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सद्भाव और भाईचारे के माहौल में बाधा पैदा होती है तो इसका आखिरी नुकसान धर्म और आस्था को ही होगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में शोभायात्रा या धार्मिक जुलूस निकालने को लेकर जो आदेश जारी किए हैं, वह न केवल वक्त का तकाजा है, बल्कि देश को एक व्यवस्था के तहत सुचारु रूप से चलाने के लिए जरूरी कदम भी है। यह छिपा नहीं है कि बीते कुछ दिनों से देश के अलग-अलग हिस्सों में पर्व-त्योहारों के मौके पर निकाली गई शोभायात्रा या धार्मिक जुलूस के दौरान किस तरह के अराजक हालात पैदा हुए। इन जुलूसों की प्रकृति से लेकर इसके प्रति होने वाली प्रतिक्रियाओं से यही सामने आया कि इनमें शामिल लोगों के लिए आस्था, धर्म और उसके मूल तत्त्व से कोई लेना-देना नहीं था।
सद्भाव और प्रेम के संदेश के साथ शोभायात्रा निकालने और आपसी भाईचारे को मजबूत करने की कोशिश की जरूरत तक नहीं समझी गई। इसके अलावा, पर्व-त्योहारों के मौके पर उत्सव या जुलूस का आयोजन करने वालों ने इस बात पर विचार करना भी जरूरी नहीं समझा कि देश एक कानून-व्यवस्था के तहत चलता है और इस तरह के सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए कानूनी औपचारिकता पूरी करनी चाहिए। यही वजह है कि शोभायात्राओं के दौरान कोई अप्रत्याशित घटना होती है तो इसकी जिम्मेदारी तय करना कई बार मुश्किल हो जाता है।
इस लिहाज से देखें तो उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश मौजूदा माहौल में एक जरूरी कदम है, जिसके तहत अब राज्य में कोई भी धार्मिक जुलूस निकालने के लिए कई शर्तें लगाई गई हैं। इसके मुताबिक, शोभायात्रा निकालने से पहले इसके आयोजकों से शांति-सौहार्द कायम रखने के संबंध में एक शपथ-पत्र लिया जाएगा। इसके अलावा, सिर्फ उन्हीं धार्मिक जुलूसों को इजाजत दी जाएगी, जो पारंपरिक तौर पर पहले से आयोजित होती आ रही हों।
नए आयोजनों को ऐसे जुलूस निकालने की अनावश्यक अनुमति नहीं दी जाएगी। दरअसल, पिछले कुछ समय से किसी भी धर्म से संबंधित समुदाय की पूजा पद्धतियों से जुड़ी गतिविधियों से लेकर पर्व-त्योहारों के मौके पर सद्भाव और आपसी भाईचारे के बजाय कहीं प्रत्यक्ष, तो कहीं परोक्ष रूप से एक आशंका और तनाव का माहौल देखा जा रहा है। हालत यह है कि कई लोग यह सोचने लगे हैं कि सार्वजनिक उत्सव या त्योहार शांति से गुजर जाएं।
जाहिर है, प्रेम और सद्भाव के मूल संदेश से अभिन्न रही धार्मिक आस्थाओं की अभिव्यक्ति अब आश्वस्ति के बजाय माहौल में आशंका, डर और तनाव घोल रही है। नतीजतन, कई जगहों पर अलग-अलग समुदायों के बीच बिना किसी वजह के भी चिंताजनक दूरी बढ़ रही है। यह स्थिति किसके हित में है? बिना किसी उचित दलील के महज प्रतिक्रिया के तौर पर किसी की पूजा पद्धति के मुकाबले अपनी आस्था के प्रदर्शन को आक्रामकता और टकराव का स्वरूप देकर धर्म को कैसे बचा लिया जाएगा?
किस धर्म के सूत्र अन्य आस्था पद्धतियों से प्रतिद्वंद्विता की शिक्षा देते हैं? ऐसी गतिविधियों से कानून-व्यवस्था की जो समस्या खड़ी होती है, उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा? इन स्थितियों के मद्देनजर समाज और देश में शांति और सद्भाव कायम रखने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश एक स्वागतयोग्य कदम है। इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने भी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के लिए पहले अनुमति लेने का निर्देश जारी किया था और नासिक में स्थानीय प्रशासन ने फौरी कदम उठाए थे। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर किसी भी धार्मिक आयोजन, जुलूस या शोभायात्रा से शांति, सद्भाव और भाईचारे के माहौल में बाधा पैदा होती है तो इसका आखिरी नुकसान धर्म और आस्था को ही होगा।
सोर्स: जनसत्ता
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