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हमारा समाज हो या ‘भाषा’, जेंडर की नवीन धारणा में स्त्री-पुरुष को समान अधिकार, समान महत्त्व देना चाहिए।
कई स्थानों पर नदी को प्रदूषणमुक्त करने की मांग की जाती है जो पर्यावरण की दृष्टि से सराहनीय है। नदियों को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए कई स्थानों पर सामाजिक संस्थाएं कार्य कर रही हैं। कई नदियों के तट स्थित रहने वाले रहवासी अपने घर के निकले गंदे पानी का निकास घर के पीछे करते हैं और उस गंदे पानी को सोख्ता गड्ढे में समाहित करते हैं।
साथ ही जलशोधन संयंत्र की योजना बनाते हैं, ताकि गंदा पानी स्वच्छ जल में न मिल पाए। वर्तमान में ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि सीधे तौर पर गंदा पानी नदियों में न मिल पाए। देखा जाए तो तालाबों, जल रियोजनाओं, कुओं, बावडियों और नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने का दायित्व निभाने वाली संस्थाओं को शासन से सहायता मुहैया कराना चाहिए, ताकि नदियों के शुद्धिकरण से सभी को शुद्ध जल का लाभ मिल सके। स्वच्छता का संदेश और जागरूकता लाना हर इंसान का कर्तव्य है, क्योंकि स्वच्छता से ही बीमारियों और प्रदूषण से मुक्त और सेहतमंद रहा जा सकता है।
पितृसत्ता की भाषा
भाषा संप्रेषण का एक साधन है, जिससे हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। भाषा जीवन का एक सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है और इसके बिना मानव अपना जीवनयापन मुश्किल होता है। लेकिन आज भाषा भी पूरी तरह से हमारे समाज के रंग में रंगी दिखती है। जिस प्रकार हमारा समाज पितृसत्तात्मक होने के कारण पुरुष प्रधान है, परिवार में पुरुषों को ही प्राथमिकता दी जाती है, आज भी हम लड़की पैदा न होने की कामना करते है और लड़की पैदा होने पर मुंह लटका लेते है, ठीक इसी प्रकार भाषा भी पितृसत्तात्मक असर से संचालित होती दिखती है। व्यवहार में आने वाले ऐसे तमाम शब्द हैं, जिनसे लगता है कि जैसे हमारे समाज की सारी जिम्मेदारी पुरुषों द्वारा ही संपन्न होती है। जबकि पुरुषों से ज्यादा महिलाएं समाज का भार उठाती हैं। इसके बावजूद भाषा में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव साफ दिखता है।
मसलन, 'भाईचारा' शब्द को अगर एक उदाहरण के तौर पर देखें तो इशामें बहनें या स्त्रियां कहां हैं! अंग्रेजी में भी यह शब्द 'ब्रदरहुड' है। इस शब्द का उपयोग दो समूहों के बीच सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए किया जाता है, लेकिन इस शब्द से यह प्रतीत होता है कि सामाजिक सौहार्द को बनाए रखना सिर्फ पुरुषों का ही काम है, औरतों का नहीं। इसी तरह अंग्रेजी शब्द 'मैनपावर' में 'वुमन' यानी स्त्रियां अनुपस्थित हैं। इस शब्द का उपयोग हम किसी काम को करने के लिए अपेक्षित व्यक्ति या लोग के संदर्भ में करते हैं, लेकिन इस शब्द से यह प्रतीत होता है कि जैसे सब कुछ पुरुष ही संभालते हैं और कठिन काम को संभालने की जिम्मेदारी पुरुषों की ही है। जबकि हम जानते हैं कि एक महिला घर में कामकाज से लेकर बच्चे और परिवार के अलावा बाहर भी किन-किन स्तरों पर काम और मुख्य दायित्वों को संभालती है।
जेंडर सामाजिक भेदभाव की वह स्थिति है, जिसमे लिंग के आधार पर अधिकारों, कर्तव्यों, भूमिकाओं आदि का निर्धारण किया जाता है। इसमें लड़की या लड़के के रूप में जन्म लेने को सामाजिक भूमिकाओं के बंटवारे का आधार माना जाता है। यह सही नहीं है। हमारा समाज हो या 'भाषा', जेंडर की नवीन धारणा में स्त्री-पुरुष को समान अधिकार, समान महत्त्व देना चाहिए।
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