सम्पादकीय

बेलगाम होते जा रहे कोचिंग संस्थान

Gulabi Jagat
12 Feb 2025 2:26 PM GMT
बेलगाम होते जा रहे कोचिंग संस्थान
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विजय गर्ग : हाल में इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों में से एक फिटजी के कई सेंटर बीच सत्र में ही अचानक बंद हो गए। इससे लाखों की संख्या में छात्रों की पढ़ाई तो अधर में लटकी ही, अभिभावकों का विश्वास और उनकी वित्तीय स्थिति भी हिल गई । फिटजी के प्रभावित होने वाले केंद्र दिल्ली के साथ-साथ नोएडा, मेरठ, गाजियाबाद, वाराणसी, लखनऊ, भोपाल, पटना आदि शहरों के हैं, जिनमें एक-एक सेंटर में छात्रों का आंकड़ा हजारों तक पहुंच रहा था। लगभग तीन लाख प्रति छात्र सालाना शुल्क वसूलने वाले इस कोचिंग संस्थान ने जेईई और नीट यूजी की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों के बीच अपनी एक खास छवि स्थापित कर ली थी, पर अभिभावकों के सपनों को पूरा करने और युवा भविष्य को तराशने का काम करने वाले इस संस्थान को अब संदेह की निगाह से देखा जा रहा है। नोएडा पुलिस ने संस्थान के संचालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके बैंक खाते सीज कर दिए हैं। जांच के दौरान पुलिस को अलग-अलग बैंकों में फिटजी के सैकड़ों बैंक खाते मिले। कहा जा रहा है कि कई महीनों से वेतन न मिलने की स्थिति में हताश शिक्षकों द्वारा सामूहिक त्यागपत्र के कारण कई सेंटरों पर ताले पड़ गए। छात्रों और अभिभावकों के शोर मचाने पर अन्य केंद्रों से शिक्षकों को लाने के प्रयास किए गए, लेकिन वे नाकाम रहे। इस स्थिति में प्रशासन के पास कोचिंग सेंटरों का संचालन बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। कोई ठोस कानून और नियमावली के अभाव में पुलिस एवं प्रशासन अभिभावकों को कोरी सांत्वना के आलावा कुछ भी नहीं दे पाया।
प्रतिष्ठित आइआइटी संस्थानों में प्रवेश की गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि प्रतिवर्ष लगभग 14 लाख के आसपास छात्र आवेदन करते हैं। इनमें से लगभग एक प्रतिशत ही आइआइटी में प्रवेश पा पाते हैं। यह एक अलग विषय है कि प्रतियोगी परीक्षा के दुर्गम होते स्तर से प्रतियोगिता के मुख्य उद्देश्य सर्वोत्तम प्रतिभा चयनित करने की पूर्ति हो रही हो या नहीं, लेकिन इतना अवश्य है कि छात्रों एवं अभिभावकों की कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता बढ़ गई है। जैसी । प्रतिस्पर्धा जेईई को लेकर देखने को मिलती है, वैसी ही नीट - यूजी को लेकर भी । कठिन प्रतिस्पर्धा के चलते सतत मानसिक दबाव से जूझ रहे किशोरों में मानसिक अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसे बढ़ते विकार किसी से छिपे नहीं हैं। लुभावने वादों के सहारे कठिन प्रतिस्पर्धा को भुनाने वाले कोचिंग संस्थान आज शिक्षातंत्र में विद्यालयों को अप्रासंगिक कर स्वच्छंदता से पनप रहे हैं। इसकी पुष्टि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में गड़बड़ी के बाद गठित की गई उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट से होती है । इस समिति ने कहा था कि कोचिंग संस्थानों की कार्यप्रणाली से संबंधित विशेष नीति बनाई जानी चाहिए, क्योंकि उनके द्वारा एक समानांतर शैक्षणिक प्रणाली निर्मित कर ली गई है, जो सीनियर सेकेंडरी स्तर की स्कूली शिक्षा के लिए घातक साबित हो रही है। इस समानांतर प्रणाली के कारण विद्यार्थियों की स्कूली उपस्थिति में भी कमी आई है। बीते दिनों शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने भी शिक्षा संस्थानों और कोचिंग संस्थानों के बीच बढ़ते गठजोड़ पर गहरी चिंता जताई और केंद्र सरकार से दोनों के नापाक गठजोड़ को खत्म करने की सिफारिश की। इस समिति ने इस पर भी जोर दिया कि कोचिंग संस्थानों के साथ मिलकर काम करने वाले शिक्षा संस्थानों की पहचान कर उनकी मान्यता रद की जाए और उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद रोकी जाए। आज कोचिंग संस्कृति की यह स्थिति है कि छात्र स्कूल जाएं या नहीं, परंतु कोचिंग उनकी दिनचर्या का अनिवार्य अंग बन चुकी है।
2023 में फिटजी का राजस्व लगभग साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये दर्शाया गया था। देश में फिटजी जैसे अन्य कोचिंग संस्थान भी हैं, जो मोटा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन वे किसी संवैधानिक एजेंसी द्वारा विनियमित नहीं हैं। कोचिंग संस्थानों पर उपभोक्ता संरक्षण एवं वाणिज्यिक कानून भी प्रभावी रूप से लागू नहीं पा रहे हैं। नतीजन समय-समय पर छात्र ठगे जाते हैं। गत वर्ष दिल्ली में एक कोचिंग संस्थान के जरिये सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन विद्यार्थियों की उसके बेसमेंट में पानी भरने से मौत हो गई थी। इसके पहले शैक्षिक स्टार्टअप बायजूस दिवालिया घोषित हो गया था। कोचिंग संस्थानों के मनमाने तरीके से संचालन से छात्रों को केवल वित्तीय हानि ही नहीं उठानी पड़ती, बल्कि उनके समय की भी बर्बादी होती है। छात्रों के साथ अभिभावकों के सपनों पर पानी भी फिरता है। ऐसे में कोचिंग संस्थाओं की मनमानी को महज आर्थिक हानि नहीं माना जाना चाहिए। इससे छात्रों के भविष्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए कोचिंग संस्थानों के अनुचित कार्यों को गंभीर अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। इसके बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं है।
छात्रों और अभिभावकों के विश्वास को मजबूत करने के लिए कोचिंग संस्थाओं को किसी ठोस कानूनी नियमावली के दायरे में लाया जाना आवश्यक है। इस नियमावली में फीस, शैक्षिक गुणवत्ता के मानक, पाठ्यक्रम, स्टाफ का वेतन आदि महत्वपूर्ण बिंदु शामिल होने चाहिए। गुरुओं के देश भारत के शैक्षिक तंत्र की वर्तमान चुनौतियों का सामना किए बिना समाज के महत्वपूर्ण स्तंभ शिक्षक एवं छात्रों के अधिकारों को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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