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- संचार माध्यमों से...
यद्यपि प्रदूषण का संबंध भौतिक परिस्थितियों, पर्यावरण एवं जलवायु से है लेकिन वर्तमान में संचार माध्यमों का प्रयोग वैचारिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रदूषण के संचार के लिए भी हो रहा है। मनुष्य के वातावरण में हानिकारक, जीवन नाशक एवं विषैले पदार्थों के एकत्रित होने को प्रदूषण कहते हैं। हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं या क्या खाते हैं, किस परिवेश में रहते हैं, इसका भी प्रभाव हमारी वृत्ति, विचार,मानसिक तथा मनोविज्ञान, जीवन-शैली, सामाजिक परिवेश एवं सांस्कृतिक वातावरण पर पड़ता है। वर्तमान में डिजिटल चैनलों पर प्रस्तुत की जाने वाली निरर्थक चर्चाओं व प्रिंट मीडिया पर परोसी जा रही शोध रहित, स्तरहीन, सनसनीखेज़ खबरों, असभ्य वार्तालाप, असंस्कारी आचरण, शाब्दिक पत्थरबाजियों तथा नकारात्मकता से देश का टेलीविज़न दर्शक, श्रोता एवं समाचार पाठक परेशान हैं। परिणामस्वरूप समाज में वैमनस्य, आक्रोश, नफरत, वैचारिक, व्यावहारिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रदूषण फैल रहा है जिसे हम सभी अनुभव तो कर रहे हैं, परंतु व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से सोची-समझी साजिश से जैसे हमारी मानसिकता तथा जीवन परिवेश को बदलने का कोई सोचा-समझा प्रयास किया जा रहा हो।