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सम्पादकीय
भारत की तबाही का बड़ा हथियार है चीन का नया भूमि सीमा कानून
Shiddhant Shriwas
26 Oct 2021 12:26 PM GMT
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कोरोना महामारी के बीच चीन यह मानकर चल रहा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर खुद को खड़ा कर चुका है
प्रवीण कुमार भारत (India) के साथ एलएसी (LAC) यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लंबे वक्त से चल रहे तनाव के बीच चीन (China) की विधायिका ने नया भूमि सीमा कानून पारित कर भारत के खिलाफ एक और बेहद खतरनाक चाल चल दी है. आगामी 1 जनवरी 2022 से लागू होने वाले इस नए कानून को चीन भले ही अपने देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अहिंसक बता रहा हो, लेकिन कड़वा सच यही है कि सीमावर्ती इलाकों में चीन अपनी जमीनी दखल को और पुख्ता तरीके से विस्तार देने जा रहा है.
इन निर्जन इलाकों में वह आम नागरिकों को बसाने की तैयारी कर रहा है, ताकि किसी भी अन्य देश खासतौर पर भारत के लिए इन इलाकों में सैन्य कार्रवाई और मुश्किल हो जाए. सीधे तौर पर कहें तो चीन का यह नया भूमि सीमा कानून आने वाले वक्त में भारत की तबाही का एक बड़ा हथियार साबित होगा.
क्या है चीन का नया भूमि सीमा कानून?
नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति के सदस्यों ने जिस नए कानून को मंजूरी दी है उसके तहत चीन के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी. आर्थिक, सामाजिक विकास के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों और इंफ्रास्ट्रक्चर को भी विकसित किया जाएगा. आम नागरिकों के रहने और काम करने के लिए सीमा सुरक्षा और आर्थिक व सामाजिक सामंजस्य को मजबूत तरीके से खड़ा किया जाएगा. चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट को आधार मानें तो कानून में इस बात का भी जिक्र है कि चीन समानता, परस्पर विश्वास और मित्रतापूर्ण वार्तालाप के सिद्धांतों का पालन करते हुए पड़ोसी देशों के साथ लंबे वक्त से चले आ रहे सीमा संबंधी मुद्दों और विवादों से निबटेगा. सामरिक विशेषज्ञ इस बात का अंदेशा जता रहे हैं कि चीन की विधायिका ने जिस भूमि सीमा कानून को पारित किया है उसका आधार ही भारत-चीन सीमा विवाद है जिसका वह अपने तरीके से और अपनी शर्तों पर समाधान चाहती है.
चीन की विस्तारवादी नीति में भारत सबसे ऊपर
चीन का नया भूमि सीमा कानून पूरी तरह से विस्तारवादी नीति का हिस्सा है और इसमें भी खासतौर पर निशाने पर भारत ही है. माना जा रहा है कि इससे भारत में घुसपैठ करने में आसानी रहेगी. चीन और भारत के बीच बहुत बड़ी भूमि निर्जन है जिसपर अक्सर विवाद होता है. चीन के इस ताजा कानूनी पहल से उसे भारत की निर्जन भूमि पर दावा करने में आसानी रहेगी. पूरे सीमावर्ती क्षेत्रों की बात करें तो चीन की 14 देशों के साथ करीब 22,100 किलोमीटर की भूमि सीमा लगती है. चीन का दावा है कि इसमें 12 पड़ोसी देशों के साथ तो उसने सीमा विवाद सुलझा लिया है, लेकिन भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ समझौतों को अंतिम रूप देना बाकी है.
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर करीब 3488 किलोमीटर के क्षेत्र में है जबकि भूटान के साथ चीन का विवाद 400 किलोमीटर की सीमा पर है. हाल ही में उसने भूटान के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. भूटान के साथ कूटनीतिक रिश्ते बनाने की चीन की कोशिशों से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. अगर आप चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के विचारों पर नजर रखते हैं तो इस बात को मानने में कोई हिचक नहीं कि चीन भूटान को अगला तिब्बत बनाना चाहता है. चीन का यह कहना कि भूटान की सीमा चौकी पर भारत बेवजह टांग अड़ा रहा है, समझा जा सकता है कि भूटान से समझौता किस तरह से भारत को कमजोर करने की ड्रैगन की एक बड़ी खतरनाक चाल है.
