सम्पादकीय

जंग के बीच चीन का संकेत

Subhi
7 March 2022 3:50 AM GMT
जंग के बीच चीन का संकेत
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ऐसे में जब रूस और यूक्रेन के बीच की जंग पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह बनी हुई है, चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने स्वाभाविक ही सबका ध्यान खींचा है।

ऐसे में जब रूस और यूक्रेन के बीच की जंग पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह बनी हुई है, चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने स्वाभाविक ही सबका ध्यान खींचा है। शनिवार को चीनी वित्त मंत्रालय ने देश में रक्षा पर होने वाले खर्च में 7.1 फीसदी वृद्धि का एलान किया जिसका मतलब यह है कि साल 2022 में चीन में रक्षा मद में 230.16 अरब डॉलर खर्च किया जाएगा। 2022-23 के दौरान भारत में रक्षा पर होने वाले खर्च के मुकाबले यह राशि तीन गुना ज्यादा है। हालांकि रक्षा पर खर्च में बढ़ोतरी चीन के लिए कोई नई बात नहीं है। यह लगातार सातवां साल है जब देश के डिफेंस बजट में वृद्धि की गई है। लेकिन इस बार खास बात यह है कि यह बढ़ोतरी विकास दर की सुस्त पड़ती रफ्तार के बीच प्रस्तावित की गई है। साल 2022 के लिए वहां जीडीपी में 5.5 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है जो पिछले तीन दशकों में सबसे कम है। जाहिर है, 5.5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ के बरक्स रक्षा खर्च में 7.1 फीसदी की बढ़ोतरी को चीन सरकार की प्राथमिकताओं का स्पष्ट संकेत माना जा सकता है। यह बढ़ोतरी ऐसे समय आई है जब चीनी सेना के आधुनिकीकरण का कार्यक्रम पहले ही जोर-शोर से जारी है। इसके तहत बड़े पैमाने पर पनडुब्बी, एयरक्राफ्ट कैरियर वगैरह बनाए जा रहे हैं।

सरकार के मुताबिक अब मिलिटरी ट्रेनिंग के जरिए कॉम्बैट प्रिपेयर्डनेस (युद्ध के लिए तैयार रहने की स्थिति) मजबूत करने पर ध्यान दिया जाएगा। इस संदर्भ में भारत की स्थिति देखें तो यहां न केवल रक्षा पर खर्च की तय की गई राशि एक तिहाई बैठती है बल्कि उस खर्च का भी बड़ा हिस्सा वेतन जैसे मदों में चला जाता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में बजट का 60 फीसदी हिस्सा कर्मचारियों पर खर्च होता है जबकि चीन में यह खर्च कुल रक्षा बजट का मात्र 30 प्रतिशत है। जाहिर है, आधुनिकीकरण कार्यक्रम पर खर्च की मात्रा वहां और बढ़ जाती है। मगर असल सवाल यह है कि रक्षा पर खर्च बढ़ाकर चीन संदेश क्या देना चाहता है? क्या इसका मतलब यह है कि ताइवान और हांगकांग से जुड़े मसलों पर, साउथ चाइना सी में और भारत से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर उसकी आक्रामकता बढ़ने वाली है? खासकर लद्दाख में एलएसी पर जहां पिछले करीब दो साल से दोनों तरफ बड़ी संख्या में सैनिक तैनात हैं और 14 दौर की बातचीत के बाद भी तनाव में कमी की कोई सूरत नहीं बन पा रही, उसके रवैये में किस तरह का बदलाव आने वाला है? इस सवाल का जवाब समय के गर्भ में है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि रक्षा तैयारियों का दीर्घकालिक अजेंडा इन संवेदनशील मसलों पर सहमति बनाने की राह में आड़े नहीं आएगा।

नवभारत टाइम्स

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