सम्पादकीय

हालात और तकाजा

Subhi
28 July 2021 2:46 AM GMT
हालात और तकाजा
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संसद की स्थायी समिति ने भी छोटे व मझौले उद्योगों की दशा पर चिंता जता दी है। मंगलवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने पाया है

संसद की स्थायी समिति ने भी छोटे व मझौले उद्योगों की दशा पर चिंता जता दी है। मंगलवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने पाया है कि पिछले एक साल में छोटे और मझौले उद्योगों पर गहरी मार पड़ी है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। यह समिति छोटे और मझौले उद्योगों पर महामारी के असर का आकलन करने और उससे उबरने के उपाय सुझाने को बनाई गई थी। हालांकि समिति ने ऐसी कोई नई बात नहीं कही है जो पहले से सबको पता न हो। सरकार में ऊपर से नीचे तक सब जान रहे हैं कि हालात कितने बदतर हैं। वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, रेटिंग एजेंसियां, आर्थिक हालात पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने वाले और छोटे-बड़े उद्योग संगठन भी जमीनी हालात से अनजान नहीं रहे। लेकिन संसदीय समिति की रिपोर्ट का अपना महत्त्व होता है। उसकी अपनी साख होती है। हालात का जायजा सदस्यों ने स्वयं लिया है। इसमें आरोप-प्रत्यारोप के आधार पर कुछ नहीं कहा गया है। सदन को वस्तुस्थिति से अवगत करवाना संमिति का दायित्व होता है। इसलिए रिजर्व बैंक और दूसरे निकायों के बाद अगर संसदीय समिति भी कह रही है कि छोटे उद्योगों के हालात ज्यादा खराब हैं तो यह हद से ज्यादा चिंता की बात है।

महामारी के कारण पिछला वित्त वर्ष बेहद खराब गुजरा। मौजूदा हालात तो बता रहे हैं कि यह साल भी कोई बहुत अच्छा नहीं रहने वाला। पिछले साल मार्च के अंतिम हफ्ते से की गई पूर्णबंदी से उद्योग जगत एक तरह से ठप पड़ गया था। तब पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था चौबीस फीसद तक गिर गई थी। हालांकि सरकार दावा करती रही कि जल्दी ही सब कुछ सामान्य होने लगेगा। त्योहारी मौसम में मांग निकलने से अर्थव्यवस्था में एक बार सुधार के संकेत दिखे भी, पर ये बहुत ज्यादा समय तक नहीं रहे। सरकार ने खुद को कुछ करता हुआ दिखाने के लिए समय-समय आर्थिक पैकेजों का एलान किया। पर ये अपर्याप्त ही रहे। सरकार ने मदद के तौर पर उद्योगों को कर्ज देने की रणनीति अपनाई। जबकि छोटे उद्योग तो पहले ही से कर्ज में दबे पड़े थे। उनके लिए और कर्ज लेने का मतलब था और बड़े संकट को न्योता देना। यही स्थिति अभी बनी हुई है।

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि सरकार ने अब तक जो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए, वे नाकाफी हैं। समिति इस नतीजे पर पहुंची है कि मांग पैदा करने के मकसद से अब तक जो उपाय किए गए, वे दीर्घकालिक और कर्ज वाले थे। जबकि एमएसएमई क्षेत्र को तत्काल राहत के रूप में नगदी की जरूरत थी। इसलिए समिति ने सरकार से जल्दी ही ऐसे उपाय करने को कहा है जो उद्योगों को नगदी के रूप सीधी मदद मुहैया करा सकें। हकीकत यह है कि बाजारों में मांग नहीं है। बाजार खुल तो गए हैं लेकिन खरीदार नदारद हैं। रोजमर्रा के जरूरी सामान को छोड़ कर लोग कुछ भी खरीदने से बच रहे हैं। इसकी एकमात्र वजह साल भर में करोड़ों लोगों का रोजगार छिन जाना है। आबादी के बड़े हिस्से को रोजगार छोटे उद्योगों से ही मिलता है। जब लोगों के हाथ में पैसा आता है तभी मांग पैदा होती है। लेकिन अभी यह चक्र टूटा पड़ा है। जब तक उद्योगों का पहिया तेजी से नहीं चलाया जाएगा, तब तक रोजगार पैदा नहीं होगा। इसलिए उद्योगों को संकट से उबारने के लिए कर्ज की बजाय सीधी मदद जैसे व्यावहारिक उपायों पर गौर करने की जरूरत है।



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