सम्पादकीय

बेदर्द सर्दी

Triveni
26 Dec 2022 6:52 AM GMT
बेदर्द सर्दी
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फाइल फोटो 

कोहरे और ठंड के सितम के बीच लुढ़कता पारा चिंता बढ़ाने वाली बात है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोहरे और ठंड के सितम के बीच लुढ़कता पारा चिंता बढ़ाने वाली बात है। यहां तक कि मौसम विभाग ने भी उत्तर भारत के कई इलाकों में मौसम के लिये रेड अलर्ट जारी किया है। रविवार को सूरज कम ही नजर आया और कई जगह पारा न्यूनतम सीमाएं छूता रहा। रातें तो रक्त जमाने वाली हैं ही, दिन भी रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। साथ में घना कोहरा वाहन चालकों की जान जोखिम में डाल रहा है। मौसम विभाग आज पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में वर्षा, बर्फबारी तथा पंजाब-हरियाणा में शीत लहर चलने की भविष्यवाणी कर रहा है। यूं तो मौसम का चक्र है, गर्मी के बाद बरसात और फिर सर्दी को आना होता है। यह हमारे जीवन चक्र का हिस्सा भी है। बर्फबारी से पहाड़ों पर संचित बर्फ फिर सदानीरा नदियों के माध्यम से ग्रीष्म ऋतु में जीवन बांटती हैं। लेकिन हमारे समाज की आर्थिक विसंगति मौसम के चरम को असहनीय बनाती है। ऐसे में शीत लहर से लोगों का मरना असमानता को दर्शाता है। हर साल जब सर्दी शबाब पर होती है कई लोगों के दम तोड़ने की खबरें आती हैं। खासकर बेघर लोगों पर सर्दी कहर बरपाती है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में सरकारों की लोक कल्याणकारी भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे हैं। एक समय था कि राजा शीत ऋतु में प्रजा के दुख-दर्द जानने निकलते थे। सार्वजनिक स्थलों पर अलाव की व्यवस्था होती थी। रैन बसेरों को बनाया जाता था। लेकिन ऐसी संवेदनशीलता लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधीशों में नजर नहीं आती।ऐसे में सवाल उठता है कि देश में गर्मी में लू से, बरसात में बाढ़ से तथा सर्दी में शीतलहर से लोगों के मरने की खबरें क्यों आती हैं? निस्संदेह हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पाते हैं। दरअसल, मौसम के इस चरम में मरने वाले एक ही वर्ग के लोग होते हैं, गरीब वर्ग के। इन्हें मौसम का चरम नहीं, गरीबी मारती है। जो हमारे समाज की संवेदनहीनता और आर्थिक असमानता की ओर इशारा करती है। दरअसल, समाज का हर व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा योगदान दे तो मौसम के कहर और भूख से कोई न मरे। हमारे घरों में ऐसा बहुत सा सामान, कपड़े व गर्म वस्त्र होते हैं जो हम यदि किसी जरूरतमंद को दे दें तो कुछ जीवन जरूर बचाये जा सकते हैं। आधिकांशत: कोई गरीब नहीं होना चाहता। जमीन से उखड़े और परिस्थितियों के मारे लोग ही गरीबी का दंश झेलते हैं। कुछ अपवाद भी होते हैं,लेकिन आमतौर पर मुसीबत के मारे ही रेलवे व बस स्टेशनों पर रात काटते नजर आते हैं। जिनके प्रति समाज का संवेदनशील व्यवहार अपेक्षित है। ताकि उनके जीवन के अधिकार की रक्षा हो सके। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें प्रशासन और स्थानीय निकाय के अधिकारियों को बाध्य करना चाहिए कि रैन बसेरों की व्यवस्था हो। गरीबों को कंबल व कपड़े स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बांटे जाएं। निश्चित रूप से मौसम का रौद्र रूप मनुष्य की परीक्षा लेता है। यदि हम उसका मुकाबला करने में वंचितों की मदद करें तो कुछ असमय काल-कवलित होने से बच सकते हैं।


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