सम्पादकीय

क्रिसमस के दिन : साल के अंत में मिले जो उपहार

Neha Dani
26 Dec 2021 2:41 AM GMT
क्रिसमस के दिन : साल के अंत में मिले जो उपहार
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इन नीतियों के जरिये देशभक्त दंपतियों ने कुल प्रजनन दर का गिरकर 2.0 रह जाना सुनिश्चित किया, जो कि प्रतिस्थापन दर से कम है।

क्रिसमस के दिन यह माना जाता है कि सांता क्लॉज उपहार लेकर घर-घर घूमते हैं। हो सकता है कि वह बहुतों को निराश करते हों। इसके बावजूद लोगों का उन पर विश्वास बना हुआ है। मैं एक ऐसे आदमी के बारे में बता रहा हूं, जो शर्तिया सांता क्लॉज की तरह नहीं लगते। लेकिन कोई यह भी नहीं जानता कि वह कौन हैं। इस व्यक्ति ने साल भर पूरे देश का भ्रमण किया है। वह एक अवांछित व्यक्ति थे, जिसका किसी को इंतजार नहीं था। उसने जगह-जगह जाकर जो चीजें बांटीं, उनकी भी जरूरत नहीं थी। साल के अंत में उसके द्वारा बांटे गए उन चीजों की गिनती कीजिए

