सम्पादकीय

शहर की बुनियाद

Subhi
28 Sep 2022 5:38 AM GMT
शहर की बुनियाद
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निश्चित तौर पर शहरीकरण के अपने लाभ हैं। अक्सर जब हम अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा रोजगार और सुलभ बाजार आदि का उल्लेख करते हैं तो निश्चित तौर पर हमारे मस्तिष्क में शहरों की छवि उभर आती है।

Written by जनसत्ता; निश्चित तौर पर शहरीकरण के अपने लाभ हैं। अक्सर जब हम अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा रोजगार और सुलभ बाजार आदि का उल्लेख करते हैं तो निश्चित तौर पर हमारे मस्तिष्क में शहरों की छवि उभर आती है। लेकिन अगर हम बारीकी से इस पर गौर करें तो आज बड़े-बड़े शहरों एवं महानगरों के समक्ष कई विकराल समस्या खड़ी है जो लगातार अपना विस्तार करती जा रही है।

पहली समस्या सीमित संसाधन और लगातार बढ़ती आबादी। यह सही बात है कि भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, लेकिन जो भी हिस्सा शहरों में निवास करता है, उस अनुपात में उन महानगरों में संसाधनों और आबादी में बड़ी असमानता देखने को मिलती है। यही कारण है कि लगातार महानगरों के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। फिर चाहे बात प्राकृतिक संसाधनों की हो या मानवीकृत संसाधनों की।

दूसरी समस्या इन शहरों में बढ़ता लगातार प्रदूषण। जब अंतरराष्ट्रीय सूचकांक आते हैं पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित तो भारत के शहरों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहता है, क्योंकि इन शहरों में उद्योग होने के साथ-साथ वाहनों का बहुत ज्यादा घनत्व है। इसके कारण यहां जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हम इनके नफा-नुकसान से वाकिफ नहीं हैं।

कई बार अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और विशेषज्ञों ने सरकारों को चेताया है कि वे इस ओर गंभीरता से ध्यान दें। तीसरी समस्या शहरों में अपराधीकरण का निरंतर विस्तार हो रहा है, जिसमें हत्या बलात्कार, लूटमार आदि शामिल है। हाल ही में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट पर गौर करें तो पाएंगे कि महानगरों में अपराध का ग्राफ बढ़ा है बजाय घटने के। उदाहरण के लिए केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दिल्ली अपराध में अव्वल नंबर पर है।

इसके अलावा, बड़े शहरों या महानगरों में नगर नियोजन हम आज भी बेहतर तरीके से नहीं कर पाए हैं, क्योंकि जब भी चौमासा आता है तो हम देखते हैं किस तरीके से यहां की सड़कें, बाजार, गली- मोहल्ले जलमग्न क्षेत्रों में तब्दील हो जाते हैं। फिर बढ़ती बेरोजगारी है। इन महानगरों में भले ही रोजगार के अवसर पैदा होते हों, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि जिस तरह से यहां पर बेरोजगारों की कुछ बीते सालों में वृद्धि हुई है, वह भयावह है।

खासतौर पर महामारी के बाद। कचरा एवं गंदगी का बेहतर प्रबंधन का अभाव के कारण यहां कचरे के पहाड़ बनते जा रहे हैं, जो यहां के स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था आदि पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसलिए हम सरकारों से अपेक्षा करते हैं कि अगर वह आदर्श शहर की संकल्पना रखते हैं तो उन्हें इन समस्याओं पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा, तभी जाकर हमारे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य कामयाब होंगे।

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