- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अनुकंपा बनाम अधिकार
Written by जनसत्ता; अनेक मामलों में देखा जाता है कि नौकरी में रहते हुए अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार का कोई सदस्य अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग करने लगता है। इस आधार पर नौकरी देने का प्रावधान चूंकि सरकारी नियमावली में है और बहुत सारे लोगों को इस तरह नौकरियां मिलती भी रही हैं, इसलिए यह एक तरह से अधिकार मान लिया गया है।
मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस व्यवस्था पर विराम लगाते हुए कहा है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाना कोई अधिकार नहीं, बल्कि रियायत है। ऐसी नियुक्ति का मकसद प्रभावित परिवार को अचानक आए संकट से उबारने में मदद करना है। मामला यों था कि केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एक सरकारी कंपनी को नौकरी के दौरान हुई उसके एक कर्मचारी के मृत्यु पर उसकी बेटी को नियुक्ति देने पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया था।
इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। जिस कर्मचारी की मृत्यु हुई थी, उसकी पत्नी भी कहीं नौकरी कर रही थी। फिर, कर्मचारी की बेटी ने अपने पिता की मृत्यु के चौबीस साल बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने का अनुरोध किया था। इसी आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने उसके दावे को खारिज कर दिया और कहा कि किसी की मृत्यु के चौबीस साल बाद अनुकंपा पर नौकरी पाने का अनुरोध नहीं किया जा सकता।
दरअसल, अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की व्यवस्था इसलिए की गई थी कि अगर किसी परिवार का एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति की किन्हीं स्थितियों में मृत्यु हो जाती है और उस परिवार के सामने भरण-पोषण का संकट खड़ा हो जाता है, तो उसके बच्चों में से किसी को या उसकी पत्नी को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी देकर मदद की जाए।
यह उस परिवार को आर्थिक संकट से उबारने के लिए मानवीय आधार पर की गई व्यवस्था है, न कि किसी को अधिकार के रूप में प्रदान की गई है। अगर मृत कर्मचारी के परिवार में कोई पहले से नौकरी करता या ऐसा कोई काम करता है, जिससे परिवार का भरण-पोषण हो सकता है, तो अनुकंपा का नियम स्वत: कमजोर पड़ जाता है।
मगर हमारे देश में चूूंकि सरकारी नौकरियों की काफी कमी है, इसलिए लोग किसी भी तरह उन्हें पाने की कोशिश करते हैं। अनुकंपा आधार पर नौकरी पाना आसान लगता है, इसलिए अक्सर उस पर लोग अपना दावा ठोंकते देखे जाते हैं। फिर अनुकंपा में फैसला संबंधित विभाग के बड़े अधिकारियों को ही करना होता है, इसलिए उन्हें अपने पक्ष में करना आसान लगता है। इस तरह कई ऐसे लोग भी नौकरी पा जाते हैं, जिन पर अनुकंपा के नियम लागू नहीं होते। जिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ताजा फैसला दिया, वह भी कुछ ऐसा ही था।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी साफ कर दिया है कि अनुच्छेद चौदह और सोलह के तहत सभी उम्मीदवारों को सभी सरकारी रिक्तियों के लिए समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। वास्तव में जो अनुकंपा के आधार पर नौकरी के योग्य नहीं हैं, उन्हें क्यों इसका लाभ लेने दिया जाए। इस तरह बहुत सारे योग्य लोगों का हक मारा जाता है।
यह मानवीय तकाजा है कि कंपनियों और सरकारी महकमों को संकट के समय अपने कर्मचारियों के परिवार के भरण-पोषण की चिंता होनी चाहिए। मगर यह केवल अनुकंपा आधार पर नौकरी देने से ही जाहिर नहीं होती। भविष्य निधि, विशेष सहायता कोष आदि के जरिए भी मदद पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। नौकरी के मामले में योग्यता की रक्षा होनी चाहिए।