किसानों के लिए : उद्योगपतियों को जमीन लीज पर देने की आजादी, उद्योगपतियों से कर्ज लेने की आजादी, उद्योगपतियों को कहीं भी अपना उत्पाद बेचने की आजादी और भूमिहीन कृषि मजदूर बनने की आजादी। यह अलग बात है कि किसानों ने ये प्रस्ताव खारिज कर दिए।
उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए : थोक मुद्रास्फीति 14.23 फीसदी पर। इसका मतलब यह कि लगभग सारी चीजें महंगी हैं। अगर वस्तुओं और सेवाओं की कीमत गिरती है, तो खुद को भाग्यशाली मानें, क्योंकि पांच दूसरी चीजों की कीमत बढ़ गई है। इसी कारण थोक मुद्रास्फीति 12 साल में सबसे अधिक है।
परास्तनाकों और पीएच.डी. डिग्री वालों के लिए : केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) में प्राध्यापकों के 10,000 से अधिक पद खाली हैं। इन तमाम शीर्ष संस्थानों का लक्ष्य सिर्फ अध्यापन है। और प्राध्यापकों के इतने पद खाली होते हुए भी वे पढ़ाने का काम बहुत अच्छी तरह कर रहे हैं। यह तकदीर की बात है कि उन्होंने बगैर प्राध्यापकों के अध्यापन के तरीके की खोज कर ली है।
नया आरक्षण
अनुसूचित जाति, जनजाति व ओबीसी के लिए : प्राध्यापकों के 10,000 से अधिक पद खाली हैं। इनमें से 4,126 पद अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के लिए 'आरक्षित' हैं। डरिए मत, आरक्षण जारी है।
उनके फायदे के लिए आरक्षण नीति में थोड़ा बदलाव किया है : अब पदों में नहीं, रिक्तियों में आरक्षण है। सरकार और ज्यादा रिक्तियां सृजित करेगी और उनमें अनुसूचित जाति, जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान रखेगी। आरक्षण नीति का पूरी तरह से पालन किया जाएगा। उम्मीदवार अपने बायोडाटा में यह लिख सकते/सकती हैं कि इस समय उन्हें रिक्तियों में रोजगार मिला हुआ है।
जो मासिक किस्त चुकाते हैं : ईएमआई (मासिक किस्त) पर ऊंचा ब्याज। वर्ष 2020-21 में बैंकों ने 2,02,783 करोड़ रुपये का बैड लोन माफ कर दिया है। लिहाजा कर्जदाताओं को बैंकों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे उन्हें कर्ज दे रहे हैं।
गरीबों के लिए : एक कतार। कृपया अपनी बारी का इंतजार कीजिए (जो शायद कभी न आए)। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक गरीब उद्योगपतियों की मदद करने में व्यस्त हैं। वर्ष 2020-21 में सिर्फ 13 उद्योगपतियों पर सरकारी बैंक का 4,86,800 करोड़ रुपये का कर्ज था। बैंकों ने 1,86,820 करोड़ रुपये लेकर वह पूरा कर्ज खत्म कर दिया। सरकारी बैंक देश के लोगों का कल्याण कर (जो कि मात्र 13 उद्योगपति ही थे) खुश हैं। भले ही उनके कल्याण के लिए बैंकों को 2,84, 980 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा हो। अगर आप दिवालिया उद्योगपति हैं, तो सरकारी बैंक आपकी मदद करने के लिए तैयार हैं।
अर्थशास्त्रियों और अर्थशास्त्र के छात्रों के लिए : सरकार ने अर्थव्यवस्था में 'वी' आकार के सुधार का दावा किया है। उसने मुख्य आर्थिक सलाहकार के जरिये ऐसा दावा किया, जो कि अब सरकार से अलग हो चुके हैं। डॉ. कृष्णमूर्ति सुब्रमणियम ने इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस से प्राप्त ज्ञान का सरकार के कामकाज में उपयोग किया, अब उन्होंने सरकार से जो अज्ञान हासिल किया है, उसे वह इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस को देंगे। दिलचस्प यह है कि आईएमएफ की डेप्युटी मैनेजिंग डायरेक्टर बनने जा रहीं डॉ. गीता गोपीनाथ पिछले सप्ताह दिल्ली में थीं।
उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए सुधार को 'के' आकार का बताया। इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है। 'वी' और 'के' में से किसी एक का चुनाव करना जरूरी नहीं है, अंग्रेजी वर्णमाला में और भी 24 शब्द हैं। पिछले अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि शाश्वत आशावादी 'आई' शब्द चुनेंगे और अराजकतावादी 'ओ' शब्द चुनेंगे। जबकि अर्थशास्त्र में प्रखर लोग 'एम' को वरीयता देंगे।
आजादी की गवाही
फ्री प्रेस के लिए : भारत की रैंकिंग 'बढ़ी है' (वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों की सूची में पिछले साल के 140वें पायदान से खिसककर भारत 142वें पायदान पर पहुंचा है)। भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री ने शायद सही कहा कि वह 'रिपोर्ट्स विदाउट बॉडर्स' के निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं, जो यह सूचकांक जारी करता है। पर उन्हें प्रेस की सूचना के बारे में एक-दो चीजें जाननी चाहिए। जब तक भारत के 'रिपोट्र्स विद ऑडर्स' प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 'गोली मारो' या 'हारा वायरस' जैसी युद्धोन्मादी बातें कर रहे हैं, तब तक यह मानने का पूरा सबूत है कि भारत में प्रेस को भरपूर आजादी है। मंत्री ने यह भी कहा कि प्रेस की आजादी की परिभाषा सुस्पष्ट नहीं है।
सांता का सुझाव है कि प्रेस की आजादी की परिभाषा तय करने के लिए मंत्री को दूसरे लोगों के साथ इन पत्रकारों को भी बुलाना चाहिए : राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, करन थापर, सागरिका घोष, परंजय गुहाठाकुरता, राघव बहल, बॉबी घोष, पुण्यप्रसून वाजपेयी, कृष्ण प्रसाद, रुबिन, प्रणय राय और सुधीर अग्रवाल।
तमाम लोगों के लिए : ऐसी नीतियां, जिनसे कुपोषण, बाल विकासहीनता, बच्चों में बौनापन और बाल मृत्यु दर में वृद्धि सुनिश्चित हो। इन्हीं का नतीजा है कि वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 116 देशों में 106 वें स्थान पर है। इन नीतियों के जरिये देशभक्त दंपतियों ने कुल प्रजनन दर का गिरकर 2.0 रह जाना सुनिश्चित किया, जो कि प्रतिस्थापन दर से कम है।

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