सम्पादकीय

चीन का गिरता विकास दर भारत के लिए फायदेमंद है घाटे का सौदा?

Rani Sahu
19 Oct 2021 2:03 PM GMT
चीन का गिरता विकास दर भारत के लिए फायदेमंद है घाटे का सौदा?
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चीन (China) इस वक्त अपने बुरे दौर से गुजर रहा है. एक तरफ जहां वैश्विक मंच पर उसे अमेरिका,

संयम श्रीवास्तव चीन (China) इस वक्त अपने बुरे दौर से गुजर रहा है. एक तरफ जहां वैश्विक मंच पर उसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन जैसों देशों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर आर्थिक मोर्चे पर भी चीन की हालत खस्ता है. चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स ने जुलाई से सितंबर की तिमाही के आंकड़े जारी किए हैं, जो दिखाता है कि सितंबर 2021 के अंतिम तिमाही में चीन की विकास दर 4.9 फ़ीसदी रही. इसका सबसे बड़ा कारण था इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में गिरावट जो सितंबर में 3.1 फ़ीसदी रही. जबकि इसके 4-4.5 फीसद रहने का अनुमान था.

एक तरफ जहां कोरोना संकट के दौर से गुजर चुकी दुनिया की अर्थव्यवस्था अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है. तो वहीं दूसरी तरफ चीन की अर्थव्यवस्था की हालत बिल्कुल उल्टी दिशा में है. जबकि चीन ही ऐसा पहला देश था जिसने सबसे पहले कोरोना महामारी को मात देने का दावा किया था और अपने यहां लॉकडाउन हटाया था. यहां तक की उस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था बाकी देशों के मुकाबले काफी सही रफ्तार में थी. उसके बावजूद भी चीन की स्थिति ऐसी हो गई है कि उसकी अर्थव्यवस्था अब नीचे लुढ़कती जा रही है.
बिजली की कमी चीन की गिरती अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण
चीन की गिरती अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है चीन में ऊर्जा संकट का तेजी से उभार. जब कोरोना महामारी चीन में थोड़ी धीमी पड़ी, तब चीन के तमाम व्यवसाय खुलने लगे. इससे बिजली की भी मांग तेजी से बढ़ने लगी. चूंकी चीन में ज्यादातर बिजली का उत्पादन कोयले से होता है. इसलिए कोयले की कीमत भी तेजी से बढ़ने लगी. चीन के कुल कोयला उत्पादन में 30 फ़ीसदी योगदान उसके शानशी प्रांत का होता है. लेकिन इस बार चीन का शानशी प्रांत भारी बारिश के कारण बाढ़ की चपेट में है, जिसकी वजह से वहां कोयले का उत्पादन में भारी कमी आई. इस वजह से चीन में बड़ा बिजली संकट पैदा हो गया.
इस संकट की वजह से उद्योगों के साथ-साथ लोगों के घरों से भी बिजली की कटौती चीन की सरकार को करनी पड़ी. रॉयटर्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सोमवार को जो चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स का आंकड़ा सामने आया उसे देखकर यह साफ कहा जा सकता है कि चीन का व्यापारी वर्ग इस वक्त नई परियोजनाओं में निवेश करने को लेकर बेहद कम उत्सुक दिखाई देता है.
प्रॉपर्टी सेक्टर में भी चीन को भारी नुकसान
चीन की गिरती अर्थव्यवस्था के पीछे चीन के प्रॉपर्टी सेक्टर का भी हाथ है. दरअसल बीते दिनों पता चला कि चीन की कंस्ट्रक्शन कंपनी चाइना एवरग्रांड ग्रुप दिवालिया होने के कगार पर आ गई है. इस ग्रुप ने लगभग 3000 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज ले रखा है. चीन में ऐसी कई रियल एस्टेट सेक्टर की कंपनियां हैं जो या तो खुद को दिवालिया घोषित कर चुकी हैं या फिर भविष्य में कर सकती हैं.
दरअसल चीन की जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा रियल एस्टेट सेक्टर से आता है. ऐसे में चीन की सरकार ने इन कंपनियों की निर्भरता कर्ज से कम करने के लिए पिछले साल एक कानून लागू किया था. इस कानून के तहत 3 नियम बनाए गए थे. जिनमें कंपनियों की देनदारी उनकी कुल संपत्ति के 70 फ़ीसदी से अधिक ना हो, कंपनी का कर्ज उसकी कुल पूंजी से अधिक ना हो ताकि कंपनी कम समय के कर्ज को लिक्विड एसेट से चुका सके. इसी क़ानून की वजह से चीन की कंपनी एवरग्रांड अब और कर्ज नहीं ले सकती थी. इसी तरह की मुश्किल में चीन की और भी रियल एस्टेट कंपनियां फंसी हुई हैं जो अब बैंकों से और कर्ज नहीं ले सकती. उनके साथ समस्या यह है कि बिना कर्ज के ना तो वह सप्लायर्स को पैसा दे सकती हैं, ना ही बीच में अटके अपने प्रोजेक्ट को पूरा कर सकती हैं.
भारत के लिए हो सकता है फायदे का सौदा?
इस वक्त चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, कपड़े, खिलौने, दवाइयां, सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स सामान जैसे कई प्रोडक्ट चीन दुनिया के कई देशों को निर्यात करता है. लेकिन ऊर्जा संकट से जूझता चीन प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी धीमा पड़ रहा है और वह दुनिया भर के देशों को डिमांड के हिसाब से सप्लाई नहीं दे पा रहा है. अगर स्थिति ऐसी बनी रही तो आने वाले समय में दुनियाभर के देश दूसरा ऐसा कोई विकल्प तलाश करेंगे जो उन्हें समय पर डिमांड के हिसाब से सप्लाई दे सके. ऐसे में भारत उन देशों के लिए एक बेहतर विकल्प बन सकता है, जिसकी उत्पादन क्षमता में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.
हालांकि अगर भारत और चीन के बीच व्यापार की बात करें तो चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2021 के शुरुआती 9 महीनों में चीन के साथ दूसरे देशों का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 50 फ़ीसदी बढ़ा है. वहीं भारत के वाणिज्यिक मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि अप्रैल से जुलाई के समय में भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार चीन था. उसके बाद अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और सिंगापुर का नंबर आता है. चीन से भारत का आयात 2021 के पहले 9 महीने में बढ़कर 68.5 बिलियन डॉलर का हो गया, जो साल 2020 के इसी समयावधि से 52 फ़ीसदी अधिक है. जबकि अगर हम जनवरी से सितंबर के बीच अगर हम भारत और चीन के व्यापार के आंकड़े देखें तो यह 90.38 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. जिसके साल के अंत तक 100 अरब डॉलर के पार करने का अनुमान लगाया जा रहा है. इसलिए ये भी कहा जा रहा है कि चीन की गिरती अर्थव्यवस्था भारत के लिए उल्टा भी पड़ सकता है.


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