सम्पादकीय

चुनाव और चुनौतियां

Subhi
10 Jan 2022 2:51 AM GMT
चुनाव और चुनौतियां
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चुनाव आयोग ने पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है। उत्तर प्रदेश में मतदान सात चरणों में होगा जो दस फरवरी से सात मार्च तक चलेगा।

चुनाव आयोग ने पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है। उत्तर प्रदेश में मतदान सात चरणों में होगा जो दस फरवरी से सात मार्च तक चलेगा। मणिपुर में दो चरणों में सत्ताईस फरवरी और तीन मार्च को वोट पड़ेंगे। बाकी तीन राज्यों में वोट चौदह फरवरी को पड़ेंगे। इन चुनावों का आयोजन इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि ये महामारी की तीसरी लहर के बीच हो रहे हैं।

हालांकि इससे पहले पिछले साल मार्च-अप्रैल में भी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव करवाए गए थे। तब दूसरी लहर जोरों पर थी। उन चुनावों में कोरोना से बचाव के नियमों की खूब धज्जियां उड़ी थीं और चुनाव आयोग कोई कार्रवाई करता नहीं दिखा था। इस वजह से आयोग को कड़ी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था। इसी से सबक लेकर अब चुनाव आयोग ने इस बात का खयाल रखा है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान हर स्तर पर कोरोना से बचाव संबंधी नियमों का पालन सुनिश्चित हो।

चुनावों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। अब देखने की बात यह होगी कि हमारे राजनीतिक दल कितनी जिम्मेदारी और संयम से काम लेते हैं। आयोग की कितनी सुनते हैं। अब तक चुनावी सभाओं में जिस कदर भीड़ उमड़ती रही है, उसके लिए लोगों से कहीं ज्यादा दोषी राजनीतिक दल हैं। पिछले एक महीने में सभी दलों ने महामारी विशेषज्ञों की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए चुनावी सभाएं और रैलियां कीं और गैरजिम्मेदारी का ही परिचय दिया।

इसलिए आयग ने इस बार सख्त कदम उठाए हैं। पहला बड़ा कदम आयोग ने फिलहाल यह उठाया है कि पंद्रह जनवरी तक राजनीतिक दल या उम्मीदवार किसी भी तरह की रैली, जनसभा, रोड शो, पद यात्रा, साइकिल रैली और नुक्कड़ सभाओं जैसे आयोजन नहीं कर सकेंगे, ताकि भीड़ जमा न हो पाए। प्रचार के लिए उम्मीदवारों से डिजिटल तरीकों का इस्तेमाल करने को कहा गया है।

घर-घर जाकर भी प्रचार करने की छूट दी है, पर इसमें भी पांच से ज्यादा लोग नहीं जा सकेंगे। हर रैली से पहले न सिर्फ राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को, बल्कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनकी सरकारों को भी कोविड नियमों की पालन सुनिश्चित करवाने का हलफनामा देना होगा। नियमों का उल्ंलघन करने वालों पर संबंधित कानूनों के तहत कार्रवाई होगी। इसलिए अब देखने की बात यह है कि कौन कितनी जिम्मेदारी दिखाता है और आयोग के दिशानिर्देशों को मानता है।

कोरोना का संकट तो अपनी जगह है ही, एक और बड़ी चुनौती है। वह यह है कि चुनावों में दागी उम्मीदवारों पर लगाम कैसे कसी जाए। आयोग ने इस बार राजनीतिक दलों से उम्मीदवारों के चयन के अड़तालीस घंटे के भीतर उनका आपराधिक रिकार्ड सार्वजनिक करने को कहा है। खुद उम्मीदवारों को अपने हलफनामे में इसका ब्योरा देना होगा। आयोग ने यह कदम दागी उम्मीदवारों को राजनीति में आने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों के मद्देनजर उठाया है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी चुनाव आयोग के लिए कम सरदर्द नहीं रहा है।

इसलिए राजनीतिक दलों को इसके लिए भी हिदायतें दी गई हैं। देखा जाए तो नियम-कानूनों या दिशानिर्देशों की कहीं कोई कमी नहीं है। संकट तब खड़ा होता है जब राजनीतिक दल आयोग के निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए लोकतंत्र को शर्मसार करते हैं और आयोग असहाय महसूस करता है। ये विधानसभा चुनाव आयोग के लिए भी किसी कड़ी परीक्षा से कम नहीं हैं।


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