दूसरी तरफ, इस कानून को आधार बनाकर चीन तिब्बत पर भी अपना सांस्कृतिक और सामाजिक वर्चस्व मजबूत करेगा. इस संदर्भ में तिब्बत की सीमा से सटे तवांग मठ के प्रमुख ग्यांग बुंग रिंपोचे के हालिया बयान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है. रिंपोचे ने साफतौर पर कहा है कि अगले दलाई लामा को चुने जाने की प्रक्रिया में चीन को दखलंदाजी का कोई हक नहीं है. वह विस्तारवादी नीति को बढ़ावा देता है. चीनी सरकार धर्म में विश्वास नहीं करती है. इतना ही नहीं, रिंपोचे ने भारत जैसे देशों से तिब्बत की संस्कृति और धरोहर की रक्षा के लिए आगे आने की अपील भी की. दरअसल, दलाई लामा और तिब्बत पर चीन का जो नजरिया है वह उसे वैश्विक मंच पर हमेशा नीचा दिखाता है, उसके अहंकार को ठेस पहुंचाता है. इस पूरी फिल्मी कहानी में चीनी शासक भारत को विलेन के तौर पर देखते हैं. यह भारत की सेहत के लिए ठीक नहीं है.
चीन के निशाने पर सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी
चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे भारत के 'चिकन नेक कॉरिडोर'के तौर पर भी जाना जाता है को अपने लिए बड़ा खतरा मानता है. याद करें तो 2017 में जब भारत और चीन के बीच डोकलाम संकट पैदा हुआ था तो ये कॉरिडोर एक महत्वपूर्ण मार्ग बनकर उभरा था. दरअसल पश्चिम बंगाल में स्थित 60 किमी लंबा और 20 किमी चौड़ा सिलीगुड़ी कॉरिडोर उत्तर-पूर्व को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में करीब 5 करोड़ की मानव आबादी है. आर्थिक दृष्टि से ये कॉरिडोर उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद अहम है. भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच एकमात्र रेलवे फ्रेट लाइन भी यहां मौजूद है. वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सड़क मार्ग और रेलवे लाइन सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़े हुए हैं. इस कॉरिडोर के जरिए ही यहां सभी जरूरी चीजों की सप्लाई की जाती है. कहने का मतलब यह कि ये कॉरिडोर भारत और इसके पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान देशों के लिए भी एक महत्वपूर्ण एंट्री गेट है. इसके माध्यम से भारत अपनी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को भी तेजी से आगे बढ़ा रहा है.
दूसरा, ये कॉरिडोर पूर्वोत्तर राज्यों में घुसपैठ, सीमा पार आतंकवाद और इस्लामी कट्टरपंथियों का मुकाबला करने में काफी अहम साबित हुआ है. म्यांमार, थाईलैंड और लाओस में संगठित अपराध और ड्रग ट्रैफिकिंग की तस्करी भारतीय राज्यों जैसे त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिए बड़ा सुरक्षा खतरा रहा है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर इस सुरक्षा खतरे से निबटने में काफी अहम भूमिका निभा रहा है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर से तिब्बत की चुंबी घाटी सिर्फ 130 किमी दूर है, लिहाजा भारत यहां से चीन की हरकतों पर भी नजर रखता है. युद्ध के समय आसानी से और कम वक्त में हथियारों और सैनिकों को तैनात किया जा सकता है. इन तमाम वजहों से चीन भारत के इस अहम एंट्री गेट को बाधित करने की जुगत में है. चीन का नया कानून काफी हद तक इसमें मददगार साबित हो सकता है.
