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- आर्यन को क्लीन चिट
आदित्य नारायण चोपड़ा: फिल्म उद्योग के किंग माने गए शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान और पांच अन्य को ड्रग्स मामले में क्लीन चिट मिलने से परिवार को तो राहत मिली ही है लेकिन साथ ही देश के संविधान में आस्था रखने वालों को भी सुखद एहसास हुआ है। पिछले साल हुए सनसनीखेज घटनाक्रम में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानि एनसीबी ने मुम्बई में कार्डेलिया क्रूज पर छापा मारकर आर्यन खान और कुछ अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था। एनसीबी ने तो आर्यन खान को सबसे बड़ा आरोपी ड्रग यूजर और यहां तक कि अन्तर्राष्ट्रीय सिंडीकेट का ड्रग डीलर भी बताया था लेकिन प्याज के छिल्कों की तरह केस की एक-एक परत उधड़ती गई और आठ महीने बाद खुद एनसीबी ने एनडीपीएस कोर्ट में आरोप पत्र पेश किया तो उसमें आर्यन खान और पांच अन्य का नाम शामिल नहीं किया गया। इन के खिलाफ न को सबूत मिला न कोई गवाह। अब 14 लोगों के खिलाफ ही एनडीपीएस कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा। इस मामले में आर्यन खान को 26 दिन तक जेल में रहना पड़ा। शाहरुख का बेटा होने के नाते पूरा मामला हाईप्रोफाइल हो गया था और खबरिया टीवी चैनल अपनी-अपनी रेटिंग बढ़ाने के लिए कवरेज की मारधाड़ में लगे हुए थे। सोशल मीडिया पर केस से जुड़ी तमाम जानकारियां वायरल हो रही थीं। न तो आर्यन खान से ड्रग्स मिली थी न ही उसने ड्रग्स का सेवन किया था। पूछताछ के दौरान किसी भी ड्रग पैडलर ने आर्यन को ड्रग सप्लाई करने की बात भी नहीं कही थी। इस आधार पर एनसीबी के हाथ कुछ नहीं लगा। इसलिए इसे इन युवाओं को क्लीन चिट देनी पड़ी।आर्यन खान का मामला गिरफ्तारी के बाद से ही किसी जासूसी उपन्यास की तरह एक के बाद एक रहस्यों की तह में खोता चला गया। इसके साथ ही नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की कार्यशैली काे लेकर सवाल भी खड़े हो गए। यह रहस्य भी सामने आया कि क्रूज में आयोजित 'ड्रग पार्टी' की नारकोिटक्स ब्यूरो को सूचना देने वाले मुख्य गवाह किरण गोसावी की हैसियत क्या है। सवाल तो तब उठा था जब किरण गोसावी ने पकड़े गए आर्यन खान से बातचीत करने और उसके साथ वीडियो बनाने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं, आखिर एक गवाह को किस हैसियत से एक आरोपी के साथ फोटो खिंचवाने की अनुमति नारकोटिक्स विभाग ने किस कानून के तहत दी है। अभी यह सवाल हवा में उछले ही थे कि एक दूसरे प्रमुख गवाह प्रभाकर सैल ने बकायदा शपथपत्र जारी कर खुलासा किया कि आर्यन की गिरफ्तारी के पीछे असली मंशा 25 करोड़ रुपए की उगाही की थी और 18 करोड़ रुपए में सौदा पटाने की कोशिश किरण गोसावी ने की। जिसमें से आठ करोड़ रुपए नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी समीर वानखेड़े को दिए जाने थे। इसके बाद नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारी समीण वानखेड़े और खुद ब्यूरो की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई थी। यदि जासूसी उपन्यासों के क्लाईमैक्स का विश्लेषण करें तो पूरी पटकथा का सूत्रधार समीर वानखेड़े ही दिखाई दे रहा है। जिस किरण गोसावी को गवाह बनाया गया था उसे निजी जासूस बनाया गया और जिस प्रभाकर सैल ने वसूली के षड्यंत्र का खुलासा किया उसे किरण गोसावी का अंगरक्षक बताया गया। एक-एक करके परतें खुलती गईं तब तक जांच एजैंसी की विश्वसनीयता शून्य तक पहुंच चुकी थी और सामान्य नागरिक भी इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका था कि दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है। ड्रग पार्टी में सिर्फ 6 ग्राम गांजे की बरामदगी होने पर 'तिल से ताड़' बना दिया गया। इससे पहले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के मामले में भी एनसीबी की अच्छी किरकिरी हो चुकी थी। केन्द्र ने एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े को खराब जांच के चलते विभागीय जांच और कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता हैै। वसूली की तोहमतें लगने के बाद समीर वानखेड़े को दिल्ली ऑफिस में भेज दिया गया गया। संपादकीय :कुत्तों का राज योगकाशी विश्वनाथ : शिव-शंकर-शम्भूमहंगाई रोकने के सरकारी उपायबड़े साहब की 'डॉग वॉक'यासीन के गुनाहों का हिसाबगुदड़ी के 'लाल' मोदीसवाल निचली अदालतों पर भी है। निचली अदालत ने एनसीबी की दलीलों को सुनकर आर्यन को 26 दिन तक जेल में रखा। यह सही है कि जमानत देना या न देना अदालतों का काम है मगर इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट आदेश है कि किसी भी नागरिक की निजी स्वतंत्रता का यदि एक दिन के लिए भी हनन होता है तो इसे उचित नहीं माना जाएगा। इस तरह युवा आर्यन खान की निजी स्वतंत्रता का हनन हुआ और उसे अपराधी की तरह जेल में रहना पड़ा। शाहरुख खान और आर्यन की मां गौरी ने 26 दिन तक जो पीड़ा झेली और जिस व्यक्तिगत संकट से उन्हें गुजरना पड़ा उसके एक-एक पल की भरपाई कोर्ट नहीं कर सकता। देश के बड़े-बड़े नामी वकील भी आर्यन की रिहाई नहीं करवा पाए थे। अब क्योंकि आर्यन खान स्वच्छ होकर निकला है लेकिन समीर वानखेड़े और इस मामले में उनके सहयोगी बने लोगों की सच्चाई सामने आनी ही चाहिए। इस मामले में उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। एक गवाह की तो मौत हो चुकी है। इस तथ्य का खुलासा तो होना चाहिए कि क्या आर्यन खान की गिरफ्तारी भारी रकम की वसूली के लिए ही की गई थी। समीर वानखेड़े पर तो नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला पहले ही चल रहा है। सवाल आर्यन खान का नहीं है बल्कि एक ऐसे युवा का है जो मात्र 23 साल का रहा हो। भविष्य में ऐसे युवाओं को ड्रग्स रैकेट का सदस्य बनाकर अंधकार में धकेलने की साजिशें न रची जाएं इसलिए इस मामले से सबक लेना जरूरी है।