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- भट्ठी में झुलसते शहर
आदित्य नारायण चोपड़ा: भीषण गर्मी में समूचे भारत के शहर एक तरह से भट्ठी में भुनते हुए दिखाई दे रहे हैं। मौसम वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से उत्तर एवं पश्चिमी भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी और ज्यादातर शहरों के तापमान 40 से 50 डिग्री के आसपास बने रहेंगे। हो भी ऐसा ही रहा है। शहरों के तापमान में भी एक नया ट्रेंड देखने को मिला है। महानगरों में ही किसी एक क्षेत्र में तापमान 49 डिग्री सैल्सियस रिकॉर्ड किया जाता है ताे दूसरी जगह 44-45 डिग्री रिकॉर्ड किया जाता है। शहरों के पूरे भौगोलिक क्षेत्रों में एक समान तापमान में वृद्धि नहीं होती। महानगर और बड़े शहरों में जिस तरह कंकरीट से बनी इमारतें खड़ी हो चुकी हैं और हरियाली युक्त क्षेत्र कम हो रहे हैं। उससे एक समान तापमान की उम्मीद रखना अर्थहीन हो गया है। इस वर्ष 15 मई का दिन सर्वाधिक गर्म रिकॉर्ड किया गया। जिस तरह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है उससे साफ है कि आने वाले वर्षों में तापमान 50 डिग्री सैल्सियस से ऊपर जा सकता है।दिल्ली में 15 मई को सफदरजंग में अधिकतम तापमान 45.6 डिग्री दर्ज किया गया था जबकि मुंगेशपुर का अधिकतम तापमान 49.2 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच गया था। मानसून के दिल्ली और आसपास के इलाकों में 30 जून तक पहुंचने की उम्मीद है लेकिन मानसून की रफ्तार बहुत धीमी बताई जा रही है। केरल में मानसून समय से तीन दिन पहले पहुंच गया था लेकिन वहां भी बारिश औसत से 50 प्रतिशत कम दर्ज की गई। इसका अर्थ यही है कि देशवासियों को अभी गर्मी से झुलसना होगा। बीते कुछ वर्षों में कंकरीट की इमारतों में इजाफे और भूमि प्रयोग में बदलाव की वजह से तापमान लगातार बढ़ रहा है। देश के शहरों में अर्बन हीट आइलैंड बढ़ रहे हैं। अर्बन हीट आइलैंड वह एरिया होता है जहां अगल-बगल के इलाकों से ज्यादा तापमान हाेता है। कुछ जगहों पर ज्यादा गर्मी होने के पीछे अपर्याप्त हरियाली, ज्यादा आबादी, घने बसे घर और इंसानी गतिविधियां जैसे गाडि़यों और गैजेट से निकलने वाली हीट हो सकती है।कार्बन डाईआक्साइड और मेथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें और कूड़ा जलाने से भी गर्मी बढ़ती है। राजधानी दिल्ली का उदाहरण हमारे सामने है। जहां चारों दिशाओं में बने डंपिंग यार्डों में आग लगी ही रहती है और लोगों का सांस लेना भी दूभर हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव ने अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए जितना पर्यावरण को नुक्सान पहंुचाया है उसका परिणाम उसे भुगतना भी पड़ रहा है। भयंकर गर्मी में देशभर में आग लगने की घटनाएं हो रही हैं जिनसे जान और माल की भारी हानि हो रही है।संपादकीय :सर्वधर्म समभाव और भाजपाबिहार में जातिगत जनगणनाकोरोना में उलझ गई गणित की शिक्षाकश्मीरियों को आगे आना होगा...कश्मीर : जय महाकाल बोलो रेराज्यसभा चुनावों का चक्रव्यूहहम पर्यावरण की बातें करते हैं,हमारे खेत प्लाट हो गए।प्लाट मकान और दुकान हो गए।हमारे खेत शोपिंग काम्प्लेक्स और माॅल हो गए।फिर हम किस मुंह से पर्यावरण की बातें करते हैं।गर्मियों में शहर तो गर्म होते ही हैं परंतु पिछले कुछ वर्षों से आंकलन किया गया है कि शहर अब और गर्म होकर भट्ठी समान होते जा रहे हैं। प्रदूषण भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। वैसे तो दुनियाभर में शहर गर्म हो रहे हैं लेकिन भारत में गर्म शहरों की संख्या बढ़ रही है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से पर्यावरण संरक्षण का आग्रह करते हुए देश में मिट्टी को कैमिकल फ्री बनाने का आह्वान किया। मिट्टी बचाओ आंदोलन पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने पिछले आठ साल से चल रही योजनाओं का उल्लेख करते हुए पांच प्रमुख बातों पर फोकस किया। पहला मिट्टी को कैमिकल फ्री कैसे बनाया जाए, दूसरा मिट्टी में जो जीव रहते हैं उन्हें कैसे बचाएं, तीसरा मिट्टी की नमी को कैसे बचाएं। उस तक जल की उपलब्धता कैसे बढ़ाएं। चौथा भूजल कम होने की वजह से मिट्टी का जो नुक्सान हो रहा है उसे कैसे बचाएं और पांचवां वनों का दायरा कम होने से मिट्टी का जो क्षरण हो रहा है उसे कैसे रोकें।उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने पैट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनाल मिश्रण के लक्ष्य को तय समय से पांच माह पहले हासिल कर लिया है इससे भारत को 41 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है और किसानों को 40 हजार करोड़ की आय हुई है। भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो यानी कार्बन उत्सर्जन रहित अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तय किया हुआ है। यद्यपि पर्यावरण रक्षा में भारत के प्रयास बहुत आयामी रहे हैं लेकिन यह प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक देशवासी संसाधनों का अत्यधिक दोहन बंद नहीं करते। शहरों के बढ़ते तापमान की रोकथाम हेतु जरूरी है कि मौसम और वायु प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन किया जाए। हरियाली का विस्तार, जल स्रोतों की सुरक्षा, वर्षा जल संचय, वाहनों एवं एयर कंडीशंस की संख्या की कमी से ही हम प्रचंड गर्मी को कम कर सकते हैं। पृथ्वी का तापमान घटेगा तो ही मानव सुरक्षित रह पाएगा।