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चंद दिनों पहले की ही तो बात है. जब पंजाब (Punjab) की राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) सीधे आसमान से उतरे किसी ‘स्पाइडरमैन’ की मानिंद अचानक ही ‘लैंड’ हो गए थे
संजीव चौहान चंद दिनों पहले की ही तो बात है. जब पंजाब (Punjab) की राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) सीधे आसमान से उतरे किसी 'स्पाइडरमैन' की मानिंद अचानक ही 'लैंड' हो गए थे. वो सिद्धू जो कई साल से आंखे खोले और मुंह बंद किए हुए पंजाब की राजनीति की हर सांस को धीरे-धीरे ही सही मगर जैसे-तैसे आगे-पीछे, दाएं-बाएं खिसका रहे थे. पंजाब के राजनीतिक गलियारों में अपने कदमों की कोई आहट दिए बिना, दो-तीन सप्ताह पहले अचानक जिस तरह से वह हवा में कलाबाजी खाते हुए, पंजाब की राजनीति के मैदान में आ कूदे, उनके अचानक आ धमकने के "शोर" ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की जिंदगी में मानों तूफान ला दिया.
बिचारे कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) जैसे-तैसे ही सही अपनी सरकार की गाड़ी को ढो-घसीट रहे थे. कल के काबिल फौजी अफसर कैप्टन अमरिंदर सिंह के ऊपर कटे पेड़ की मानिंद आ गिरे सिद्धू ने सीएम साहब को सोचने-संभलने तक का मौका नहीं दिया. कैप्टन अमरिंदर आसमानी छलांग लगाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को क्या समझते? कांग्रेसी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी और वरिष्ठ कांग्रेसी हरीश रावत तक सिद्धू की ऊंची कूद का मतलब नहीं समझ सके. जब तक हरीश रावत और कैप्टन अमरिंदर सिंह की समझ में सिद्धू की 'औचक कूद' का मतलब आया. तब तक बात उस हद के पार जा चुकी थी जहां, अमरिंदर और हरीश रावत जैसे मंझे हुए कांग्रेसी नेता 'चित' हो चुके थे.
क्रिकेटर की नजर में पहले से थे 'कैप्टन'
कैप्टन जब से पंजाब के चीफ मिनिस्टर बने तभी से सिद्धू के दिन उलटे हो गए थे. कैप्टन की टेढ़ी नजर से जब सिद्धू साहब नहीं बच सके तो भला उनकी पत्नी (नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी और पंजाब की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री) भी पंजाब की उस राजनीतिक उठा-पटक में खुद को कैसे 'एडजस्ट' कर पातीं. मतलब मिस्टर एंड मिसेज सिद्धू को मौका हाथ आते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने तिकड़म से अलग-थलग कर दिया. उम्र के हिसाब से भले ही नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन अमरिंदर से कुछ साल या महीने छोटे हों. सिद्धू ने भी मगर कच्ची गोलियां नहीं खेलीं थीं. जब वक्त साथ नहीं था तब चुप्पी साध गए. वक्त आया तो राज्य की राजनीति के अखाड़े में कैप्टन को ही 'क्लीन-बोल्ड' कर डाला. रातों-रात ऐसी गुगली घुमाई कि उम्रदराज कैप्टन अमरिंदर सिंह यह तक नहीं समझ सके कि, यह गुगली सिद्धू ने चली है या फिर सिद्धू से किसी और ने पार्टी में (कांग्रेस में) चलवाई है.
बहरहाल राजनीति है. जग-जाहिर है. इसमें कभी कोई अनुभवी, अनुभवहीन, छोटा या बड़ा नहीं होता है. जिसने सही समय पर 'दांव' या 'चाल' चल दी. और जिसका चाल या दांव सही बैठ गया वही 'नेता' साबित हो जाता है. पंजाब कांग्रेस में यही हो रहा है. तब से जब से वहां की राजनीति में लंबे समय से खामोश बैठे नवजोत सिंह सिद्धू ने छलांग मारी है. सिद्धू ने रातों-रात जिस तरह से पंजाब की राजनीति का चेहरा बदल डाला. उसकी कल्पना तो राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत भी नहीं कर पाए. उम्र में भले ही हरीश रावत और कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू से बड़े होंगे मगर, जिस तरह का पासा उम्र में उन दोनो से छोटे होकर भी नवजोत सिंह सिद्धू ने फेंका वो वाकई खतरनाक था.
