- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बिहार की राजनीति में...
x
कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है, पर कितना बलवान होता है इसे चिराग पासवान (Chirag Paswan) से बेहतर कोई नहीं समझ सकता
कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है, पर कितना बलवान होता है इसे चिराग पासवान (Chirag Paswan) से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. पांच-छह महीने पहले तक उन्हें बिहार की राजनीति (Bihar Politics) के उभरते सितारे के रूप में देखा जा रहा था, पर समय ने ऐसी पल्टी मारी की चिराग अब अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं. किसी को भी चिराग से ईष्या हो सकती थी. क्या नहीं था उनके पास, राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) जैसा पिता जो अपने जीवन काल में ही अपने जिगर के टुकड़े को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर चुका था और बेटे के लिए बड़े-बड़े सपने देख रहे था. लगता तो ऐसा ही था कि उनका सपना सच होने वाला है.
राम विलास पासवान के सपनों में एक था चिराग को बिहार के मुख्यमंत्री पद पर देखना. पिता केंद्र में मंत्री और बेटा बिहार का मुख्यमंत्री. पर अचानक एक दिन खबर आई कि पासवान अस्पताल में भर्ती हो गए हैं, उनकी तबीयत ख़राब है. पर किसे पता था कि उनका अंतिम समय आ गया है. बिहार विधानसभा चुनाव की विधिवत घोषणा हो चुकी थी. पहले चरण के मतदान के ठीक तीन हफ्ते पहले पासवान का निधन हो गया. पासवान अस्पताल में ही थे जब उनकी लोकजनशक्ति पार्टी (LJP) जिसके चिराग राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, ने एक अजीब घोषणा कर दी कि वह एनडीए में होंगे भी और नहीं भी. बीजेपी (BJP) के खिलाफ नहीं लड़ेंगे पर जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. कहा गया पासवान ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जो विवादास्पद है क्योंकि उनकी हालत ऐसी थी नहीं कि इतने बड़े और अजीबोगरीब फैसले को अपना समर्थन देते!
नहीं मिले सहानुभूति के वोट
उम्मीद थी कि लोकजनशक्ति पार्टी को पासवान के निधन से सहानुभूति वोट मिलेंगे. चिराग ने जी तोड़ कोशिश की, चुनाव के बाद बीजेपी-लोकजनशक्ति पार्टी की सरकार के गठन का दावा किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिनके नेतृत्व में एनडीए बिहार चुनाव लड़ रही थी, को सरकार बनने के बाद जेल भेजने की भी बात की. चिराग ने जेडीयू का नुकसान तो किया पर खुद भी डूब गए. लोकजनशक्ति पार्टी को मात्र एक सीट पर जीत नसीब हुई. नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने और चिराग हाशिये पर आ गए. सही समय पर लिया गया सही फैसला अगर किसी को आसमान की बुलंदी पर पंहुचा सकता है तो गलत समय में लिया गया गलत फैसला किसी को गर्दिश के तारे भी दिखा देता है. चिराग पासवान इसका जीता जगता उदाहरण हैं.
ना राज्यसभा मिली न केंद्र की सत्ता में जगह
कोशिश की कि मां रीना पासवान को पिता की मृत्यु से रिक्त हुए राज्यसभा सीट पर भेजें, पर नीतीश कुमार को यह कैसे मंज़ूर हो सकता था? सीट बीजेपी के खाते में गयी. फिर चिराग ने उम्मीद बांध रखी थी कि पिता की जगह केंद्र में उन्हें मंत्री पद मिल जाएगा, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है. एनडीए अब चिराग से दूरी बनाये रखने में ही अपनी भलाई देख रही है. संसद के वर्तमान बजट सत्र के पहले एनडीए के घटक दलों की बैठक होनी थी, पहले चिराग को एलजेपी अध्यक्ष के रूप में बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा गया जिसे जेडीयू के विरोध के कारण वापस लेना पड़ा. बीजेपी अभी जेडीयू से पंगा लेने के मूड में नहीं है. नितीश का क्या बीजेपी से खफा हो गए तो आरजेडी के आमंत्रण को स्वीकार कर लेंगे और फिर भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे. बीजेपी भला एक डूबते हुए सितारे के लिए बिहार में सत्ता क्यों गवांए? अभी इसकी विधिवत घोषणा तो नहीं हुयी है, पर यह साफ़ हो गया है कि एलजेपी अब एनडीए का हिस्सा नहीं रही.
चिराग के हाथों से फिसलते जा रहे हैं अपने लोग
यह कहना तो बहुत कठिन है कि क्यों चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ इतनी नफरत पाल रखी थी, पर इसका खामियाज़ा अब उन्हें भुगतना पड़ रहा है. वृहस्पतिवार देर शाम को 200 के करीब एलजेपी के नेता जेडीयू में शामिल हो गए. इसमें कई ऐसे नेता भी थे जो राम विलास पासवान के करीबियों में गिने जाते थे. एलजेपी के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह की अभी हाल ही में नीतीश कुमार के साथ बैठक हुई थी और सम्भावना है कि वह भी जल्द ही जेडीयू में शामिल हो सकते हैं.
2024 के लोकसभा में दिखाना होगा जलवा
अगर हालात यही रही तो वह दिन दूर नहीं जब एलजेपी इतिहास के पन्नो में समां जाएगी. राजनीति में बने रहने के लिए और आगे बढ़ने के लिए कई समझौते करने पड़ते हैं. महत्वाकांक्षी होने में कोई बुराई नहीं है, पर अति-महत्वाकांक्षी होना नुकसानदायक भी होता है. चिराग पासवान का अति-महत्वाकांक्षी होने का ही नतीजा है कि फिलहाल उनकी स्तिथि ऐसी हो गई है कि वह ना तो घर के रहे ना घाट के. आने वाला तीन साल चिराग पासवान और उनके पिता के सपनों के लिए काफी अहम होगा. उन्हें एक बार फिर से पार्टी का गठन करना होगा और लोगों का विश्वास जीतना पड़ेगा. अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी एक मजबूत शक्ति बन कर नहीं उभरी तो चिराग की लौ बुझ जायेगी और वह गुमनामी के पथ पर चल पड़ेंगे, जहां से भविष्य में लौटना अगर असंभव नहीं तो कठिन ज़रूर होगा.
Next Story