सम्पादकीय

शहर दर शहर

Gulabi Jagat
29 March 2022 3:59 PM GMT
शहर दर शहर
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शहर दर शहर हिमाचल अपनी आर्थिकी के नए तजुर्बे कर सकता है
By: divyahimachal
शहर दर शहर हिमाचल अपनी आर्थिकी के नए तजुर्बे कर सकता है, बशर्ते विकास के रोड मैप पर ईमानदार प्रयास किए जाएं और उन संभावनाओं को परिष्कृत किया जाए, तो स्वाभाविक तथा भविष्यगामी प्रगति हो सकती है। इसके लिए एक तो आर्थिकी के नए क्षेत्रों की पहचान और दूसरे इनकी क्षमता के विकास को तरजीह देने का प्रारूप तय करना होगा। हर शहर और नए आर्थिक क्षेत्रों का वर्गीकरण जरूरी हो जाता है। मसलन भविष्य के धार्मिक शहर कौन-कौन होंगे तथा इन्हें अगले दो दशकों में हम कहां देखते हैं, यह स्पष्ट करना होगा। इसी तरह हिमाचल के औद्योगिक शहरों को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है, तो यह भी देखना होगा कि पूर्व में बने औद्योगिक क्षेत्रों की रफ्तार कहां कुंद हो गई। पिछले कुछ सालों से हिमाचल के कई शहर शिक्षा के हब बने, लेकिन शहरी योजना का यह पक्ष मौन रहा और हालात यह हैं कि कई स्कूल या प्रोफेशनल एजुकेशन संस्थान या तो किसी गली में फंस गए हैं या इनके कारण शहरी परिवहन अटक गया है। घुमारवीं जैसे कस्बे में अगर तीन दर्जन शिक्षा संस्थान स्थापित हो चुके हैं, तो इसके अनुरूप ही इसे भविष्य के शहर में आगे बढ़ाना होगा।
सोलन का अपना शहरीकरण अब पूरे जिला की सीमा तक नए उद्देश्य व विस्तार कर रहा है, तो क्यों न एक अथारिटी के तहत परवाणू से वाकनाघाट तक के विकास को आर्थिकी का सबब मानते हुए व्यवस्थित किया जाए। हिमाचल में पर्यटन की दृष्टि से पिछले कुछ सालों में परिवर्तन आए हैं, तो सैलानी आगमन ने 'नई राहें, नई मंजिलों' को अंगीकार करते हुए तमाम सुविधाओं पर दबाव बना दिया है। उदाहरण के लिए मंडी में शिवधाम जैसी परियोजना के साथ शहर की व्यवस्था को भी नए मानदंडों के तहत परिपूर्ण करना होगा ताकि बढ़ते सैलानियों की तादाद का एकतरफा प्रसार कोई खलल न डाले। अटल टनल को हम पर्यटन के नए साम्राज्य के साथ जोड़कर देखें, तो वहां सुविधाओं की ख्वाहिश में नए समाधान चाहिएं। खासतौर पर लाहुल-स्पीति के जनजातीय आधार पर बरसने जा रही पर्यटन आर्थिकी को नए मुकाम तक पहुंचाने के लिए दीर्घकालीन योजना चाहिए। हिमाचल के धार्मिक स्थलों में विकास को ऐसी परिभाषा से जोड़ना होगा, जो मात्र मंदिर परिसर विस्तार नहीं, बल्कि पांच से दस किलोमीटर के दायरे में शहरीकरण का एक अलग मॉडल खड़ा करने की पैरवी सरीखा होना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रसाद योजना के तहत चिंतपूर्णी मंदिर पर खर्च हो रहे 45 करोड़ की राशि का जिक्र हो सकता है, लेकिन इसकी परिधि में एक सीमित परिदृश्य बदल रहा है, जबकि पूरे परिवेश को व्यवस्थित व संतुलित विकास की दृष्टि से समृद्ध करना होगा।
हिमाचल के शहरीकरण को समझते हुए भले ही नगर निगमों की संख्या पांच कर दी गई है, लेकिन अभी समाधानों की फेहरिस्त तैयार नहीं हुई है। कम से कम पांच नगर निगम क्षेत्रों के साथ ही कुछ गांवों के समूह जोड़ते हुए एरिया विकास प्राधिकरण स्थापित कर दिए जाएं ताकि शहर के साथ-साथ गांव भी विकास योजनाओं का हिस्सा बनें। हर नया विकास या किसी बड़े संस्थान की परियोजना अपने साथ आर्थिक गतिविधियां जोड़ लेती है और इसके कारण शहरी सुविधाओं की आवश्यकता बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए नए मेडिकल या इंजीनियरिंग कालेजों ने केवल एक जमीन के टुकड़े का भूमि पूजन ही नहीं किया, बल्कि अचानक उस क्षेत्र का रुतबा बढ़ा कर शहरी कर दिया। अतः तमाम मेडिकल कालेजों की परिसर परियोजना के साथ समीपवर्ती गांवों की सूरत और सुविधाएं भी जोड़नी होंगी। बिलासपुर के समीप एम्स परिसर को चंद एकड़ में न देखें, इसके साथ एक बड़े क्षेत्र की आर्थिक पृष्ठभूमि बदलेगी। ऐसे संस्थानों की कार्यशीलता को मापते हुए पहले से ही शहरी परिपाटी स्थापित नहीं की, तो सारी गतिविधियां बदसूरत होकर रह जाएंगी।
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