जब मौका हाथ लगा तब दे डाली 'घुड़की'
किस हद का खतरनाक यह जमाने ने देखा. कोई दबी-छिपी बात नहीं है. अतीत में भी अक्सर कांग्रेस पार्टी को 'घुड़की' देते रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को जब मौका हाथ लगा, वे अपना दांव चलने से नहीं चूके. हाल ही की बात की जाए तो पहले उन्होंने साम-दाम-दण्ड-भेद जैसे बन पड़ा, कांग्रेस आला-कमान को काबू किया. उसके बाद पंजाब विधानसभा के आगामी चुनावों के लिए राज्य के प्रभारी बनाकर भेजे गए हरीश रावत को सिद्धू ने बताया कि वे (हरीश रावत) उनके साथ (नवजोत सिंह सिद्धू के साथ) कैसे चलें? ताकि सिद्धू को उनसे (हरीश रावत) कोई शिकवा-शिकायत न होने पाए.
जिस नवजोत सिंह सिद्धू को बीते चंद दिन पहले तक कैप्टन अमरिंदर सिंह और हरीश रावत से मंझे कांग्रेसी और राजनीति के खिलाड़ी 'नौसिखिया' या 'बच्चा-बुद्धि' समझ रहे थे. उस बाल-बुद्धि समझे जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने पार्टी के मंझे हुए खिलाड़ियों (हरीश रावत, कैप्टन अमरिंदर सिंह) को एक ही झटके में कहा जाए कि 'बुद्धिमान' बना डाला, तो भी शायद गलत नहीं होगा. बेचैनी के आलम में जब नवजोत सिंह सिद्धू दिल्ली-पंजाब के बीच चक्कर काट रहे थे. तब शायद कैप्टन अमरिंदर सिंह यही सोच रहे होंगे कि, दिल्ली (कांग्रेस हाईकमान के पास) चक्कर काटने से कुछ भला होने वाला नहीं है.
कैप्टन देर में समझे 'खिलाड़ी' की चाल
असल में पंजाब से दिल्ली की ताबड़तोड़ यात्राओं का जब रिजल्ट आया तो पता चला कि, सिद्धू तो कांग्रेस के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष बना डाले गए हैं. उधर अति-विश्वास से लबरेज और उस समय तक पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमें बैठे कैप्टन अमरिंदर सिंह तब भी नहीं समझ पाए कि, आने वाला वक्त उनके लिए किस कदर कष्टकारी साबित हो सकता है. मतलब सिद्धू ने पहले पंजाब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी संभाली. उसके बाद कैप्टन की पंजाब से सल्तनत समेटने की बिसात बिछा दी. वो बिसात जिस पर खेली गई हर बाजी सिद्धू के पक्ष में ही रही. मतलब जब तक कुर्सी पर जमे कैप्टन अमरिंदर कुछ समझ पाते, तब तक नवजोत सिंह सिद्धू ने उनके नीचे से कुर्सी ही खिंचवा डाली.
कैप्टन की कुर्सी गई तो उनके दाएं-बाएं मौजूद अपनों का जो हश्र होना था. वो भी खुलेआम जमाने ने देखा. न मंत्री बचे न मंत्रीमंडल. सब तहस नहस हो गया. एक उस सिद्धू के चले पैंतरे की बदौलत, जिस सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह 'भाव' तक नहीं दे रहे थे. सोच रहे थे कि सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष का पद लेकर कोई बहुत बड़ा कमाल नहीं कर डाला है. यह तो रही कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच खींचतान के तमाशे से सामने आए परिणाम की बात. अब केवल सिद्धू पर ही बात भी करना जरूरी है. कैप्टन को पंजाब की राजनीति और मुख्यमंत्री की कुर्सी से पूरी तरह ठिकाने लगवाकर या कहिए किनारे करवाकर, सिद्धू खुद को पार्टी में सबसे बड़ा 'खिलाड़ी' मानने की गलती कर बैठे हैं.
