सम्पादकीय

मणिपुुर में गृहयुद्ध के हालात

Rani Sahu
19 Jun 2023 7:03 PM GMT
मणिपुुर में गृहयुद्ध के हालात
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By: divyahimachal
करीब 50 दिनों से हिंसा और हत्याओं का सिलसिला जारी है। मणिपुर में मैतेई और कुकी, नगा, जोमी आदि जनजातीय समुदाय स्थानीय हैं। उनमें जातीय विभाजन सनातन रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 5 दिनों का प्रवास किया था, स्थानीय प्रतिनिधियों से बातचीत की थी, सरकारी पैकेज की घोषणा भी की गई थी, लेकिन उनके दिल्ली लौट आने के बाद से हिंसा फिर उग्र हुई है। केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री राजकुमार रंजन सिंह, राज्य सरकार के एक मंत्री और कुछ विधायकों समेत 4000 से ज्यादा घर फूंके जा चुके हैं। मौत की संख्या 125 हो गई है और घायल करीब 3000 हैं। यह संख्या बढ़ती जा रही है। करीब 60,000 लोगों ने विस्थापित होकर पलायन कर लिया है। कई लोग राहत-शिविरों में हैं, तो अत्यंत भयभीत लोग राजधानी दिल्ली में आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री साफ टिप्पणी कर चुके हैं कि मणिपुर की राज्य सरकार बिल्कुल फेल हो चुकी है। लेफ्टिनेंट जनरल निशिकांत सिंह सेवानिवृत्ति के बाद मणिपुर में बसे हैं। उन्होंने मणिपुर की तुलना सीरिया, लीबिया, लेबनान, नाइजीरिया आदि देशों से की है कि कभी भी, कोई भी, किसी को भी मार सकता है, घर फूंक सकता है और संपत्ति को नष्ट कर सकता है। पूर्व सेना प्रमुख जनरल वेद मलिक ने अपने सैन्य-साथी की चिंताओं को साझा किया है और प्रधानमंत्री के स्तर पर जल्द ही हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। यह स्थिति गृहयुद्ध नहीं है, तो और क्या है? मणिपुर की बुनियादी समस्या मैतेई बनाम कुकी ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक, सुरक्षा बलों के स्तर की भी है। हर वर्ग में विभाजन के हालात हैं। मणिपुर का एक आयाम म्यांमार से भी जुड़ा है।
जब म्यांमार में सेना ने राजनीतिक सत्ता का तख्तापलट किया था, तो खूब मार-काट मची थी, लिहाजा वहां अफीम के जो बड़े व्यापारी थे, उन्होंने मणिपुर में आना तय किया। इस तरह कुकी वर्चस्व के पहाड़ी इलाकों में अफीम का साम्राज्य स्थापित हुआ। खुफिया एजेंसियों ने पूरी रपट प्रधानमंत्री मोदी तक दी, लिहाजा सरकार ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को 100 करोड़ रुपए का एक आर्थिक पैकेज दिया, ताकि अफीम के कारोबार को समाप्त किया जा सके। मणिपुर की भाजपा सरकार यह कार्रवाई तो कर नहीं पाई, लेकिन मैतेई को अनुसूचित जनजाति के उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले ने मणिपुर को गृहयुद्ध की आग में झोंक दिया। हालांकि सर्वोच्च अदालत का मानना था कि एकल न्यायाधीश ऐसा फैसला नहीं सुना सकते। परोक्ष रूप से उच्च अदालत वाला फैसला खारिज कर दिया गया। दरअसल अफीम पर छिड़ा यह एक जातीय गृहयुद्ध है, जिसने स्थानीय पुलिस और अद्र्धसैन्य बलों को भी बांट दिया है। दोनों एक-दूसरे पर पक्षपात के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। उपद्रवियों ने जो 4000 से अधिक हथियार छीन लिए थे, उनमें से 1000 हथियार ही वापस किए गए हैं। शेष गृहयुद्ध फैलाने वालों के पास हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हथियार खुद पुलिस वालों ने स्थानीय उपद्रवियों को मुहैया कराए हैं, ताकि वे लड़ाई लड़ सकें। मणिपुर में मैतेई की आबादी करीब 53 फीसदी है और विधानसभा के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और उसके समर्थक हैं। यह समुदाय इम्फाल घाटी में बसा है और धार्मिक तौर पर हिंदू है। पहाड़ी इलाकों में कुकी ही नहीं, कुल 33 जनजातियां बसी हैं। बहरहाल, प्रधानमंत्री इस मसले को प्राथमिकता दें।
Rani Sahu

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