सम्पादकीय

कैंसर की चेतावनी देने से नहीं छूटती सिगरेट, प्रतिबंधित करने से छूटती है

Gulabi
11 Dec 2021 7:13 AM GMT
कैंसर की चेतावनी देने से नहीं छूटती सिगरेट, प्रतिबंधित करने से छूटती है
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पहले सिगरेट के हर पैकेट पर लिखा होता था- धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है
मनीषा पांडेय।
पहले सिगरेट के हर पैकेट पर लिखा होता था- धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है. सिगरेट पीने से कर्क रोग (कैंसर) होता है. अब तो इस चेतावनी लिखने के साथ-साथ पैकेट पर स्‍मोकिंग से खराब हो चुके गले की फोटो भी चिपकी होती है. सिनेमा के पर्दे पर जितनी बार स्‍मोकिंग का कोई दृश्‍य आता है, साथ में नीचे डिसक्‍लेमर भी चल रहा होता है, "धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है."
एक जमाना वो भी था, जब सिगरेट के विज्ञापनों पर लिखा होता था, "डॉक्‍टर की सलाह पर." डॉक्‍टर सिगरेट कंपनियों से हजारों डॉलर लेकर उनके प्रोडक्‍ट का विज्ञापन करते थे. आज सिगरेट, शराब जैसे उत्‍पादों के विज्ञापन पर न सिर्फ प्रतिबंध है, बल्कि सेहत के लिए किसी भी हानिकारक चीज को बेचने से पहले यह चेतावनी जारी करना भी कानूनी रूप से अनिवार्य है कि इसके सेवन से क्‍या-क्‍या नुकसान हो सकता है.
लेकिन अगर चेतावनियां जारी करने से लोग चेत जाते तो सिगरेट का कोई नामलेवा नहीं होता. लेकिन सिगरेट कंपनियों के मुनाफे का आंकड़ा कहता है कि पिछले दो दशकों में सिगरेट उत्‍पादों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगने के बावजूद उनके मुनाफे में 70 फीसदी का इजाफा हुआ है. इसके बावजूद कि हर साल बजट के साथ सिगरेट उत्‍पादों पर लगने वाला टैक्‍स बढ़ता जाता है और इसके साथ ही सिगरेट की कीमतें भी.
इन्‍हीं आंकड़ों से जुड़ा एक फैक्‍ट और है. वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट कहती है कि हर साल पूरी दुनिया में 32 फीसदी लोग स्‍मोकिंग से तौबा कर लेते हैं या धूम्रपान की लत के शिकार 32 फीसदी लोग हर साल सिगरेट पीना छोड़ देते हैं, फिर भी न सिगरेट के उत्‍पादन में कमी आती है, न उसकी खपत में. कंपनियों के मुनाफे का ग्राफ हर साल ऊपर की ओर ही बढ़ता जाता है.
सिगरेट पीने से न सिर्फ इंडीविजुअल लोगों पर पूरे समाज की सेहत पर कितना असर पड़ता है, इसे लेकर पूरी दुनिया में चिंताओं की भी कमी नहीं है. लैंसेट की एक सात साल पुरानी रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में सरकारों ने सिगरेट के नुकसान का आंकलन करने वाली हेल्‍थ रिसर्च और रिपोर्टों पर डेढ़ सौ मिलियन डॉलर खर्च किए हैं. हर साल हेल्‍थ जरनल्‍स में ऐसी सैकड़ों रिसर्च स्‍टडी छपती हैं, जिसके पीछे अच्‍छा-खासा पैसा सरकार और फार्मा कंपनियों का भी होता है, जो वही पुराना राग फिर से नए तथ्‍यों और जानकारियों के साथ दोहरा रही होती हैं कि सिगरेट पीने से हमारे शरीर और तंत्रिका तंत्र का कौन-कौन सा हिस्‍सा, कहां-कहां डैमेज हो रहा है.
लेकिन मजे की बात ये है कि नुकसान का इतना शोर मचने के बावजूद नुकसान होना बंद नहीं होता. सिगरेट की लत है कि छूटती नहीं. कैंसर होता जाता है, लोग बीमार पड़ते जाते हैं और धूम्रपान की लत जिंदगियां लीलती जाती है. हर साल 32 फीसदी लोग सिगरेट छोड़ते हैं, लेकिन नए 32 फीसदी पीने वाले पैदा हो जाते हैं. सच ज्‍यों का त्‍यों बना रहता है. कोई बदलाव नहीं होता.