सिद्धू की सोच भी गलत निकली
सिद्धू समझने लगे कि अब दिल्ली में मौजूद कांग्रेस आला-कमान उनकी उंगलियों पर नाचेगा. यह सोच मगर सिर्फ सिद्धू की थी न कि कांग्रेस आला-कमान की. सिद्धू को हाईकमान ने पहला झटका उनके द्वारा नामित शख्स को राज्य का मुख्यमंत्री न बनाकर दिया. जिसे सिद्धू मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस हाईकमान के सामने परोसकर आए थे. उसकी जगह हाईकमान ने चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बना दिया. सिद्धू की हर बाजी उन्हें जिताएगी ही, यह गलतफहमी सिद्धू के दिल-ओ-दिमाग से फिर भी 'डिलीट' नहीं हुई. कैप्टन और उनके कुनबे (मंत्रीमंडल) को कुर्सी से किनारे करवाने वाले सिद्धू को धीरे-धीरे और झटके एक के बाद एक लगने शुरू हुए.
सिद्धू की इच्छा के विरूद्ध जिन चन्नी को कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के मुख्यमंत्री की बागडोर सौंपी, वही चन्नी धीरे-धीरे क्या चंद दिनों के अंदर ही सिद्धू को आंखे तरेरने लगे. सिद्धू जब तक पुख्ताई से कुछ समझ पाते तब तक उनकी पकड़ शायद चन्नी पर कमजोर पड़ चुकी थी. आलम यह देखने को मिलने लगा कि सिद्धू को सार्वजनिक स्थलों पर भी नव-नियुक्त मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने साथ लाने-ले जाने में खुद की तौहीन समझनी शुरु कर दी. चन्नी की यह बेरूखी भी सिद्धू के दिल-ओ-दिमाग को झकझोरने के लिए कम नहीं थी. मतलब एक के बाद एक जब सिद्धू को झटके लगने लगे, तो सिद्धू ने अंदर की राजनीति समझने की कोशिश की.
'अंदर की बात' समझते ही तिलमिलाया 'खिलाड़ी'
जब सिद्धू की समझ में 'अंदर की बात' आई तो उन्होंने आगे देखा न पीछे. तिलमिलाए नवजोत सिंह सिद्धू ने चार दिन पहले ही बड़ी मशक्कत के बाद हासिल पंजाब राज्य कांग्रेस मुखिया की कुर्सी (अध्यक्ष पद से इस्तीफा) को ही लात मार दी. बस यह सिद्धू की वो चाल थी जिसका हल्का-फुल्का असर कांग्रेस हाईकमान पर पड़ा. मगर उतना भी नहीं जितना सिद्धू को उम्मीद थी. बहरहाल कुल जमा अगर यह कहा जाए कि, इन दिनों जब से पंजाब कांग्रेस की राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू ने खुलकर छलांग लगाई है, तब से उथल-पुथल मची है. और हर कोई पंजाब कांग्रेस में इन दिनों अपनी जेब में एक सफेद कागज और एक कलम लेकर चलने को मजबूर है. इस आशंका में पता नहीं कहां किस गली, नुक्कड़, चौराहे पर 'इस्तीफा-इस्तीफा' का खेल शुरू हो जाए. और किसको कहां बे-वक्त ही "इस्तीफा" लिखने की जरूरत पड़ जाए.
मतलब जब से सिद्धू ने पंजाब की राजनीति की ओर आंख उठाकर या तरेर कर देखा है, तब से वहां शुरू हुई उथल-पुलथ है कि, शांत होने का नाम ही नहीं ले रही है. पहले सिद्धू ने राज्य के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रीमंडल से इस्तीफा-इस्तीफा का खेल खिलवा डाला. अब खुद सिद्धू ही 'इस्तीफा-इस्तीफा' खेलने में मशगूल हैं. दूसरे मायने में यह भी कह सकते हैं कि इन दिनों पंजाब राज्य कांग्रेस में 'राजनीति' के भीतर जो 'राजनीति' चल रही है. वो समझ भले ही किसी को न आये, मगर खेलने को पार्टी का हर 'खिलाड़ी' या फिर 'अनाड़ी' नेता खेलने पर उतारू है. इस उम्मीद में न मालूम कब किस्मत खुल जाए? सिद्धू साहब की तरह जो रातों रात राज्य पंजाब के प्रमुख बन गए. रातों रात इस्तीफा देकर जमीन पर आ गए. इस तमाम उठा-पटक के बाद अब आगे कोई और उठा-पटक नहीं मचेगी इसकी गांरटी लेने-देने वाला फिलहाल पंजाब कांग्रेस में तो कोई नजर नहीं आता है.
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