सम्पादकीय

समय का चुनाव

Subhi
20 Dec 2021 2:05 AM GMT
समय का चुनाव
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भ्रष्टाचार और अनियमितताएं रोकने के मकसद से आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय उन लोगों के ठिकानों पर छापे मारते रहते हैं, जिन पर कर चोरी और धनशोधन का शक होता है।

भ्रष्टाचार और अनियमितताएं रोकने के मकसद से आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय उन लोगों के ठिकानों पर छापे मारते रहते हैं, जिन पर कर चोरी और धनशोधन का शक होता है। ऐसा होना भी चाहिए। इसे रोकने की जिम्मेदारी उन पर है और वे अपनी जिम्मेदारी मुस्तैदी से निभाएं, तो उस पर भला किसे एतराज होगा। मगर कई बार उनके व्यक्ति और समय का चुनाव गलत होने की वजह से स्वाभाविक ही उनकी कार्रवाई पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। यही हो रहा है उत्तर प्रदेश में आयकर विभाग के छापों को लेकर।

आयकर विभाग ने समाजवादी पार्टी से जुड़े कुछ लोगों के विभिन्न ठिकानों पर छापे मारे हैं। इस पर तंज करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय वाले भी आते ही होंगे। जब उन्हें पहले से पता था कि ये लोग कर चोरी कर रहे हैं, तो उन पर पहले छापे क्यों नहीं मारे। जब चुनाव में दो महीने रह गए हैं, तब वे छापे मारने आ गए। उनका इशारा परोक्ष रूप से केंद्र सरकार की तरफ था। इन छापों पर ऐसे ही सवाल बहुत सारे लोग उठाने लगे हैं।
हालांकि आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय को भ्रष्टाचार रोकने के लिए इस तरह के छापे मारने की स्वतंत्रता होती है, पर पिछले कुछ सालों से जिस तरह वे चुनिंदा लोगों पर ही अपना शिकंजा कसते देखे जा रहे हैं, उससे उनकी साख पर सवाल उठने लगे हैं। अब तो विपक्षी दल खुल कर कहते सुने जाते हैं कि जो सरकार के खिलाफ होता है, उसी पर इन विभागों का शिकंजा कसता है। जो लोग प्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार के मामलों में नामजद हैं, जब वही सत्तापक्ष से जा मिलते हैं, तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
दो दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय को नसीहत दी कि अगर इसी तरह बिना सोचे-समझे धनशोधन निरोधक कानून का इस्तेमाल करते रहेंगे, तो यह कानून ही अपना प्रभाव खो देगा। सौ रुपए और हजार रुपए के मामलों में भी लोगों को सलाखों के पीछे नहीं भेजा जा सकता। मगर लगता नहीं कि आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने उस नसीहत को गंभीरता से लिया है। गलत लोगों के खिलाफ कार्रवाई जरूर होनी चाहिए, मगर जब हो तो ऐसा न लगे कि उसके पीछे कोई राजनीतिक कारण है।
हालांकि आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआइ आदि संस्थाओं का सत्तापक्ष की मंशा के अनुरूप काम करने का आरोप नया नहीं है। शायद ही कोई राजनीतिक दल रहा हो, जिसने शासन में रहते इनका उपयोग अपने मकसद से न किया हो। विपक्षियों को सबक सिखाने या उनका मुंह बंद कराने के लिए इनकी कार्रवाई न कराता रहा हो।
मगर सवाल यह भी है कि ये संस्थाएं किस मजबूरी में अपना अधिकार सत्ता के पास गिरवी रखती गई हैं। क्या वजह है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, उससे जुड़े किसी व्यक्ति पर छापे नहीं पड़ते। उन्हीं दलों पर छापे सबसे अधिक क्यों पड़ते हैं, जो सत्ता पक्ष को सबसे अधिक चुनौती देते हैं। फिर इन विभागों के छापों की रफ्तार तभी क्यों तेज हो जाती है, जब कोई चुनाव आने वाला होता है। इन सवालों के जवाब अगर आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और जांच एजेंसियां तलाशने का प्रयास करें, तो शायद उन्हें अपनी खोई हुई साख वापस लौटाने की दिशा में विचार करने का कुछ अवसर मिलेगा।

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