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नि:संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आर्थिक अनुकूलताओं से अर्थव्यवस्था में सुधार आने लगा है
नि:संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आर्थिक अनुकूलताओं से अर्थव्यवस्था में सुधार आने लगा है। चूंकि अभी कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के बीच आर्थिक और औद्योगिक चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में विकास दर को बढ़ाने के और अधिक रणनीतिक प्रयास जरूरी हैं। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि इस समय कोरोना टीकाकरण लक्ष्य के अनुरूप ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। देश में लोगों की खर्च संबंधी धारणा को बेहतर बनाया जाए। जरूरी है कि इसके विशाल उपभोक्ता बाजार में बुनियादी जरूरतों के लिए अधिक खर्च करने की चाह पैदा की जाए…
यकीनन कोरोना संक्रमण के कारण इस समय देश के लोग बड़ी संख्या में गरीबी और बेरोजगारी के साथ-साथ कई आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे हैं। अगस्त 2021 की बाजार रिपोर्टों के मुताबिक देश में सामान्य उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति घटी हुई दिखाई दे रही है। साथ ही असमान मानसूनी बारिश ने महंगाई की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। लेकिन इन मुश्किलों और चुनौतियों के बीच भी इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चार लाभप्रद आर्थिक अनुकूलताएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। एक, मजबूत कृषि विकास दर, रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन व रिकॉर्ड कृषि निर्यात। दो, रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार। तीन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रिकॉर्ड प्रवाह। चार, तेजी से बढ़ता हुआ शेयर बाजार। इन अनुकूलताओं से देश में धीरे-धीरे गरीबी और बेरोजगारी की चुनौतियां कम हो सकेंगी और लोगों की आमदनी में भी वृद्धि हो सकेगी । निश्चित रूप से जिस तरह देश में कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है, उससे कृषि का सुकूनभरा परिदृश्य देश की बड़ी आर्थिक अनुकूलता बन गया है। इससे कृषि क्षेत्र से निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक चालू फसल वर्ष 2020-21 में कोरोना की आपदा के बावजूद देश में खाद्यान्न की कुल पैदावार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचते हुए 30.86 करोड़ टन अनुमानित है। यह खाद्यान्न पैदावार पिछले वर्ष की कुल पैदावार 29.75 करोड़ टन के मुकाबले अधिक है। इतना ही नहीं, भारत दुनिया में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु एक सुसंगत और विश्वसनीय निर्यातक देश के रूप में उभरकर सामने आया है।
पिछले वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश से 41.25 अरब डॉलर मूल्य के कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात किया गया। यह सालभर पहले की इसी अवधि के 35.15 अरब डॉलर मूल्य की तुलना में 17.34 फीसदी ज्यादा रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत का खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर (फूड प्रोसेसिंग सेक्टर) देश ही नहीं दुनिया की खाद्य जरूरतों की पूर्ति करते हुए तेजी से आगे बढ़ा है। देश के कुल निर्यात में खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर का हिस्सा करीब 13 फीसदी है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान जहां देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ी गिरावट आई और वह ऋणात्मक हो गई, लेकिन कृषि की विकास दर में करीब तीन फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। इस वर्ष रबी सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर रिकॉर्ड खरीद हुई है। एक खास बात यह भी है कि भारतीय खाद्य निगम के मुताबिक देश में एक अप्रैल 2021 को सरकारी गोदामों में करीब 7.72 करोड़ टन खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार है, जो बफर आवश्यकता से करीब 3 गुना है। ऐसे में वर्ष 2021 में कोरोना की चुनौतियों के बीच एक बार फिर केंद्र सरकार के द्वारा लागू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों को नवंबर 2021 तक खाद्यान्न की अतिरिक्त आपूर्ति को भी सरलता से पूरा किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि हाल ही में प्रकाशित रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक विगत 14 अगस्त को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 621.464 अरब डॉलर की ऐतिहासिक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है और भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला देश बन गया है।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश के विशाल आकार के विदेशी मुद्रा भंडार से जहां भारत की वैश्विक आर्थिक साख बढ़ी है, वहीं इस भंडार से देश की एक वर्ष से भी अधिक की आयात जरूरतों की पूर्ति की जा सकती है। अब देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। पिछले पांच वर्षों में विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से बढ़ा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना संक्रमण की वैश्विक मुश्किलों के बीच वर्ष 2020 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को प्रवाह 25.4 फीसदी बढ़कर 64 अरब डालर तक पहुंच गया। वर्ष 2019 में यह 51 अरब डॉलर था। दुनिया में एफडीआई प्राप्त करने के मामले भारत वर्ष 2019 में आठवें स्थान पर था, जो 2020 में पांचवें स्थान पर आ गया। यद्यपि पिछले वित्त वर्ष में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी गिरावट थी, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों के द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता दिए जाने के कई कारण हंै। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न हैं। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। नि:संदेह दुनिया के कई देशों की तुलना में भारत का शेयर बाजार छलांगे लगाकर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। पिछले वर्ष 23 मार्च 2020 को जो बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 25981 अंकों के साथ ढलान पर दिखाई दिया था, वह 25 अगस्त को 55944 के ऊंचे स्तर पर दिखाई दिया है। शेयर बाजार में आईपीओ लेने की होड़ मची हुई है।
आईपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी 25 फीसदी बढ़ी है। पिछले वित्त वर्ष में 1.4 करोड़ से ज्यादा डीमैट खाते खुले हैं। देश में डीमैट खातों की संख्या 6.5 करोड़ से ज्यादा हो गई है। खासतौर से चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार ने वृद्धि दर और राजस्व में बढ़ोतरी को लेकर जो एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है, उससे शेयर बाजार को बड़ा प्रोत्साहन मिला है। नि:संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आर्थिक अनुकूलताओं से अर्थव्यवस्था में सुधार आने लगा है। चूंकि अभी कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के बीच आर्थिक और औद्योगिक चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में विकास दर को बढ़ाने के और अधिक रणनीतिक प्रयास जरूरी हैं। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि इस समय कोरोना टीकाकरण लक्ष्य के अनुरूप ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। देश में लोगों की खर्च संबंधी धारणा को बेहतर बनाया जाए। देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जरूरी है कि इसके विशाल उपभोक्ता बाजार में बुनियादी जरूरतों के लिए अधिक खर्च करने की चाह पैदा की जाए। सरकार के द्वारा नई मांग के निर्माण हेतु लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से कदम आगे बढ़ाया जाए। उद्योग-कारोबार को गतिशील करने के लिए जीएसटी लागू होने के चार वर्ष बाद भी जीएसटी संबंधी जो बाधाएं आ रही हैं, उन्हें दूर किया जाए। हम उम्मीद करें कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट का कार्यान्वयन उपयुक्त रूप से किया जाए। चालू वित्त वर्ष के बजट के अलावा सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर से जंग के लिए जो वित्तीय राहत पैकेज घोषित किए हैं, उनका शीघ्रतापूर्वक क्रियान्वयन किया जाएगा। निश्चित रूप से ऐसे प्रयासों से चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में आर्थिक चुनौतियां व मुश्किलें कम होंगी, विकास दर बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी और अर्थव्यवस्था भी आगे बढ़ेगी।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
Rani Sahu
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