सम्पादकीय

चीनी हठ से मुकाबला

Rani Sahu
12 Oct 2021 6:45 AM GMT
चीनी हठ से मुकाबला
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भारत और चीन के बीच 13वें दौर की सैन्य वार्ता से उम्मीद तो थी, लेकिन जो नतीजा निकला है, उस पर किसी को आश्चर्य नहीं होगा

भारत और चीन के बीच 13वें दौर की सैन्य वार्ता से उम्मीद तो थी, लेकिन जो नतीजा निकला है, उस पर किसी को आश्चर्य नहीं होगा। चीनी सेना अर्थात पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) भारतीय सेना द्वारा दिए गए सुझावों से सहमत नहीं थी। चीन जबरन कब्जाए गए मोर्चों से पीछे हटने को तैयार नहीं है। अफसोस की बात है, भारत ने बैठक के दौरान जो सुझाव दिए, उन पर चीन ने ज्यादा गौर नहीं किया और न ही अपनी ओर से कोई प्रस्ताव रखा। जाहिर है, विवाद के बिंदुओं पर वार्ता बिल्कुल आगे नहीं बढ़ी है। साथ ही, ऐसा लगता है कि चीन यथोचित समाधान के प्रति सजग नहीं है, इसलिए उसने आक्रामक रवैया बनाए रखा है। उसने भारत के प्रस्ताव या मांगों को अनुचित और अवास्तविक करार दिया है। मतलब, चीन को हर हाल में समाधान अपने हित के अनुरूप चाहिए। वह सीमा पर निर्जन क्षेत्रों में आगे बढ़ आया है और अब पीछे हटना नहीं चाहता। उसकी आक्रामकता उसकी कमजोरी और गलत हरकत की ढाल है। क्या भारत इस ढाल को तोड़ पाएगा? क्या हम अगली वार्ता से कोई उम्मीद रखें?

चीन यह दिखाना चाहता है कि वह सीमा पर स्थिति को आसान बनाने की कोशिश कर रहा है, ईमानदारी दिखा रहा है, लेकिन क्या वह जमीनी स्तर पर वाकई ईमानदार है? चीन को भारत के नक्शे की परवाह कभी नहीं रही, वह अपने नक्शे खुद बनाता-बढ़ाता रहता है। जमीन खरोच-खरोचकर हथियाने की उसकी रणनीति नई नहीं है, लेकिन अब भारत का रुख बदला हुआ है, जिससे चीन को परेशानी हो रही है। भारत अगर अपनी सीमा में चीनी सैनिकों को आने और ठिकाने बनाने दे, तो उसे कोई दिक्कत नहीं, लेकिन जब भारत नक्शे के अनुसार अपनी जमीन वापस लेना चाहता है, तब वह अलग राग छेड़ रहा है। 13वें दौर की वार्ता में हॉट स्प्रिंग्स में तैनात चीनी सैनिकों को पीछे हटाने की मांग शामिल थी, चीन को पीछे हट जाना चाहिए था, लेकिन उसकी मंशा तनाव बढ़ाने और जमीन कब्जाए रखने की है। अक्सर देखा गया है कि भारत जब भी क्वाड या अन्य गठबंधनों की ओर झुकता है, तो चीन आक्रामकता बढ़ा देता है। इस बातचीत से पहले चीन की अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश कतई अचरज में नहीं डालती। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि चीन का रुख आक्रामक ही रहेगा, तो फिर उपाय क्या है?
चीन के साथ वार्ता जारी रखना कूटनीतिक रूप से जरूरी है। भारत को अपने तर्कों में धार पैदा करने के साथ ही कूटनीतिक शालीनता का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। संयम रखना समय की मांग है। बेशक, चीन बिना लडे़ भारत के लिए खर्च बढ़ा रहा है, तो हमें अपनी कमाई अर्थात अर्थव्यवस्था पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। आत्मनिर्भरता का अभियान कोरा नारा न रहे। हमें ईमानदारी से देखना होगा दिन-प्रतिदिन चीन पर हमारी निर्भरता घट रही है या नहीं? निर्भरता अगर बढ़ेगी, तो चीन का रवैया भी आक्रामक होगा। वह अपनी कथित बढ़ी हुई ताकत के जरिये भारत से जुड़े देशों के बीच अपना बाजार बढ़ा रहा है, तो भारत को भी पीछे नहीं हटना चाहिए। चीन से जो कंपनियां भाग रही हैं, अगर वे भारत आने लगें, तो सैन्य मोर्चे पर भी हमारा तनाव कम होगा। सैन्य मोर्चे पर जहां दृढ़ता चाहिए, वहीं आर्थिक और कूटनीतिक मंचों पर भारत की सक्रियता व तेज बढ़त ही असली समाधान है।
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