सम्पादकीय

समाज के रंग: ओफ्फोह मंदिरा..! तुम तो पति के जाते ही छुट्टी हो गई..!

Rani Sahu
8 May 2022 5:41 PM GMT
समाज के रंग: ओफ्फोह मंदिरा..! तुम तो पति के जाते ही छुट्टी हो गई..!
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अभिनेत्री, एंकर, फैशन डिजाइनर और मॉडल मंदिरा बेदी इस बार फिर ट्रोलर्स के निशाने पर हैं

स्वाति शैवाल

अभिनेत्री, एंकर, फैशन डिजाइनर और मॉडल मंदिरा बेदी इस बार फिर ट्रोलर्स के निशाने पर हैं। कारण, अरे उन्हें याद ही नहीं कि कुछ ही समय पहले उनके पति दिवंगत् हुए हैं। वे तो जैसे भूल ही गईं कि अब उन्हें रंगीन कपड़े पहनना, दोस्तों के साथ सामान्य जिंदगी बिताना, हंसना- हंसाना आदि वर्जित है।
दरअसल, उन्हें तो हर वक्त उदास चेहरा बनाए, रोते-बिसूरते हुए, हल्के रंगों के साथ जीवन बिताना था। लेकिन आखिर हमारा समाज किस दिन के लिए है। क्या करें, क्या कहें, बिचारे समाज को ही हर बार मॉरल रिस्पांसिबिलिटी लेते हुए आगे आना पड़ता है। ये मुई औरतें समझती ही नहीं कुछ। भई अब पति चला गया तो तुम्हें संयम में रहना होगा। इतना भी नहीं जानतीं..! बड़ी छुट्टी हो रही हो.! दे तो दिए तुम्हें पति के स्वर्गवास के बाद भी रंगीन कपड़े पहनने, बिंदी लगाने और सामाजिक उत्सवों में जाने के मौके! इतना काफी नहीं है क्या? और क्या चाहती हो?
मंदिरा बेदी खुद के दम पर आगे बढ़ने वाली मजबूत महिला हैं। उन्होंने हर स्थिति में खुद को मजबूती से खड़ा किया है। आज से लगभग 2 दशक पहले जब वे क्रिकेट जैसे आदमियों के खेल यानी आईसीसी वर्ल्ड कप जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन में बतौर होस्ट मौजूद थीं। तब भी उनको लेकर कई कटाक्ष किए गए।
उनके क्रिकेट ज्ञान से लेकर उनके कपड़ों तक पर छींटाकशी की गई लेकिन मंदिरा उन सबको सहजता से झाड़ झटक मुस्कुराती हुई अलग हट गईं। इस बीच उन्होंने पर्दे पर दिखने को लेकर भी कई वर्जनाएं तोड़ीं। उन्होंने बेबाक इंटरव्यू दिए, फिटनेस पर काम करते हुए खुद के शरीर को भी ताकतवर बनाया।
ये सबसे खास बात है कि मंदिरा के हर निर्णय और हर कदम का सम्मान करने के लिए उनके पति राज कौशल खड़े थे। तब भी जब लोग मंदिरा के कपड़ों पर कमेंट्स कर रहे थे, तब भी जब लोग मंदिरा की पर्सनालिटी को लेकर बातें कर रहे थे और तब भी जब इस कपल ने अपने जीवन में चार साल की बेटी तारा कौशल का स्वागत करने का निर्णय लिया। दोनों ने ऐसी इमेच्योर बातों को नजरअंदाज किया जो बेवजह की झूठी रिवायतों पर बुनी गई थीं। क्योंकि वे जिंदगी में खुशियों के पल जुटाना जानते थे, न कि शिकायतों का पुलिंदा लेकर घूमना।
