- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- चौकन्ने शिवराज सिंह...
आदित्य नारायण चोपड़ा: मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान देश के ऐसे पहले भाजपा मुख्यमन्त्री हैं जो 2005 से लेकर चालू वर्ष 2021 तक बीच में लगभग सवा साल के समय (श्री कमलनाथ के मुख्यमन्त्रित्वकाल) को छोड़ कर लगातार इस पद पर चले आ रहे हैं। इस प्रकार वह मुख्यमन्त्री पद पर 14 साल से बने हुए हैं । उनसे पूर्व प. बंगाल में मार्क्सवादी पार्टी के स्व. ज्योति बसु ही लगातार 23 वर्ष 137 दिन ( 1977 से 2000 ) मुख्यमन्त्री पद पर रहने का रिकार्ड बना चुके हैं। लोकतन्त्र में किसी भी नेता के लिए अपने पद पर इतने लम्बे अर्से तक बने रहना स्वयं में एक उपलब्धि कही जायेगी। इसकी मुख्य वजह यह है कि उनमें सबकों साथ लेकर चलने का अनूठा गुण है दो उन्हें पार्टी के भीतर से लेकर मोटे तौर पर आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाता है। श्री चौहान में एक लोकतान्त्रिक नेता की खूबी इस तरह समाई हुई है कि उनके अपने धुर विरोधी कांग्रेसी नेताओं से भी व्यक्तिगत रूप से घनिष्ठ और मधुर सम्बन्ध हैं। इस मामले में पूर्व मुख्यमन्त्री व कांग्रेस नेता श्री कमलनाथ के साथ उनके निजी सम्बन्धों की चर्चा उल्लेखनीय रही है। व्यक्तिगत जीवन में ये नेता बहुत अच्छे मित्र माने जाते हैं परन्तु राजनीतिक स्तर पर एक-दूसरे के कट्टर विरोधी भी हैं। यह सदाशयता दोनों ही ओर से है जिसका प्रदर्शन 2018 के चुनावों के बाद कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के बाद हुआ था और श्री चौहान ने नये मुख्यमन्त्री को विपक्ष के नेता के रूप में अपना पूरा सहयोग दिया था। यही वजह रही कि श्री चौहान के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा ने 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव बहुत ही आसानी के साथ जीता और भाजपा विधायकों ने उन्हें ही मुख्यमन्त्री चुनना बेहतर समझा परन्तु 2018 के चुनावों में जब भाजपा की कांग्रेस के मुकाबले मात्र पांच सीटें कम आयीं और कांग्रेस ने बसपा व सपा के तीन व निर्दलीयों की मदद से किनारे पर रहे बहुमत के सहारे बनाई तो श्री चौहान ने एक परिपक्व राजनेता की तरह व्यवहार करते हुए लोकतन्त्र की उज्ज्वल परम्परा का पालन किया और विपक्ष में ससम्मान बैठने का फैसला किया। लेकिन जब दो दर्जन से अधिक कांग्रेसी विधायकों ने कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिन्धिया के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने पर इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया तो सत्तारूढ़ कमलनाथ सरकार का नाटकीय परिस्थितियों में पतन हो गया और विकल्प के तौर पर भाजपा को श्री चौहान के अलावा दूसरा ऐसा कोई नेता नहीं मिला जो उनकी पार्टी को मजबूती देने के साथ ही सरकार को भी सफलतापूर्वक चला सके और स्वच्छ प्रशासन दे सके। अतः विभिन्न राज्यों में जिस प्रकार भाजपा अपने मुख्यमन्त्रियों को आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए अचानक ही बदल रही है उसके घेरे में श्री चौहान इसलिए नहीं आते हैं कि आम जनता पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत मानी जाती है। वह एक किसान के बेटे हैं और साहित्य प्रेमी भी हैं। हिन्दी भाषा के लिए उनका प्रेम सर्वविदित है। पिछला विश्व हिन्दी सम्मेलन उन्हीं के इशारे पर भोपाल में कराया गया था और सफल रहा था। श्री चौहान को राज्य की जनता 'मामा' कह कर सम्बोधित करती है। इसकी वजह यह मानी जाती है कि श्री चौहान ने अपने शासनकाल में राज्य में 'लाडली' योजना चलाई थी जिसके तहत गरीब कन्याओं को सरकार की तरफ से मदद धनराशि दी जाती थी। इसके बाद से उन्होंने अपने मामा होने का हक अदा कर दिया। चौहान का एक और गुण है कि वह राजनीति में शब्दों के चयन का बहुत ध्यान रखते हैं और कभी भी अभद्र या गैर संसदीय लफ्जों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इतना ही नहीं वह राजनीति में योग्यता के भी पक्के पक्षधर हैं। संपादकीय :डूबी सम्पत्तियों का बैड बैंकगुजरात में सभी मन्त्री नये !टेलिकॉम और आटो सैक्टर काे पैकेजउत्तर प्रदेश का चुनावी बिगुल !खाद्य तेलों की महंगाईकश्मीर लौटने का सपना!भाजपा के मुख्यमन्त्री होने के बावजूद वह कांग्रेस के राष्ट्रपति रहे स्व. प्रणव मुखर्जी के महान प्रशंसक रहे हैं और अपने उद्गार प्रकट करने से कभी नहीं हिचकिचाए। बेशक 2018 के चुनावों में भाजपा पूर्ण बहुमत लेने से पीछे रह गई थी मगर उसके बाद 2020 में जब कांग्रेस के दो दर्जन विधायकों द्वारा इस्तीफा देने की वजह से इसी वर्ष के अन्त तक उपचुनाव हुए तो श्री चौहान के नेतृत्व में 28 सीटों में से भाजपा को 19 सीटें मिलीं और उनकी सरकार को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया। ये उपचुनाव श्री चौहान के बूते पर ही भाजपा ने जीते थे। अतः उनका अपने पद पर बने रहना भाजपा की जमीनी पकड़ की गारंटी ही करता है। दूसरा उनका गुण सरल स्वभाव भी माना जाता है वह आसानी से ही सुलभ होने वाले नेता माने जाते हैं हालांकि उनके खिलाफ विपक्ष लगातार आरोपों की राजनीति में व्यस्त रहता है मगर वह अपना काम करते रहते हैं। चौहान राजनीति में चौकन्ना होकर चलने वाले व्यक्ति भी माने जाते हैं |