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- प्रतिस्पर्धा का संचार
Written by जनसत्ता: भारतीय दूरसंचार निगम लिमिटेड यानी बीएसएनएल को ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सामाजिक भूमिका को पूरा करने के लिए सरकार की सहायता की जरूरत है। इसलिए कुछ समय पहले वित्तीय पैकेज प्रदान करने का केंद्रीय कैबिनेट का फैसला स्वागतयोग्य है। लेकिन प्रबंधन को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि बीएसएनएल घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार प्रदाता है।
राहत पैकेज प्राप्त करने के बाद इसे निजी दूरसंचार प्रदाताओं के साथ बाजार प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए आकर्षक और प्रतिस्पर्धी होना होगा, क्योंकि जो पैकेज मिला है, वह करदाताओं का पैसा है। जब निजी क्षेत्र का विकास नहीं हुआ था तब बीएसएनएल का एकाधिकार था, लेकिन अब उसे निजी दूरसंचार कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में प्रदर्शन करना है। पिछली अवधि में बीएसएनएल ने अपने कर्मचारियों की संख्या को कम किया है, जिससे अब वह बहुत हल्का जहाज बन गया है। सरकार ने बीएसएनएल को अपनी सेवाओं को अपग्रेड करने में मदद करने के लिए स्पेक्ट्रम के साथ-साथ आर्थिक सहायता भी निर्धारित की है। अब जिम्मेदारी बीएसएनएल की है।
पृथ्वी पर मनुष्य एक समझदार प्राणी है। वह समझता है कि किससे हमारा लाभ है, किससे हानि। लेकिन वह अपने भौतिक सुख के चक्कर में प्रकृति का दोहन लगातार कर रहा है। चाहे वह पेड़ों की कटाई हो या जल संरक्षण की बात, बड़े-बड़े प्राकृतिक जंगलों को काट कर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं, रिहाइशी इलाके बनाए जा रहे हैं, जिससे प्रकृति का नुकसान हो रहा है।
पृथ्वी से छोटे-मोटे जीव विलुप्त होते जा रहे हैं। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते थे। आज हर कोई प्रकृति पर बात करने के लिए तैयार रहता है, पर जब प्रकृति का दोहन होता है तो कोई नहीं बोलता है। महान रूसी लेखक लियो टालस्टाय के अनुसार इंसान और प्रकृति के बीच की कड़ी को बनाए रखना जीवन और खुशी की पहली शर्त है।
आज प्रकृति ने अपना मिजाज बदल लिया है, जिसका अनुभव हम सभी कर रहे हैं। मौसम में बदलाव स्पष्ट नजर आ रहा है। सयम-समय पर प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है। वजह यही लगती है कि हम संसाधनों का जरूरत से ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। आज आवश्यकता है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। सरकार के साथ-साथ आम आदमी भी प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है। प्रकृति और आम मनुष्यों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। जबकि प्रकृति के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है।