सम्पादकीय

निजता का उपनिवेशीकरण

Subhi
15 Sep 2022 5:41 AM GMT
निजता का उपनिवेशीकरण
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सन 2006 में ब्रिटिश गणितज्ञ क्लाइव हंबली ने कहा था कि डेटा नया तेल है। लेकिन हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, वहां डेटा अब नया तेल नहीं है, बल्कि यह दुनिया का सबसे मूल्यवान संसाधन है।

Written by जनसत्ता: सन 2006 में ब्रिटिश गणितज्ञ क्लाइव हंबली ने कहा था कि डेटा नया तेल है। लेकिन हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, वहां डेटा अब नया तेल नहीं है, बल्कि यह दुनिया का सबसे मूल्यवान संसाधन है। डिजिटल युग के समय में डेटा के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारी निजता के अधिकार का उपनिवेशीकरण कर रही हैं। जैसे कि 2021 तक फेसबुक के पास 217 मिलियन भारतीय नागरिकों का व्यक्तिगत और निजी डेटा जमा है।

इसी तरह कई और बहुराष्ट्रीय कंपनियां है जिनके पास असीमित डेटा है, जिसके माध्यम से ये कंपनियां हमारे दैनिक जीवन के साथ-साथ हमारे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में दखल देकर निजता का उपनिवेशीकरण कर रही हैं। हमें जानकारी भी नहीं हो पा रही है और हम आभासी दुनिया की जाल में उलझ कर यथार्थ की मुश्किल में फंसते जा रहे हैं।

भारत में इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग और प्रभाव के संबंध में आर्थिक और सामाजिक असमानता के कारण यह समस्या और ज्यादा गंभीर होती दिखती है। इस तरह के संजाल से बचाने के लिए भारतीय संसद को जल्द से जल्द डेटा सुरक्षा बिल को अधिनियमित करना चाहिए। वरना एक नए तरह का नियंत्रित और बाधित माहौल बनते देर नहीं लगेगी।

विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के अंधाधुंध दोहन की वजह से कुदरत का सब्र टूट चुका है। कुदरत की चाल बदल चुकी है। विगत कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो गई है। इसी वजह से कहीं बेमौसम बरसात, बादल फटना, आगजनी, समुद्री तूफान, चक्रवात, भूस्खलन, भीषण गर्मी और सर्दी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

अमरनाथ में बादल फटने की घटना प्राकृतिक आपदाओं की देन है। बादल फटने की वजह से लगभग दो दर्जन लोग मौत का शिकार हो चुके है और चालीस से अधिक लोग लापता है। सरकार के सारे इंतजाम के बावजूद प्रकृति के आगे सभी बेबस नजर आते है। अहमदाबाद में बारिश की वजह से सड़कों पर लगभग चार फुट पानी जमा हो गया। बिहार सूखे की चपेट में है, तो पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ से तबाही का मंजर है।

विकास के नाम पर हमारी जीवनशैली से वातावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ चुका है। फलस्वरूप धरती का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। मानसून का अनियंत्रित व्यवहार मानव जीवन के लिए चुनौतियां पेश कर रहा है। समय रहते पूरी दुनिया को प्रकृति का दोहन बंद करना होगा, अन्यथा और अधिक तबाही के लिए तैयार रहना होगा।


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