अगर सचमुच सिगरेट और सिगरेट से होने वाला नुकसान पूरे राष्‍ट्र की सेहत के लिए इतना बड़ा खतरा है तो राष्‍ट्र उस खतरे से निपटने के लिए क्‍या कर रहा है. क्‍या सिर्फ सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी जारी करने भर से राष्‍ट्र की जिम्‍मेदारी खत्‍म हो जाती है या उसे कोई और ठोस कदम उठाने की भी जरूरत है. वो कदम, जो न्‍यूजीलैंड ने उठाया है.
न्‍यूजीलैंड एक ऐसा नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसके अनुसार उस देश में 2008 के बाद जन्‍म लेने वाला कोई भी युवा आजीवन सिगरेट नहीं खरीद पाएगा. 2008 में पैदा हुए युवाओं की उम्र इस वक्‍त 13 साल है. कुल 50 लाख आबादी वाले उस देश में 13 वर्ष से कम आयु वर्ग के युवाओं की संख्‍या तकरीबन छह लाख है. सामान्‍य गणित लगाकर देखिए, आने वाले 20 सालों में यह छह लाख की आबादी देश का 60 फीसदी हिस्‍सा होगी, जिसने आजीवन सिगरेट नहीं पी होगी. जिसे धूम्रपान का कोई अनुभव नहीं होगा.
न्‍यूजीलैंड में आज जो 14 साल से अधिक आयु के 44 लाख लोग हैं, वो दो दशक के भीतर सिगरेट छोड़ चुके होंगे. ये भविष्‍यवाणी हम नहीं कर रहे. ये लैंसेट और विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का आंकलन कहता है कि हर स्‍मोकर 50 के बाद या तो सिगरेट छोड़ने की तरफ बढ़ता है या फिर दुनिया से रुखसत होने की तरफ. डब्‍ल्‍यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक जो 32 फीसदी लोग सिगरेट छोड़ते हैं, उनमें से 29 फीसदी स्‍वास्‍थ्‍यगत कारणों से ही छोड़ते हैं. सिर्फ 3 फीसदी ऐसे होते हैं, जो अस्‍पताल के दरवाजे पर पहुंचे बगैर ही सिगरेट छोड़ देते हैं. दिल्‍ली के अपोलो अस्‍पताल में गाइनिकॉलजिस्‍ट डॉ. पुनीत बेदी स्‍मोेकिंग छोड़ने के इस आंकड़े पर टिप्‍पणी करते हुए कहते हैं, "हर सिगरेट पीने वाले को सिगरेट छोड़नी तो पड़ती ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि कोई अस्‍पताल पहुंचकर छोड़ता है तो कोई बिना अस्‍पताल पहुंचे ही छोड़ देता है."
फिलहाल न्‍यूजीलैंड ने देश को स्‍मोक फ्री बनाने और युवाओं को सिगरेट की लत से मुक्‍त होकर ज्‍यादा स्‍वस्‍थ्‍य जीवन देने के लिए सिगरेट के पैकेट पर सिर्फ चेतावनी नहीं चिपकाई है, बल्कि एक ऐसा ठोस कदम उठाया है, जो सिगरेट के प्रयोग को ही प्रतिबंधित कर दे. हालांकि होना तो ये चाहिए था कि सिगरेट के उत्‍पादन और बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लग जाए. लेकिन अगर किन्‍हीं भी कारणों से ऐसा नहीं हो पा रहा है तो भी कम से कम एक बड़े समूह के लिए सिगरेट के सेवन पर पूरी तरह कानूनी प्रतिबंध लग जाना भी एक बड़ा बदलाव है.
न्‍यूजीलैंड कोई बिहार नहीं है कि शराब पर प्रतिबंध होने के बावजूद वहां शराब आसानी से मिल जाए. न्‍यूजीलैंड की स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री आयशा वेराल ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे युवा कभी सिगरेट की लत का शिकार ही न हों. वो सिगरेट पीना शुरू ही न करें. एक बार स्‍मोकिंग की लत लग जाए तो उसे छोड़ना मुश्किल होता है. वयस्‍कों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना मुश्किल है, लेकिन यह तो सुनिश्चित किया ही जा सकता है कि टीन एच युवक-युवतियों और आने वाली पीढि़यों को हर बुरी आदत की चपेट में फंसने से रोका जा सके.
आयशा वेराल ने बिलकुल ठीक बात कही. अगर कोई बड़ा बदलाव करना है तो उसकी शुरुआत बच्‍चों से ही करनी होगी. वयस्‍कों का तो जो होना था, हो चुका. वो अपना जीवन जी चुके. अब आने वाली पीढ़ी की बारी है. उसे सुरक्षित रखना, उसे बचाना और उसके जीवन को बेहतर करना ही वो कदम है, जो देश की बेहतरी को सुनिश्चित और मुकम्‍मल करेगा.
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