सम्पादकीय

पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई

Subhi
28 Nov 2022 5:42 AM GMT
पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई
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इस दिशा में भारत ने पचास करोड़ एलईडी बल्बों का प्रयोग किया है, जिससे कार्बन डाईआक्साइड में ग्यारह करोड़ टन की कमी लाने में सफलता मिली है। इसकी अगली कड़ी में सघन औद्योगिक इकाइयों की ऊर्जा खपत को तीन वर्षीय योजना के तहत घटाया जा रहा है। मगर अमेरिका ने कोयले की चुनौती से निपटने का अब तक कोई उपाय नहीं किया है।

प्रमोद भार्गव; इस दिशा में भारत ने पचास करोड़ एलईडी बल्बों का प्रयोग किया है, जिससे कार्बन डाईआक्साइड में ग्यारह करोड़ टन की कमी लाने में सफलता मिली है। इसकी अगली कड़ी में सघन औद्योगिक इकाइयों की ऊर्जा खपत को तीन वर्षीय योजना के तहत घटाया जा रहा है। मगर अमेरिका ने कोयले की चुनौती से निपटने का अब तक कोई उपाय नहीं किया है।

मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित काप-27 जलवायु शिखर सम्मेलन में अमीर देश इस बात पर राजी हो गए हैं कि वे पृथ्वी पर बढ़े वैश्विक तापमान से हुए नुकसान की भरपाई करेंगे। अमेरिका समेत अन्य अमीर देशों ने इस जलवायु समझौते पर सहमति दे दी है। इसका उद्देश्य विकासशील देशों को हुए नुकसान के रूप में भुगतान करना है। इसके पहले विकसित देश इस समझौते पर चर्चा तक को राजी नहीं होते थे।

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस सम्मेलन से ही अलग कर लिया था। दरअसल, इन देशों को भय था कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए उन्हें कानूनन जवाबदेह ठहराया जा सकता है। अब समझौते को लागू करने के लिए 2023 में चौबीस देशों के प्रतिनिधियों की एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति तय करेगी कि अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन के लिए जो देश जिम्मेदार हैं, उनसे कितना धन लिया लाए।

इस पर्यावरण सम्मेलन में प्रतिनिधि इस बात को लेकर चिंतित थे कि एक साल पहले ग्लासगो में संपन्न हुई काप-26 में जो सहमति मीथेन गैस के उत्सर्जन पर नियंत्रण को लेकर बनी थी, उस पर उचित क्रियान्वयन नहीं हुआ। किस देश में कितनी मीथेन उत्सर्जित हो रही है, इसे नापा ही नहीं गया। मगर अब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने घोषणा की है कि उपग्रहों के जरिए हर देश में मीथेन उत्सर्जन की मात्रा पर निगरानी रखी जाएगी।

कार्बन डाईआक्साइड के बाद मीथेन ही ऐसी दूसरी गैस है, जो सबसे ज्यादा प्रदूषक है। तापमान को वायुमंडल में रोकने के लिए यह सीओ-2 से अस्सी गुना ज्यादा सक्षम मानी जाती है। धान की खेती और पशुओं की जुगाली इसके उत्सर्जन के बड़े कारण हैं। अब तक ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हो पाई है, जिससे इस गैस के उत्सर्जन में कमी लाई जा सके।

चूंकि भारत कृषि प्रधान देश है और बड़ी मात्रा में धान की फसल उगाई जाती है, इसलिए भारत 2070 तक धान उत्पादन को प्रभावित ही नहीं करना चाहता। अगर काप-27 में हुए समझौते के मुताबिक भारत को होने वाले नुकसान का मुआवजा मिलता है, तो भविष्य में वह धान उत्पादन में कमी लाने का प्रयास कर सकता है। इसके लिए किसानों को आर्थिक मदद देनी होगी। हालांकि ग्लासगो में एक सौ तीस से अधिक देशों ने 2030 तक मीथेन के उत्सर्जन को कम करने का वादा किया था, लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया।

भारत 2021 में पहली बार 'जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक' में शीर्ष दस देशों में शामिल हुआ था। वहीं अमेरिका सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में पहली बार शामिल था। स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आयोजित यूएनईपी के काप-25 में यह रिपोर्ट जारी की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार सत्तावन उच्च कार्बन उत्सर्जन वाले देशों में से इकतीस में उत्सर्जन का स्तर कम होने के रुझान दर्ज किए गए थे। इन्हीं देशों से नब्बे फीसद कार्बन का उत्सर्जन होता रहा है। इस सूचकांक ने तय किया है कि कोयले की खपत में कमी सहित कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक बदलाव दिखाई देने लगे हैं।

