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- संकट में 'साम्प्रदायिक...
आदित्य चौपड़ा। किसी भी देश की शक्ति संकट के समय ही पता चलती है। यह शक्ति उस देश के लोगों की ही होती है, क्योंकि राष्ट्र निर्माण 'लोगों' के निर्माण से ही होता है। हम देख रहे हैं कि कोरोना के भयंकर कहर के बीच किस तरह हजारों लाशें गंगा नदी की रेत में दफन की जा रही हैं और सैकड़ों लाशें इसके पानी में तैर रही हैं। इसका मतलब यही निकलता है कि सरकारी व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं और बदहाली में पहुंच गई हैं। जाहिर है कि ऐसे कहर से समाज छटपटा रहा है और शासनतन्त्र की विफलता से बेजार हो रहा है मगर किसी भी सूरत में अपनी सामूहिक ताकत को कम नहीं होने देना चाहता और कोरोना का जवाब संगठित रूप से देना चाहता है। इसका उदाहरण हाल ही में सम्पन्न हुआ 'ईद' का त्यौहार है। इस मीठी ईद के त्यौहार को भारत के मुस्लिम भाइयों ने इस तरह मनाया कि कोरोना को वैज्ञानिक तरीके से मात दी जा सके। इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस बार दिल्ली की जामा मस्जिद जैसी एेतिहासिक इमारत सूनी रही और इसके आसपास का इलाका सुनसान रहा। इससे पूरी दुनिया को यही सन्देश गया कि भारतीय मुसलमान सबसे पहले अपने उस समाज की चिन्ता करते हैं जिसके वे अभिन्न अंग हैं। अपने धार्मिक कृत्यों से पहले उन्होंने समाज की चिन्ता की और सिद्ध किया कि धार्मिक पहचान राष्ट्रीय पहचान से ऊपर नहीं होती। इसके साथ यह जानना भी जरूरी है कि भारतीय समाज की रग-रग में हिन्दू-मुस्लिम एकता किस तरह समाई हुई है।