सम्पादकीय

चुनाव के सामने 'नागरिक विपक्ष'

Rani Sahu
19 Dec 2021 6:52 PM GMT
चुनाव के सामने नागरिक विपक्ष
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राजनीति में विकास कभी बरगद का पेड़ नहीं बन सकता और न ही यह ऐसा पैरामीटर है

राजनीति में विकास कभी बरगद का पेड़ नहीं बन सकता और न ही यह ऐसा पैरामीटर है जो राजनीतिक उम्मीदों को जिता दे। हिमाचल में कमोबेश हर सत्ता ने तसल्ली से विकास कार्य किए, फिर भी मिशन रिपीट की अंगड़ाई में विकास का तिलिस्म टूट गया। देर सवेर जब सभी को मालूम होगा कि न तो एकतरफा, असंतुलित और सत्ता से प्रभावित विकास कोई करिश्मा करेगा और न ही कर्मचारियों पर केंद्रित सरकारी नीतियां आम जनता को सुशासन की सौगात दे पाएंगी, तो सरकारों की कार्यशैली बदलेगी। लिहाजा जीत-हार के बीच जनता की शर्तों का अपना एक अलग तिलिस्म है, जिसे महसूस किया जाता है। विकास सत्ता के कारनामों की गाथा में तो दिखाई देता है, लेकिन इसे देखने के लिए जनता का विश्वास भी चाहिए। मसलन एक अधूरी सड़क, निर्माण से भटकी कोई इमारत या डाक्टर-टीचर्ज विहीन संस्थान अगर विकास का आईना नहीं हैं, तो घोषणाओं के लबादे उतरेंगे। ऐसे विकास अब हराने का भी मंजर बना रहे हैं। उदाहरण के लिए पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान कुछ दिग्गज मंत्रियों ने विकास के कई उदाहरण पेश किए, लेकिन जीएस बाली व सुधीर शर्मा हार गए। जीएस बाली का ही उदाहरण लेंं तो नगरोटा बगवां में बस डिपो खोलकर जो उन्होंने विकास की दुहाई दी, वही उनके पीछे पड़ गई। बस डिपो खोलना न तो व्यावहारिक था और न ही ऐसा विकास था, जिसे हर वर्ग पसंद करता।

नगरोटा बगवां बस डिपो के संचालन में पूर्व मंत्री ने निजी बस मालिकों को अपना दुश्मन बना लिया। कल तक जो वर्ग बाली की परिवहन सेवाओं में किए गए प्रयोग के लिए प्रशंसा करता था, वही चुनाव में उनके सामने विपक्ष बन गया और वह हार गए। इसी तरह हर गांव, देहात व कस्बे में विकास के रेखांकित उद्देश्य जब व्यक्तिवाद की तरफदारी बन जाते हैं, तो विपक्ष के अलावा सत्ता के खिलाफ नागरिक विपक्ष पैदा हो जाता है। मौजूदा सरकार के दौर में भी तीन नए नगर निगमों की स्थापना ने नागरिक विपक्ष पैदा किया और इसका सबसे बड़ा उदाहरण पालमपुर नगर निगम चुनाव रहा। ऐसे विकास का मूल्यांकन नागरिक समाज अपनी निगाहों से करते हुए खुद ही विपक्ष बन जाता है, क्योंकि हर फैसले का अपना संतुलन भी है जिसे तवज्जो देनी होगी। शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल अपनी तरह के विकास को परिमार्जित करते रहे, तो फिर उनके खिलाफ 'नागरिक विपक्ष' कैसे पैदा हुआ। शांता कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री, विकास के कई आयाम लिखे, लेकिन नागरिकों का पक्ष नहीं बन सके। वर्तमान जयराम सरकार ने उनकी हर ख्वाहिश को सिर माथे पर बैठाया, लेकिन वह पालमपुर के नागरिक मन से खटास दूर नहीं कर पा रहे, तो इस सियासत के अपने सबक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के परिणामों से पहले ही प्रेम कुमार धूमल घोषित मुख्यमंत्री पद के चेहरा थे, तो उन्हें सुजानपुर के नागरिकों ने क्यों अपना विरोधी माना। क्या इससे पूर्व दो बार मुख्यमंत्री रहे धूमल ने हमीरपुर का जो चहुंमुखी विकास किया, उसके दोष में सुजानपुर विरोधी हो गया या विकास का कोई घड़ा फूट गया। यही विकास वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में 'नागरिक विरोध' क्यों पैदा कर गया, सोचना होगा।
विकास के कई स्तंभ खड़े करके सत्ता पक्ष अगर मंडी की सतह को मुलायम नहीं कर पाया, तो विकास को तरस रहे खुरदरे सफर पर चुनाव के कालीन काम नहीं आएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने विकास की तरजीह में स्कूल-कालेज व अस्पतालों के अलावा उपमंडल व खंड विकास कार्यालय जिस हद तक बांटे, तो मिशन रिपीट हो जाना चाहिए था। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कर्मचारियों के मंसूबों को तरोताजा रखने के हरसंभव प्रयास किए, लेकिन मिशन रिपीट को मुंह की खानी पड़ी। कर्मचारी वर्ग के लाभ भी कर्मचारी को बतौर नागरिक हमेशा 'नागरिक विपक्ष' बना रहे हैं, तो इसे लेकर सियासी चिंतन लाजिमी है। ऐसे में विकास की जरूरत नजरअंदाज नहीं होती, लेकिन असंतुलित व अव्यावहारिक विकास नागरिक मन में खाइयों को बढ़ाकर 'नागरिक विपक्ष' पैदा कर रहा है, जिसे क्षेत्रीय संतुलन व समावेशी विकास से पाटा जा सकता है। ऐसे में जयराम सरकार के लिए अंतिम वर्ष की सबसे बड़ी कसौटी नागरिकों के बीच अपना पक्ष हासिल करने की रहेगी। केवल सुशासन ही हमें पवित्र नागरिक बनाता है, वरना हर मतदाता अपने हिसाब से जाति, वर्ग, कर्मचारी, राजनीतिक दल या आक्रोश में 'विपक्ष' बन जाता है। सरकारी कर्मचारी बनाम निजी क्षेत्र के वेतनभोगियों के बीच अंतर बढ़ा कर सरकारें 'नागरिक विपक्ष' बढ़ा रही हैं, यह वर्तमान सत्ता को भी नसीहत है।A

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