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- चुनाव के सामने 'नागरिक...

राजनीति में विकास कभी बरगद का पेड़ नहीं बन सकता और न ही यह ऐसा पैरामीटर है जो राजनीतिक उम्मीदों को जिता दे। हिमाचल में कमोबेश हर सत्ता ने तसल्ली से विकास कार्य किए, फिर भी मिशन रिपीट की अंगड़ाई में विकास का तिलिस्म टूट गया। देर सवेर जब सभी को मालूम होगा कि न तो एकतरफा, असंतुलित और सत्ता से प्रभावित विकास कोई करिश्मा करेगा और न ही कर्मचारियों पर केंद्रित सरकारी नीतियां आम जनता को सुशासन की सौगात दे पाएंगी, तो सरकारों की कार्यशैली बदलेगी। लिहाजा जीत-हार के बीच जनता की शर्तों का अपना एक अलग तिलिस्म है, जिसे महसूस किया जाता है। विकास सत्ता के कारनामों की गाथा में तो दिखाई देता है, लेकिन इसे देखने के लिए जनता का विश्वास भी चाहिए। मसलन एक अधूरी सड़क, निर्माण से भटकी कोई इमारत या डाक्टर-टीचर्ज विहीन संस्थान अगर विकास का आईना नहीं हैं, तो घोषणाओं के लबादे उतरेंगे। ऐसे विकास अब हराने का भी मंजर बना रहे हैं। उदाहरण के लिए पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान कुछ दिग्गज मंत्रियों ने विकास के कई उदाहरण पेश किए, लेकिन जीएस बाली व सुधीर शर्मा हार गए। जीएस बाली का ही उदाहरण लेंं तो नगरोटा बगवां में बस डिपो खोलकर जो उन्होंने विकास की दुहाई दी, वही उनके पीछे पड़ गई। बस डिपो खोलना न तो व्यावहारिक था और न ही ऐसा विकास था, जिसे हर वर्ग पसंद करता।
divyahimachal
