सम्पादकीय

बीजेपी सरकार में सांप्रदायिक हिंसा के मामले पहले घटे, फिर बढ़ गए

Rani Sahu
2 May 2022 2:05 PM GMT
बीजेपी सरकार में सांप्रदायिक हिंसा के मामले पहले घटे, फिर बढ़ गए
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हिंदू त्योहार रामनवमी के एक हफ्ते बाद कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं

आकाश गुलंकर

हिंदू त्योहार रामनवमी के एक हफ्ते बाद कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं. ऐसे में News9 आपको भारत में हुए सांप्रदायिक दंगों के इतिहास से रूबरू करा रहा है. इस रिपोर्ट में पिछले सात साल के दौरान हुए दंगों के साथ-साथ 1947 के बाद के सांप्रदायिक दंगों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित नए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 के मुकाबले 2020 में सांप्रदायिक हिंसा के मामले दोगुने हो गए थे. [https://ncrb.gov.in/en/crime-india] 2014 के बाद सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में पहले गिरावट और बाद में उछाल से देश के राजनीतिक परिदृश्य में आए बदलाव का पता चलता है. अब हम जानते हैं कि हिंदुत्व का प्रचार करने वाली बीजेपी सरकार के कार्यकाल में क्या-क्या हुआ?
चार्ट 1: 2014 से भारत में सांप्रदायिक दंगे
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी तो सांप्रदायिक दंगों में गिरावट देखी गई. हालांकि, 2019 से 2020 तक सांप्रदायिक दंगे लगभग दोगुने बढ़ गए. 2014 के दौरान देश भर में सांप्रदायिक दंगों के कुल 1127 मामले सामने आए. यह आंकड़ा 2015 में घट गया और पूरे देश में 789 सांप्रदायिक दंगे हुए. 2016 में कुल 869 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 80 ज्यादा थे. वहीं, 2017 के दौरान सांप्रदायिक हिंसा के कुल 723 मामले दर्ज हुए. 2019 में भगवा पार्टी की सरकार ने सत्ता में वापसी की. एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो उस साल महज 438 सांप्रदायिक दंगे हुए. हालांकि, 2020 में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई, क्योंकि देशभर में सांप्रदायिक हिंसा के 857 मामले दर्ज किए गए. साल 2021 के सांप्रदायिक दंगों के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं.
सांप्रदायिक और जातिगत टकराव की वजह से हुए दंगे
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि सांप्रदायिक हिंसा के मामलों के अलावा सांप्रदायिक और जातिगत टकराव की वजह से होने वाले दंगों में भी 2014 के बाद से गिरावट आई.
चार्ट 2: भारत में जाति/धर्म/संप्रदाय आधारित दंगे
वर्ष 2015 और 2016 के दौरान सांप्रदायिक और जातिगत टकराव के आधार पर होने वाले दंगे सबसे ज्यादा हुए. 2015 में कुल 884 सांप्रदायिक दंगे हुए, जो अगले वर्ष यानी 2016 में 434 रह गए. इसी तरह इन दोनों वर्षों के दौरान जातिगत टकराव के क्रमशः 2428 और 2295 मामले सामने आए. इसी अवधि के दौरान जातिगत संघर्ष की वजह से होने वाले दंगों में थोड़ी गिरावट देखी गई. 2020 में देशभर में 167 सांप्रदायिक दंगे हुए, जबकि इसी साल जातिगत टकराव की वजह से 736 दंगे दर्ज किए गए.
सांप्रदायिक दंगों से मौतें
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2020 तक देशभर में हुए सांप्रदायिक दंगों में कुल 180 लोगों ने अपनी जान गंवा दी. इनमें से एक तिहाई से अधिक मौतें (62 मौतें) साल 2020 के दौरान हुईं. यह वही साल है, जब नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगे हुए थे.
चार्ट 3: सांप्रदायिक कारणों से हुईं मौतें
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 और 2019 के दौरान सांप्रदायिक हिंसा में कुल 43 लोगों ने अपनी जान गंवा दी. 2018 में 19 तो 2019 में 24 लोगों की मौत हुई थी. आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सांप्रदायिक हिंसा में कुल 99 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि, साल 2020 तक यह संख्या हर साल 30 मौतों से कम रही.
सांप्रदायिक हिंसा की टाइमलाइन
भारत में सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास काफी बड़ा है. इसकी शुरुआत 1947 में देश की आजादी के ठीक बाद हुई थी. हिंदू-मुस्लिम संघर्ष हमेशा देश में लगभग सभी सांप्रदायिक दंगों का केंद्र रहा है. 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख समुदाय पर अत्याचार किया गया. अब हम पिछले 75 साल के दौरान भारत में हुए कुछ विनाशकारी सांप्रदायिक हिंसा के मामलों पर नजर डालते हैं.
Rani Sahu

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