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Written by जनसत्ता: अस्वच्छता की वजह से फैलने वाली बीमारियों पर काबू पाने के मकसद से स्वच्छ भारत अभियान चलाया गया था। इसके तहत न सिर्फ लोगों को खुले में शौच से रोकने के लिए अभियान चलाए गए, बल्कि सरकारी सहायता से शौचालय भी बनवाए गए। गरीब परिवारों के घरों में सरकार की तरफ से शौचालय बनवाए गए। तीन साल पहले सरकार ने घोषणा की कि अब भारत के हर घर में शौचालय है और लोगों की खुले में शौच की प्रवृत्ति समाप्त हो गई है।
मगर राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के ताजा सर्वेक्षण में यह हकीकत सामने आई है कि देश के उन्नीस फीसद परिवारों के पास अब भी शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है। उन्हें खुले में शौच जाना पड़ता है। इनमें बिहार, झारखंड और ओड़ीशा में सबसे अधिक परिवार हैं। सर्वेक्षण में यह तथ्य जरूर उभर कर आया है कि अब लोगों की खुले में शाौच की प्रवृत्ति काफी कम हुई है, मगर स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है।
इसी तरह पीने के स्वच्छ पानी के उपयोग को लेकर भी सर्वेक्षण में पता चला है कि छियासठ फीसद ग्रामीण लोग बिना शोधन के पीने के पानी का उपयोग करते हैं। चौवालीस फीसद ऐसे लोग शहरों में भी हैं। इस सर्वेक्षण से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर काबू पाने के सरकार के संकल्प पर नए सिरे से विचार की जरूरत रेखांकित हुई है।
दरअसल, हमारे देश में बहुत सारी बीमारियां गंदगी की वजह से पैदा होती हैं, जिनका समय पर उचित इलाज न मिल पाने के कारण वे जानलेवा साबित होती हैं। इन बीमारियों के चलते हर साल सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काफी धन खर्च करना पड़ता है। इसलिए सरकार की यह सोच वाजिब थी कि लोगों की गंदगी में रहने की आदतों में बदलाव लाया जाए। इसके लिए बड़े पैमाने पर जनजागरूकता अभियान चला और उसका असर भी लोगों पर पड़ा।
मगर यह योजना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई है तो इसकी कुछ वजहें स्पष्ट हैं। एक तो यह कि बहुत सारे लोगों की शौच संबंधी पारंपरिक आदतें नहीं बदली हैं। गांवों और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बहुत सारे लोग आज भी घर में शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच को जाते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिन्हें सरकारी सहायता से शौचालय तो मिल गए, मगर उनके घरों में पानी की सुविधा न होने के कारण वे उनका इस्तेमाल नहीं करते।
जब स्वच्छ भारत अभियान चला था, तब भी इस समस्या की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित किया गया था। देश में कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों को पीने का पानी तक काफी दूर से भर कर लाना पड़ता है। वे इस गर्मी में भी कई दिन इसलिए नहा नहीं पाते कि पानी उपलब्ध नहीं है। फिर वे शौचालय की सफाई के लिए पानी कहां से लाएंगे?
स्वच्छ भारत अभियान एक अच्छा विचार है। यह अगर पूरी तरह कामयाब होता है, तो निश्चित रूप से मलेरिया, हैजा जैसी बीमारियों पर काबू पाना आसान हो जाएगा। मगर यह केवल शौचालय बनवा देने से संभव नहीं है। हर घर तक नल योजना भी शुरू की गई थी, जिसके जरिए हर परिवार को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना लक्ष्य है। मगर देश में पानी की समस्या को देखते हुए दावा करना मुश्किल है कि यह योजना कैसे संभव हो पाएगी। ये दोनों समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इन्हें साथ रख कर समाधान तलाशने की जरूरत है।