बड़ी बात यह कि राज के अचानक चले जाने के बाद भी मंदिरा ने अपने दुख को अपने बच्चों की भावनाओं के बाद रखा। उन्होंने इस बात की गहराई को समझा कि छोटी उम्र में उनका बेटा यदि अपने पिता का अंतिम संस्कार करेगा तो इससे उसके बाल मन पर कितना बुरा असर पड़ेगा। यह सोचते हुए मंदिरा ने वह काम खुद किया। यहां वर्जनाएं तोड़ने, मॉर्डन बनने और दिखावा करने से अलग सिर्फ एक मकसद था, अपने बच्चे के मन पर पड़ने वाले किसी भी नकारात्मक असर से उसकी रक्षा करने का। लेकिन उस समय भी मंदिरा को लोगों ने उनके कपड़ों और उस साहसी क़दम के लिए ट्रोल किया। यहां तक कहा गया कि मंदिरा को तो अपने पति के जाने का गम तक नहीं! क्योंकि मंदिरा ने बजाय दुख दिखाने के उस समय धैर्य और हिम्मत से काम लिया।
महिलाएं और हमारा समाज
हमारे समाज ने पहले से महिलाओं के लिए कई विधान बनाए हैं। उनके जीवन के हर पड़ाव के लिए तयशुदा सामाजिक बेड़ियां हैं। जिनमें बंधे होना उनके आदर्श और सभ्य होने की परिचायक होती हैं। सती प्रथा से लेकर विधवा महिला के सिर मुंडा देने, उसके एक समय भोजन करने या अपने पसन्द के भोजन को त्याग देने, उसे सिर्फ प्रभु भक्ति में रत रहने, आदि जैसे कई नियम आज भी हमारे देश में दबे-छुपे या खुलेआम दोनों तरह से लागू किए जा रहे हैं।
तुर्रा ये कि विधवा स्त्री के मन में परपुरुष के लिए या सामान्य भौतिक जीवन के लिए लालसा न उठे, इसलिए समाज ने ये नियम बनाए हैं और विधुर के लिए? किसी पुरुष की जीवनसंगिनी के न रहने पर उससे सामान्य जीवन जीने का कोई अधिकार छीना नहीं जाता। न ही उसे किसी विशेष वेशभूषा को धारण करने को कहा जाता है। बल्कि वह बेचारगी का प्रतीक हो जाता है।
अब भी ज्यादातर मामलों में कुछ ही समय में यह कहकर उसकी दूसरी शादी कर दी जाती है कि घर, बच्चे और पुरुष को संभालने वाली आ जाएगी तो अच्छा होगा।
अचरज की बात है कि हमारे समाज में एक बड़ा वर्ग (जिनमें पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं) यह मानता है किसी शुभ कार्य के दौरान विधवा या परित्यक्ता स्त्री की शक्ल दिख जाना अशुभ होता है। लेकिन उसी स्त्री के साथ बलात्कार या शोषण करना जायज हो जाता है। गंगा के तट पर सिर मुंडाए दिखाई देने वाली ऐसी कई स्त्रियों के शोषण का लंबा इतिहास है और आज तक कोई उसे रोक नहीं पाया है।
मंदिरा ने बिना शिकवे शिकायत के अपनी जिंदगी को जिया है। यह किसी भी इंसान का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी जिंदगी कैसे जीना चाहता है। जब तक कि उसके किसी क्रियाकलाप से किसी अन्य का नुकसान नहीं होता।
मंदिरा की जिंदगी में जो भी गलत या सही है उसका निर्णय और उसके परिणाम भी उनके ही हैं। यह किसी और के पेट मे दर्द की वजह कैसे हो सकते हैं भला? इसलिए बेहतर है कि उन्हें उनका जीवन उनकी मर्जी से जीने के लिए छोड़ दिया जाए।
काश कि मंदिरा की ही तरह हर एक महिला अपने जीवन को लेकर इतनी स्ट्रांग हो कि न केवल वे इस तरह के ट्रोलर्स को नजरअंदाज कर अपना जीवन जी सकें बल्कि समय आने पर चिल्ला कर कह सकें- आय एम नीदर अलोन, नॉर अवेलेबल (न मैं अकेली हूँ, न ही उपलब्ध)।
Rani Sahu

Rani Sahu

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