सम्पादकीय

जलवायु की जुबानी सेवा

Gulabi
2 Nov 2021 12:09 PM GMT
जलवायु की जुबानी सेवा
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जलवायु

अलग-अलग देशों ने अपनी अलग-अलग समयसीमा तय की हुई है, लेकिन तमाम रिपोर्टें बताती हैं उस दिशा में यथोचित प्रगति नहीं हो रही है। खास कर ऐसा विकसित देशों में है। ऐसे में इन देशों के लिए अपने से बाहर कहीं खलनायक ढूंढने की मजबूरी बनी हुई है। उसमें निशाना चीन और भारत बनते हैं।


इटली की राजधानी रोम में जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन खत्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने एक बयान में कहा कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जो अपेक्षाएं इस बैठक से थीं, वे आहत तो नहीं हुईं, लेकिन वे अपूर्ण रहीं। गुटारेस जिस पद पर हैं, उसे देखते हुए उनके लिए अपनी निराशा कूटनीतिक शब्दों में जताने की विवशता को समझा जा सकता है। वरना, यह सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि जी-20 देशों ने जलवायु की सिर्फ जुबानी सेवा की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खतरों को जिक्र किया और उसे रोकने के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू पाने की जरूरत बताई। लेकिन इसके लिए जिन उपायों की जरूरत है, जब उनकी बात आई, तो फिर उनकी भाषा गोलमोल हो गई। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन शून्य करने का संकल्प जताया, लेकिन इस लक्ष्य 'यथाशीघ्र' हासिल की समयसीमा तय कर दी। यानी उन्होंने कोई साफ तारीख तय नहीं की, जिस रोज तक ये लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। अलग-अलग देशों ने इस बारे में अपनी अलग-अलग समयसीमा तय की हुई है, लेकिन तमाम रिपोर्टें बताती हैं उस दिशा में यथोचित प्रगति नहीं हो रही है। खास कर ऐसा पश्चिम के विकसित देशों में है। ऐसे में इन देशों के लिए अपने से बाहर कहीं खलनायक ढूंढने की मजबूरी बनी हुई है।

उसमें पहला निशाना चीन और दूसरा भारत बनता है। जबकि हकीकत यह है कि ये दोनों अभी विकासशील देश हैं। चीन का समग्र उत्सर्जन भले सबसे ज्यादा हो, लेकिन प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के लिहाज से वह पश्चिमी देशों से बहुत पीछे है। फिर चीन में वनीकरण, स्वच्छ परिवहन और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में जो प्रगतियां हुई हैं, वे उल्लेखनीय हैं। इसके विपरीत पश्चिमी देशों में अभी तक बात ज्यादा हुई है, जबकि असल कदम कम उठाए गए हैँ। यूरोप में स्थिति बेहतर है, लेकिन अमेरिका में बात जहां की तहां है। वहां तो एक प्रमुख पार्टी जलवायु परिवर्तन की हकीकत को ही नहीं मानती। इसलिए पिछले तीन दशक के भीतर जब रिपब्लिकन पार्टी के दो राष्ट्रपति सत्ता में आए तो उन्होंने अपने देश को जलवायु संधि से हटा लिया। ऐसे में डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति के हाथ भी बंधे रहते हैँ। ये तमाम पहलुओं की जी-20 शिखर सम्मेलन और ग्लासगो में शुरू हुए कॉप-26 सम्मेलन के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसीलिए ये आशंका उचित है कि रोम में जो हुआ, वही ग्लासगो का भी अंतिम परिणाम हो सकता है।


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