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इस साल फरवरी में भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से से अपने सैनिक हटा लिए थे।
इस साल फरवरी में भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से से अपने सैनिक हटा लिए थे। तब इसे भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया था। इसके बाद भारत को उम्मीद थी कि चीन अब जल्दी ही देपसांग, हॉट स्प्रिंग और गोगरा से भी अपने सैनिकों को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज भी चीनी सैनिक इन ठिकानों पर जमे हैं और दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है।
भारत एक नहीं, कई बार दो टूक शब्दों में कह भी चुका है कि जब तक टकराव वाले इन तीनों इलाकों से चीनी सैनिक नहीं हटेंगे, तब तक इलाके में तनाव बना रहेगा और इसका जिम्मेदार चीन होगा। इसलिए अब यह चीन पर ही निर्भर है कि वह क्या चाहता है। हालांकि संवेदनशील ठिकानों से सैनिकों को हटाने के लिए भारत-चीन के बीच सैन्य और राजनीतिक स्तर वार्ताओं के दौर होते रहे हैं। पर इनका ठोस नतीजा निकल नहीं रहा है। इसलिए भारत की चिंता और नाराजगी स्वाभाविक है। यह कोई छिपी बात नहीं रह गई है कि चीन मामले को लंबा खींचने की रणनीति पर चल रहा है। उसे लग रहा है कि जितनी देर की जाएगी, मुद्दा उतना ही पुराना पड़ता जाएगा और वह वहां सैनिकों को बनाए रख पाने में कामयाब होगा। इन कुटिल चालों से उसकी मंशा तो उजागर हो ही गई है।
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच ग्यारहवें दौर की कमांडर स्तर की वार्ता इस साल नौ अप्रैल को हुई थी। इसके पहले मार्च में राजनयिक स्तर की वार्ता का दौर हुआ था। तब चीन भी इस बात पर सहमत हुआ था कि समझौते के मुताबिक देपसांग, हॉट स्प्रिंग और गोगरा से वह अपने सैनिकों की वापसी करेगा। पर इसके बाद उसने एकदम मुंह फेर लिया। चीन के साथ मुश्किल यह है कि वह वार्ताओं के दौरान तो बराबर से सहमति जताता है, क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थायित्व की बड़ी-बड़ी बातें करता है, लेकिन जब अमल की बारी आती है तो पलटी मार जाता है।
ऐसा नहीं कि भारत उसके इस पाखंड को समझता नहीं है, लेकिन भारत अपनी तरफ से ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता जिससे चीन को उलाहना देने का कोई मौका हाथ लग जाए। जो हो, भारत का रुख एकदम कड़ा और साफ है कि जब तक चीन अपने सैनिकों को विवादित जगहों से नहीं हटाता है, तब तक शांति की बात बेमानी ही है। और इसी रुख पर भारत को अब अड़े रहना चाहिए।
दरअसल, फरवरी में पैंगोंग से चीन ने अपने सैनिकों को यों ही नहीं हटा लिया था। उस पर अमेरिका का भारी दबाव था। राष्ट्रपति पद संभालने के बाद पैंगोंग गतिरोध पर चीन को चेताते हुए जो बाइडेन ने साफ कहा था कि संकट के वक्त अमेरिका भारत के साथ खड़ा रहेगा। अगर चीन का इरादा शांति की दिशा में बढ़ना होता तो पैंगोंग सहित और इलाकों से पहले ही सैनिकों को हटा लेता। अमेरिका को दखल का मौका ही नहीं मिलता। अब चीन इस इलाके में सैन्य गतिविधियां तेज करते हुए दबदबा दिखाने की हरकतें कर रहा है।
हाल में पूर्वी लद्दाख के दूसरी ओर उसकी वायु सेना ने बड़ा अभ्यास किया। भले यह उसने अपने इलाके में किया हो, पर इसका जो संदेश है, वह सब समझ रहे हैं। तिब्बत के इलाके में चीन और पाकिस्तान की सेना का साझा अभ्यास भी चल ही रहा है। कुल मिला कर गेंद अब चीन के पाले है। देखने की बात यह है कि आखिर वह कब तक भारत को छकाता है।
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