सम्पादकीय

नागरिक जवाबदेही

Subhi
30 Nov 2022 5:56 AM GMT
नागरिक जवाबदेही
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इसे कायदे से नीति निर्देशक तत्त्व के माध्यम से दिखाया भी गया है। इसका अर्थ यह है कि राज्य का कर्तव्य होगा कि वह जनहित में कल्याणकारी नीति कल्याणकारी योजनाएं, कल्याणकारी कानून बनाएगा। यह केवल मानवीय समाज तक केवल सीमित नहीं है। राष्ट्र के हर एक वर्ग को संरक्षण प्रदान किया जाएगा और इसी का पालन करते हुए आजादी से वर्तमान तक प्रत्येक वर्ग के लिए योजनाएं और कानून बनाया जाता रहा है। लेकिन समस्या यह है कि इनके लाभ के जो परिणाम हमें प्राप्त होने चाहिए थे, वे नहीं हो रहे हैं।

Written by जनसत्ता: इसे कायदे से नीति निर्देशक तत्त्व के माध्यम से दिखाया भी गया है। इसका अर्थ यह है कि राज्य का कर्तव्य होगा कि वह जनहित में कल्याणकारी नीति कल्याणकारी योजनाएं, कल्याणकारी कानून बनाएगा। यह केवल मानवीय समाज तक केवल सीमित नहीं है। राष्ट्र के हर एक वर्ग को संरक्षण प्रदान किया जाएगा और इसी का पालन करते हुए आजादी से वर्तमान तक प्रत्येक वर्ग के लिए योजनाएं और कानून बनाया जाता रहा है। लेकिन समस्या यह है कि इनके लाभ के जो परिणाम हमें प्राप्त होने चाहिए थे, वे नहीं हो रहे हैं।

जीव-जंतुओं से लेकर ऐतिहासिक स्मारकों एवं मानवीय समाज के जिस वर्ग के लिए जिस कानून की आवश्यकता पड़ी है, समय-समय पर उसका निर्माण हुआ है। लेकिन इनके उपयोगों को लेकर आज जो समस्या बनी हुई है, वह विराट है, क्योंकि इनके गलत प्रयोगों के ही कारण आज हम पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं। वर्तमान में गरीबी, बेरोजगारी, महिला, सशक्तिकरण, स्वास्थ्य क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र इत्यादि में कल्याणकारी योजनाओं का अपार भंडार है, बावजूद इसके कोई खास प्रगति नहीं हुई है।

यही हाल कानूनों के साथ है। देश में निम्न स्तर से लेकर उच्च स्तर तक घनघोर भ्रष्टाचार आर्थिक, नैतिक, सामाजिक- कई रूपों में प्रशासन और राजनीति के स्तर पर खूब फल-फूल रहा है। क्रियान्वयन के साथ-साथ निगरानी तंत्र बेहद कमजोर देश में कानून और योजनाओं का निर्माण तो कर दिया जाता है, लेकिन इसकी निगरानी नहीं की जाती है कि यह अपने मूल उद्देश्य में सफल हुआ या नहीं।

भारत सरकार ने महिलाओं के लिए निशुल्क गैस कनेक्शन दिए थे। लेकिन आज हम देख सकते हैं कि दूरदराज के इलाकों में गैस सिलेंडर खत्म होने पर बहुत सारे लोग आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं है कि वे इसको दोबारा भरवा पाएं। इसके अतिरिक्त चाहे आयुष्मान योजना में अपात्र लोगों द्वारा लिया जा रहा लाभ हो या फिर आर्थिक आधार पर मिलने वाली आरक्षण की व्यवस्था।

इसके अलावा, हमारी सरकारों के पास सुव्यवस्थित डेटा का अभाव है। हम आज भी देखते हैं कि सरकारों को यदि कोई धरातलीय समस्या के संबंध आंकड़े को लेकर विश्वसनीयता की अनदेखी जाती है। उन्हें नहीं मालूम होता है कि कितने लाभार्थी हैं, कितने लाभान्वित हो चुके हैं और कितने बाकी हैं। फिर जवाबदेही और पारदर्शिता की परिपक्वता अभी उतनी बेहतर नहीं है, जितनी कि हमें आशा थी।

जन जागरूकता की बेहद कमी बेहद खलने वाली है। हम आए दिन देखते हैं कि सरकारें न जाने जनहित में कितने पोर्टल कितनी वेबसाइट शुरू करती रहती है लेकिन लाभार्थियों को इनका ज्ञात ही नहीं रहता। इसके अलावा सामाजिक जिम्मेदारी का भाव होना चाहिए। समाज के एक वर्गों को यह बात समझनी चाहिए कि अगर वह इन योजनाओं के लाभ लिए बिना कुशलतापूर्वक एक आदर्श जीवन व्यतीत कर सकता है तो उसे इन योजनाओं का त्याग करना चाहिए। इसलिए अगर अब हमें सर्वांगीण विकास करना है तो सरकारों को कानूनों और योजनाओं के क्रियान्वयन एवं उनके प्रयोग अनुप्रयोगों पर भी ध्यान देना होगा।



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