूम हो गया कि सरकार के फैसलों का कार्यान्वयन क्यों नहीं होता या क्यों कई अधिकारी यूं ही मजे के लिए गुलकंद खा रहे हैं। जनमंच किसे कह रहा, किसे सुना रहे, यह जनता को खबर होगी या यह खबर भी होगी कि शिकायतकर्ताओं के लिए बस एक कान चाहिए।
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