सम्पादकीय

चीन का रुख

Subhi
13 Oct 2021 1:00 AM GMT
चीन का रुख
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भारत और चीन के बीच सैन्य कमांडर स्तर की तेरहवें दौर की वार्ता बिना किसी नतीजे के खत्म हो जाना किसी भी रूप में अच्छा नहीं कहा जा सकता।

भारत और चीन के बीच सैन्य कमांडर स्तर की तेरहवें दौर की वार्ता बिना किसी नतीजे के खत्म हो जाना किसी भी रूप में अच्छा नहीं कहा जा सकता। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस बार वार्ता के दौरान चीन ने जैसा रुख दिखाया, उससे शांति के प्रयासों को धक्का लगा है। अब तक माना जा रहा था कि वार्ता यह दौर तनाव कम करने और लंबित मुद्दे सुलझाने के लिए सकारात्मक माहौल बनाने में सहायक साबित होगा। पर वार्ता के बाद दोनों देशों की ओर से जो बयान आए, उनसे तो लग रहा है कि तनाव और बढ़ेगा। बैठक में चीन के आक्रामक रवैए से साफ हो गया कि उसकी मंशा माहौल को अच्छा बनाने के बजाय तनाव बढ़ाने की है। हालांकि उसके इस रुख के संकेत पहले ही मिलने लगे थे और लग रहा था कि वार्ता शुरू होने के पहले वह ऐसा कुछ करेगा जिससे नए विवाद खड़े हो जाएं। हाल में उत्तराखंड के बारागोती और अरुणाचल प्रदेश के तवांग सैक्टर में चीनी सैनिकों की घुसपैठ से यह आशंका पैदा हो गई थी कि कहीं तेरहवें दौर की वार्ता पर इसका कोई असर न दिखे। और यह आशंका अब सच साबित हुई।

इस बार की वार्ता का मुख्य मुद्दा हाट स्प्रिंग से सैनिकों को हटाने के बारे में सहमति बनाना था। भारत ने देपसांग से भी सैनिकों की वापसी का मुद्दा उठाया। लेकिन वार्ता में चीन ने इन दोनों ही मुद्दों पर जिस तरह से पलटी मारी, वह हैरान करने वाली है। उसने इन इलाकों से सैनिकों को पीछे हटाने के भारत के प्रस्तावों को अव्यावहारिक और अतार्किक करार दे दिया। जबकि कुछ महीने पहले ताजिकस्तिान की राजधानी दुशान्वे में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच सहमति बनी थी कि वार्ताओं के जरिए समाधान की कोशिशें जारी रखी जाएंगी।
पर अब चीन जिस तरह का रुख दिखा रहा है, उससे स्पष्ट है कि उसके लिए इन वार्ताओं और प्रतिबद्धताओं का कोई मतलब नहीं रह गया है। उल्टे उसने विवादित स्थलों से सैनिकों को हटाने के बारे में भारत पर हालात का गलत आकलन करने की तोहमत जड़ दी। ऐसे में यह कैसे माना जाए कि वह विवाद खत्म करने के लिए गंभीरता दिखा रहा है? पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी की घटना चीन की साजिश का नतीजा थी। चीनी सैनिकों ने भारत के सैनिकों पर हमला कर दिया था और फिर कई जगह घुसपैठ कर कब्जा कर लिया था।
हालांकि भारत के कड़े प्रतिरोध और सैन्य दखल के बाद चीन पर जो दबाव बना और वार्ताओं के दौर शुरू हुए, उसी का नतीजा था कि उसे पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों और गोगरा पोस्ट से अपने सैनिक हटाने पड़े। इससे उम्मीद बनी थी कि देपसांग और हाट स्प्रिंग से भी वह अपने सैनिकों को हटाने पर सहमत होगा। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। बल्कि अब एक नया तनाव शुरू होता दिख रहा है। चीन के साथ मुश्किल यह है कि वह शांति, सुरक्षा और स्थायित्व की बातें तो करता है, लेकिन जब अमल की बारी आती है तो पलटी मार जाता है। ऐसा ही उसने इस बार भी किया। हालांकि उसका यह हमेशा का चरित्र रहा है। भारत एक नहीं कई बार साफ-साफ शब्दों में कह भी चुका है कि जब तक टकराव वाले इलाकों से चीनी सैनिक नहीं हटेंगे, तब तक इलाके में तनाव बना रहेगा और इसका जिम्मेदार चीन होगा। इसलिए अब यह फैसला चीन को करना है कि शांति के लिए वह कौनसा रास्ता चुनता है।


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