सम्पादकीय

कोरोना मौतों पर मुआवजा

Subhi
24 Sep 2021 3:21 AM GMT
कोरोना मौतों पर मुआवजा
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कोरोना महामारी से जीवन गंवाने वालों का अपना कोई दोष नहीं। अतः उनकी मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

कोरोना महामारी से जीवन गंवाने वालों का अपना कोई दोष नहीं। अतः उनकी मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। जो परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं, वे तो टूट कर भी समय के साथ उठ खड़े होंगे लेकिन जो परिवार पहले से ही आर्थिक बदहाली का शिकार हैं, उन परिवारों की मदद करना कल्याणकारी राज्य का दायित्व बनता है। कोरोना से हुई मौतों पर परिजनों को मुआवजा विशुद्ध रूप से कानूनी मसला तो था ही लेकिन इसके साथ-साथ मानवीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 भी है जो प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का मूलभूत अधिकार देता है। गौर करने वाली बात यह है कि संविधान में भारत की शासन व्यवस्था को कल्याणकारी राज (वैलफेयर स्टेट) बताया गया है। इसका अर्थ यही है कि सरकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा करेगी। कोरोना वायरस का शिकार हुए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग लम्बे समय से हो रही थी। अंततः सरकार इसके लिए तैयार हो गई है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जानकारी दी है की कोविड-19 से हुई मौतों पर 50 हजार रुपए मुआवजा दिया जाएगा। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने यह राशि तय की है।सरकार ने यह भी कहा है कि यह राशि राज्य सरकार की ओर से दी जाएगी। मुआवजे का भुगतान न केवल पहले हुई मौतों के लिए है बल्कि भविष्य के लिए भी किया जाएगा। यद्यपि अनुग्रह राशि बहुत कम है लेकिन संकट की घड़ी में यह राशि भी मरहम के समान है। कोरोना वायरस ने लाखों घर उजाड़ दिए हैं। इससे बचने के लिए मनुष्य को अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन की बलि चढ़ानी पड़ी है। मृतकों के परिजनों या बच्चों को मुआवजा पाने का एक जायज कारण यह भी है कि उनके लिए तो दिन में रात हो गई, जिसके कारण घर का कमाने वाला कोरोना ने निगल लिया। यद्यपि पिछली सुनवाइयों के दौरान केन्द्र सरकार ने कोरोना के शिकार लोगों के परिजनों को मुआवजा देने से इंकार कर दिया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। मगर कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा था कि आपदा प्रबंधन कानून के तहत मुआवजा तय करने के बारे में क्या किया गया है, कोर्ट को बताएं। जून माह में कोरोना से हुई मौतों पर परिवारों को चार-चार लाख का मुआवजा देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार ने कहा था कि चार लाख की राशि राज्य सरकारों की वित्तीय सामर्थ्य से परे है। पहले ही केन्द्र और राज्य सरकारों पर वित्त का भारी दबाव है। केन्द्र का यह भी कहना सही था कि सरकारी संस्थानों की एक सीमा होती है। अगर इस तरह से मुआवजा दिया गया तो वर्ष 2021-22 के लिए राज्य आपदा कोष के ​​लिए आवंटित राशि 22184 करोड़ रुपए इस मद में खर्च हो जाएंगे। इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में उपयोग होने वाली राशि प्रभावित होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र सरकार ने महामारी से लड़ने से लेकर वैक्सीनेशन अभियान पर काफी धन खर्च किया है। इतनी बड़ी आबादी को मुफ्त टीका उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। संपादकीय :तीन टन 'हेरोइन' की दास्तां !मोदी की अमेरिका यात्रासंत, सम्पत्ति और साजिशआंखें नम हुई...पाक और चीन का फौजी रुखकोरोना काल में नस्लभेदफिर भी नरेन्द्र मोदी सरकार ने व्यापक प्रबंध किए हैं। देश में अब तक 4.5 लाख मौतें हुई हैं। इस हिसाब से राज्य सरकार मृतकों के परिजनों को 50 हजार रुपए भी देती है तो राज्यों पर 2,250 करोड़ का वित्तीय बोझ पड़ेगा। हलाकि एसडीआरएफ को अधिकतर राशि केन्द्र सरकार जारी करती है। कोविड से मरने वालों के परिजनों के लिए अनुग्रह राशि की घोषणा कई राज्यों ने पहले ही कर दी थी। हालांकि इसके ​िलए पैसा एसडीआरएफ से नहीं बल्कि मुख्यमंत्री राहत कोष या अन्य स्रोतों से किया गया।आंध्र प्रदेश सरकार ने अनाथ बच्चों के लिए दस लाख रुपए, एक अभिभावक की मौत पर 5 लाख रुपए, बिहार सरकार ने चार लाख रुपए, हरियाणा में ​बीपीएल परिवारों के लिए दो लाख रुपए देने की घोषणा कर रखी है। शीर्ष अदालत ने तीन अहम निर्देश दिए थे। पहला कोरोना से मौत पर डैथ सर्टिफीकेट जारी करने की व्यवस्था सरल हो, दूसरा वित्त आयोग के प्रस्ताव के अनुसार मृतकों के परिवार के लिए बीमा स्कीम बनाए, तीसरा एनडीएमए राहत के न्यूनतम मानकों को ध्यान में रखते हुए मृतकों के ​परिवारों के ग्राइडलाइन्स बनाए जाए। आपदा को झेलने वाले नागरिकों को जीवन जीने का पूर्ण अधिकार है। अंततः केन्द्र ने मृतकों के परिवारों की मदद के लिए यह रास्ता अपनाया है। दरअसल सरकारें जो भी कमाती हैं, वह भी लोगों से कमाती हैं। लोगों से कमाकर लोगों पर ही उनकी प्रगति की वरीयताएं तय करके उसे खर्च करना होता है। मुआवजा राशि कम जरूर है लेकिन सरकार ने अपना दायित्व ​निभाया है। अब यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह लगातार निगरानी रखकर मृतकों के परिजनों को अनुग्रह राशि देकर उनकी मदद करें। सामाजिक संस्थानों और सामर्थ्यवान लोगों से भी आग्रह है कि वे भी ऐसे परिवारों की पहचान करें, जिन्हें जीवन यापन के लिए मदद की जरूरत है और उनकी यथासम्भव मदद करें।

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