नो मेंस लैंड एग्रीमेंट को भी समझना जरूरी
चीन की सीमा से सटे जो देश यह मानकर भूमि सीमा कानून को हल्के में ले रहे हैं कि इसका असर सिर्फ भारत पर पड़ने वाला है तो वो बड़ी भूल कर रहे हैं. आने वाले वक्त में इसका असर भारत ही नहीं बल्कि चीन की सीमा से सटे सभी देशों पर पड़ेगा और सबसे ज्यादा असर तो रूस पर पड़ेगा. दरअसल चीन और रूस के बीच सदियों से चला आ रहा एक समझौता है जिसके अनुसार, एक निश्चित क्षेत्र नो मेंस जोन होगा. ये अलग बात है कि नो मेंस जोन पर अतिक्रमण के लिए चीन किस देश की सीमा को चुनता है, लेकिन नया कानून पूरी तरह से इस समझौते पर एक तरह से प्रहार है. याद करें तो मई 2017 में चीन ने वन बेल्ट वन रोड समिट किया था. इसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हुए थे. पूरे इलाके में भारत ही एक ऐसा इकलौता देश है जो चीन की इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है. लिहाजा न्यौता मिलने के बावजूद पीएम मोदी ने समिट में शामिल होने से इनकार कर दिया था.
तब चीन ने भारत को यह जताने की कोशिश की थी कि उसका पवित्र मित्र देश रूस वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर चीन के साथ है. तो समय-समय पर चीन इस तरह के प्रयोग कर हालात को भांपने का फॉर्मूला ईजाद करता रहता है. ताजा चीनी भूमि सीमा कानून को भी इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए कि इस पर रूस की क्या प्रतिक्रिया आती है. यह प्रतिक्रिया भारत के लिए काफी मायने रखती है. क्योंकि चीन को यह बात अच्छे से पता है कि भारत और रूस का संबंध पंडित जवाहर लाल नेहरू के काल से ही भावनात्मक रहा है. आज भी भारत रूस से ही सबसे ज्यादा हथियारों की खरीद करता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आज भी रूस भारत का खुलकर समर्थन करता है. बावजूद इसके अगर भारत-चीन में विवाद बढ़ता है और रूस को चीन तथा भारत में से किसी को एक को चुनना होगा तो चीन ऐसा मानकर चलता है कि वह तटस्थ रहेगा. दुर्भाग्य से अगर ऐसा हुआ तो यह चीन की बड़ी कूटनीतिक जीत होगी, क्योंकि अभी तक रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है. और जब तक रूस भारत के साथ खड़ा रहेगा, चीन भारत के खिलाफ कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाएगा.
बहरहाल, कूटनीति कहती है कि आर्थिक विकास के लिए किसी भी देश की सरकार का पहला काम होता है कि सरहद पर शांति बनाए रखी जाए. लेकिन चीन एक ऐसा अपवाद देश है जो सरहद पर अशांति को ही आर्थिक तरक्की का आधार मानकर फैसले लेता है. कोविड महामारी के बीच चीन यह मानकर चल रहा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर खुद को खड़ा कर चुका है. लिहाजा वह पड़ोसी देशों समेत पूरी दुनिया को अपने इशारों पर नचा सकता है सिवा भारत के. इसलिए नए भूमि सीमा कानून की बुनियाद पर विस्तारवादी नीति के साथ वह भारत के सीमावर्ती इलाकों में भी चहलकदमी करेगा. भारत अगर ड्रैगन की इस कुत्सित चाल में फंस गया तो निश्चित रूप से इसकी आर्थिक तरक्की को झटका लगेगा. कहने का मतलब यह कि चीन के इस नए भूमि सीमा कानून जिसको भारत की तबाही के बड़े हथियार के तौर पर देखा जा रहा है, के हर पहलू पर गंभीरता से विचार कर उसकी काट के लिए नई नीति तैयार करने की दिशा में भारत को तुरंत आगे बढ़ना चाहिए.
Shiddhant Shriwas
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