- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- तबाही के बादल
एक बार फिर बादल फटने से कई पहाड़ी इलाकों में तबाही मच गई। अभी कुछ दिनों पहले ही हिमाचल प्रदेश के मनाली क्षेत्र में बादल फटने से कई घर जमींदोज हो गए थे, कई गाड़ियां बह गर्इं। अब वहां के लाहुल क्षेत्र में बादल फटा है और कई लोगों के मारे जाने, लापता होने और कई घर टूट जाने की खबरें मिली हैं। इसी तरह जम्मू के किश्तवाड़ में बादल फटने की वजह से कम से कम चार लोगों की मौत हो चुकी है, चालीस से ऊपर लोग लापता बताए जा रहे हैं। कई घर ध्वस्त हो गए हैं। ऐसी ही तबाही कुछ दिनों पहले उत्तराखंड में भी मची थी। बरसात के समय पहाड़ी इलाकों में बादल फटना अब आम घटना होती जा रही है। यह एक ऐसी आपदा है, जिसके बारे में अभी तक पूर्वानुमान लगाने के उपाय नहीं हैं। बादल फटता है तो हजारों-लाखों घनमीटर पानी आसमान से एक साथ गिर पड़ता है, जिसका वेग धरती के पेड़-पौधे, मकान सहन नहीं कर पाते। फिर अचानक सैलाब आता है और लोगों, वस्तुओं को अपने साथ तेजी से बहा ले जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि किसी-किसी इलाके में बादल कुछ अधिक जमा हो जाते हैं और वे अपनी नमी को संभाल नहीं पाते, अचानक बरस पड़ते हैं। आमतौर पर ऐसा पहाड़ी इलाकों में अधिक होता है।
हालांकि बादल फटने की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। पहले भी बादल फटते रहे हैं और उनकी मार लोगों पर पड़ती रही है, मगर पिछले कुछ दशकों में इसकी वजह से जैसी तबाही देखी जाती है, वैसी पहले नहीं होती थी। इसकी वजहें साफ हैं। एक तो यह कि पहाड़ों पर पर्यटन को बढ़ावा देने की वजह से जगह-जगह बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुए हैं। बहुत सारे होटल और दुकानें खुल गई हैं। जिन इलाकों में लोग पहले घर नहीं बनाया करते थे, वहां भी घर बनने लगे हैं। जगह-जगह कल-कारखाने खुल गए हैं, नदियों का बहाव रोक कर बिजली उत्पादन की गतिविधियां बढ़ी हैं। सड़कों को सुगम बनाने की योजनाएं भी बड़े पैमाने पर चली हैं। इन सबके चलते पहाड़ों पर खूब कटाव हुआ है। खुदाई के लिए बारूदी हमलों से कई जगह पहाड़ दरक गए हैं, जिसके चलते वहां सामान्य बरसात में भी भूस्खलन होता रहता है। फिर बादल फटने की घटना होती है तो पानी के साथ पहाड़ टूट कर नीचे के हिस्से में तबाही को कई गुना बढ़ा देते हैं।
कुवैज्ञानिकों का मानना है कि कुदरत के साथ छेड़छाड़ की वजह से बादल फटने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं। पहाड़ों में बादलों के ठहर जाने की स्वाभाविक स्थिति के अलावा बिजली उत्पादन के संयंत्रों और टेलीफोन टावरों की वजह से भी बादलों की दिशा और गति प्रभावित होती है। चुंबकीय तरंगों से सूर्य पर प्रतिकूल असर देखा जा रहा है। कई वैज्ञानिक तो सौर-तूफान की आशंका भी व्यक्त करने लगे हैं। ऐसे में एक बार फिर यह बात रेखांकित हुई है कि कुदरत के साथ जितनी कम छेड़छाड़ की जा सके, उतना ही मानव जीवन के लिए अच्छा है। पहाड़ों को तोड़ और खोद कर बेशक कुछ उत्पादन बढ़ा लिया जाए, मगर लोगों के जीवन की कीमत पर ऐसे उत्पादन और विकास का क्या मोल! अनेक पर्यावरण विज्ञानी पहाड़ों के साथ अतार्किक छेड़छाड़ रोकने के लिए आवाज उठाते रहे हैं। अभी देर नहीं हुई है, विकास और कुदरत के व्यावहारिक समीकरणों पर गंभीरता से विचार होना ही चाहिए।