इस सूचकांक में चीन में भी मामूली सुधार आया था, वह तीसवें स्थान पर था। जी-20 देशों में ब्रिटेन सातवें और भारत नौवें स्थान पर था, जबकि आस्ट्रेलिया इकसठ और सऊदी अरब छप्पनवें पर थे। अमेरिका खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में इसलिए आ गया था, क्योंकि उसने जलवायु परिवर्तन की खिल्ली उड़ाते हुए इस समझौते से बाहर रहने का निर्णय लिया था। इसलिए कार्बन उत्सर्जन रोकने पर उसने कोई प्रयास ही नहीं किया। अगर भारत जीवाश्म र्इंधन पर दी जा रही सबसिडी को चरणबद्ध तरीके से कम करता चला जाए, तो कोयले पर उसकी निर्भरता कम हो जाएगी।

भारत में अब तक ऊर्जा आवश्यकताओं और पर्यावरण सरंक्षण के बीच संतुलन साधने के बावजूद कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2018 में 22.99 करोड़ टन कार्बन डाईआक्साइड पैदा हुई, जो 2017 की तुलना में 4.8 फीसद अधिक थी। भारत में इस बढ़ोत्तरी का कारण उद्योगों और विद्युत उत्पादन में कोयले का बढ़ता उपयोग था।

अर्थव्यवस्था को गति देने और आबादी के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले के उपयोग पर एकाएक अंकुश लगाना मुश्किल है। लिहाजा, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारत की भागीदारी सात फीसद थी, जो अब घटनी शुरू हो गई है। इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत का करीब चालीस फीसद है। यह इसलिए संभव हुआ, क्योंकि एलईडी बल्ब और सौर ऊर्जा के उपयोग पर बल दिया गया। ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में गैस सिलेंडर मुफ्त दिए गए। इससे लकड़ी के र्इंधन पर ग्रामीण भारत की निर्भरता कम हो गई।

अगर कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण बना रहता है, तो भारत प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ता दिखाई देगा। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पिछले दिनों ग्रीनपीस की रिपोर्ट में बताया गया था कि विश्व के तीस सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में से बाईस भारत में हैं। औद्योगिक संयंत्रों और वाहनों से निकलने वाला धुआं इस प्रदूषण की मुख्य वजह हैं। हालांकि भारत जीवाश्म र्इंधन के इस्तेमाल से बचने के लिए इलेक्ट्रानिक कार, सौर और वायु ऊर्जा तथा न्यूनतम कार्बन पैदा करने वाली प्रौद्योगिकी पर लगातार जोर दे रहा है।

इटली में जी-7 की शिखर बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने तब भारत और चीन पर आरोप लगाया था कि इन दोनों देशों ने विकसित देशों से अरबों डालर की मदद लेने की शर्त पर समझौते पर दस्तखत किए हैं। लिहाजा, यह समझौता अमेरिका के आर्थिक हितों को प्रभावित करने वाला है। यही नहीं, ट्रंप ने आगे कहा था कि भारत ने 2020 तक अपना कोयला उत्पादन दो गुना करने की अनुमति भी ले ली है। वहीं चीन ने कोयले से चलने वाले सैकड़ों बिजलीघर चालू करने की शर्त पर दस्तखत किए हैं।

साफ है, यह समझौता अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। अब ताजा रिपोर्ट से साबित हुआ है कि भारत ने कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश प्रतिबद्धता का प्रमाण दे दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय कि पेरिस समझौते के बाद 2015 में भारत को हरित जलवायु निधि से कुल उन्नीस हजार करोड़ रुपए की मदद मिली, जिसमें अमेरिका का हिस्सा महज छह सौ करोड़ रुपए था। ऐसे में ट्रंप का यह दावा नितांत खोखला था कि भारत को इस निधि से अमेरिका के जरिए बड़ी मदद मिल रही है।

अमेरिका में कोयले से कुल खपत की सैंतीस फीसद बिजली पैदा की जाती है। इस बिजली उत्पादन में अमेरिका विश्व में दूसरे स्थान पर है। कोयले से बिजली उत्पादन में सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। इस दिशा में भारत ने पचास करोड़ एलईडी बल्बों का प्रयोग किया है, जिससे कार्बन डाईआक्साइड में ग्यारह करोड़ टन की कमी लाने में सफलता मिली है। इसकी अगली कड़ी में सघन औद्योगिक इकाइयों की ऊर्जा खपत को तीन वर्षीय योजना के तहत घटाया जा रहा है। मगर अमेरिका ने कोयले की चुनौती से निपटने का अब तक कोई उपाय नहीं किया है।

अमेरिका के छह सौ कोयला बिजली घरों से ये गैसें निकल कर वायुमंडल को दूषित कर रही हैं। अमेरिका की सड़कों पर इस समय पच्चीस करोड़ तीस लाख कारें दौड़ रही हैं। अगर इनमें से सोलह करोड़ साठ लाख कारें हटा ली जाती हैं, तो कार्बन डाईआक्साइड का उत्पादन सतासी करोड़ टन कम हो जाएगा।


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