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- चीन की मंशा ठीक नहीं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ये खबर परेशान करने वाली थी कि हाल में जब अमेरिका के साथ भारत की 2 प्लस 2 वार्ता हुई, तो उसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिकी की तरफ से जारी ब्योरे में अपना बयान बदलवाया। अमेरिकी बयान में कहा गया था कि भारतीय रक्षा मंत्री ने चीन की भूमिका पर आक्रोश व्यक्त किया। जबकि भारतीय पक्ष का कहना था कि राजनाथ सिंह ने चीन का नाम नहीं लिया। तो सवाल उठा कि आखिर भारतीय सत्ताधारी नेताओं को चीन का नाम लेने से इतना गुरेज क्यों है। सरकार समर्थक विशेषज्ञ सफाई देते हैं कि सरकार आगे चीन के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहती है। मगर क्या यह चीन को लाल आंखे दिखाना माना जाएगा, जिसका वादा करते हुए नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे? बहरहाल, दूसरी चीन भारत को घेरने की अपनी नीति को लगातार आगे बढ़ा रहा है। हाल में खबर आई है कि वह अरुणाचल प्रदेश से लगे इलाके में वह एक नई रेलवे परियोजना पूरा करने की तैयारी में है। इससे अरुणाचल प्रदेश सीमा तक उसकी पहुंच काफी आसान हो जाएगी। जाहिर है, चीन की यह परियोजना भारत के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। हाल में उसने पूर्वोत्तर से लगी सीमा के पास कई सड़क और आधारभूत परियजोनाएं भी शुरू की हैं। इस नई रेलवे परियोजना के अगले साल तक पूरा होने की संभावना है।
गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश पर चीन की निगाहें शुरू से ही रही है। वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा मानने से इंकार करता रहा है। इसी वजह से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और दूसरे मंत्रियों और अधिकारियों के अरुणाचल दौरे पर चीन विरोध जताता रहा है। चीन ने हाल में ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण एक रेलवे ब्रिज का काम पूरा कर लिया है। अरुणाचल में सियांग कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बना 525 मीटर लंबा यह ब्रिज नियंत्रण रेखा से महज 30 किमी दूर है। यह ब्रिज दरअसल 435 किलोमीटर लंबी ल्हासा-निंग्ची रेलवे परियोजना का हिस्सा है। सामरिक और रणनीतिक रूप से सिचुआन-तिब्बत रेलवे लाइन का निर्माण काफी अहम है। यह रेलवे लाइन दक्षिण-पश्चिमी प्रांत सिचुआन की राजधानी चेंग्दू से शुरू होकर तिब्बत के लिंझी तक जाएगी। लिंझी अरुणाचल प्रदेश की सीमा से एकदम करीब है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार यह निर्माण पूरा हो गया तो इसका इस्तेमाल सेना की आवाजाही के लिए भी होगा। साफ है कि आखिर चीन की मंशा क्या है।