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भारत के किसी भी शहर के पब्लिक एरिया में बाहर निकलें- फिर वह चाहे रीटेल दुकानें हों या ट्रेन स्टेशन- ऐसा लगता है
चेतन भगत
भारत के किसी भी शहर के पब्लिक एरिया में बाहर निकलें- फिर वह चाहे रीटेल दुकानें हों या ट्रेन स्टेशन- ऐसा लगता है जैसे कोविड नाम की कोई चीज कभी हुई ही नहीं थी। ठीक है, कुछ लोग अब भी मास्क पहने दिख जाते हैं, अलबत्ता उनमें भी अधिकतर के मास्क नाक या मुंह के नीचे लटके रहते हैं। कहीं किसी कोने में आपको सोशल डिस्टेंसिंग या कोविड प्रोटोकॉल्स के पालन की अपील करने वाला कोई फटा-पुराना पोस्टर भी दिखलाई दे सकता है।
लेकिन कुल-मिलाकर भारत के लोग अब कोविड को पीछे छोड़ चुके हैं। वे ऑफिस जा रहे हैं और शादियां अटेंड कर रहे हैं। वे शॉपिंग कर रहे हैं या बाहर जाकर कुछ खा रहे हैं। वे बस, ट्रेन, फ्लाइट पकड़ रहे हैं। मोबिलिटी डाटा को गूगल करें तो आप पाएंगे कि आज अधिकतर पब्लिक स्पेस उतने ही बिजी हो चुके हैं, जितने कि वो कोविड से पहले हुआ करते थे। जाहिर है, कोविड अभी गया नहीं है। केस बढ़ रहे हैं, भले ही मौतों की संख्या नहीं बढ़ रही।
कोविड आने वाले कल में क्या करेगा, इसका पूर्वानुमान लगाना नामुमकिन है। लेकिन अभी तो हम फिर से पहले जैसे हो गए हैं। दूसरी तरफ हमारा पड़ोसी देश चीन एक भिन्न परिस्थिति का सामना कर रहा है। वहां कोविड के मामले तेजी से बढ़े हैं और कठोर लॉकडाउन लौट आया है। चीन ने दो साल तक कोविड को अंकुश में रखा था, जबकि दुनिया उससे जूझ रही थी। लेकिन चीन की तथाकथित जीरो-कोविड पॉलिसी काम नहीं आई।
ठीक उसी तरह, जैसे वह दुनिया में कहीं भी काम नहीं आई है- न्यूजीलैंड से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक। जिन देशों ने कठोरता से कोविड-नियमों का पालन किया था, उन्हें भी देर-सबेर महामारी की लहर का सामना करना पड़ा। जिन देशों को समय मिला, वे अच्छे-से तैयारी कर सके और वैक्सीनेशन कर सके, लेकिन आखिरकार यह वायरस पूरे सिस्टम से होकर गुजरा ही, इससे बचा कोई नहीं। और अब वह चीन के सिस्टम से होकर गुजर रहा है।
केसेस बढ़ेंगे और फिर घटने लगेंगे, जैसा कि दुनिया के हर कोने में हुआ है। भारत और चीन के बीच चाहे जैसे रिश्ते हों, हम तो यही कामना करेंगे कि चीन जल्द से जल्द रिकवर करे। पर अभी तो वह एक दु:स्वप्न से होकर गुजर रहा है। शंघाई जैसा महानगर- जिसकी आबादी 2.6 करोड़ है- पूर्णतया बंद है और लोग अनेक सप्ताह से घरों में कैद हैं। अनेक दूसरे शहरों की भी यही कहानी है। यह कारोबारियों के लिए भी कठिन समय है।
इसने सप्लाई चेन की समस्याओं को भी उजागर कर दिया है, जो आज पूरी दुनिया के लिए बड़ा प्रश्न बन चुका है। कामगार फैक्टरियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, उत्पादन ठप हो गया है और लोग जरूरत की चीजों के लिए तरस रहे हैं। अमेरिका में भी अनेक जरूरी आइटम्स के लिए लोगों को लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है। लेकिन हर समस्या अपने साथ एक अवसर भी लेकर आती है। किसी एक की समस्या किसी दूसरे के लिए उस समस्या को सुलझाने का अवसर सिद्ध हो सकती है।
आज भारत के पास ग्लोबल सप्लाई चेन की समस्याओं का समाधान है। चीन अपनी दक्षता, उत्पादकता, उचित लागतों और बेहतरीन बुनियादी ढांचे के चलते दुनिया का मैन्युफेक्चरिंग-किंग बन गया था। पूरी दुनिया चीनी माल खरीदने के लिए आतुर हो गई थी। लेकिन आज चीन पर वही निर्भरता सबके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। अब जाकर दुनिया की कम्पनियां उस बात को सुनने के लिए तैयार हैं, जिसे हम वर्षों से कह रहे हैं- मेक इन इंडिया। लेकिन हमें किसी भुलावे में नहीं रहना चाहिए।
चीन का मौजूदा संकट वर्षों में एक बार निर्मित होने वाली परिस्थिति है। इसलिए भारत के पास खुद को चीन के विकल्प के रूप में पेश करने के लिए सीमित मात्रा में समय और अवसर हैं। कोविड और लॉकडाउन देर-सबेर चीन में भी खत्म होंगे। तब दुनिया चीन की मैन्युफेक्चरिंग समस्याओं को उसी तरह भूल जाएगी, जैसे आज भारत की भीड़-भरी शादियों में शामिल होने वाले अंकल्स यह भूल गए हैं कि पिछले साल कोविड ने क्या तबाही मचाई थी।
जैसे ही सस्ता और टिकाऊ चीनी माल फिर से बाजार में आने लगेगा, दुनिया अपनी परिपाटी पर लौट आएगी। इसलिए निवेशकों को अपनी ओर खींचने के लिए भारत को आज ही कुछ करना होगा। पूरी दुनिया सिर खुजा रही है कि पिछले हफ्ते उन्हें जहाज भरकर जिन स्नीकर्स या इंजिन पार्ट्स की जरूरत थी, वह उन्हें कहां से मिलेंगे। कुछ करने का यही सही समय है। भारत को अपने यहां अधिक कम्पनियों को आकर्षित करने के लिए एक मेगा-प्लान की घोषणा करनी चाहिए।
ये सच है कि मैन्युफेक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए पहले ही कई योजनाओं की घोषणा की जा चुकी है। आज एप्पल भारत में उत्पादन कर रहा है। टेस्ला को मनाया जा रहा है। लेकिन यह विशिष्ट अवसर फिर नहीं मिलने वाला, जब चीन में संकट है और हम बिजनेस के लिए पूरी तरह से खुले हुए हैं।
दुनिया की हर कम्पनी को भारत में मैन्युफेक्चरिंग सेटअप लगाने को प्रेरित करने के लिए हम आज क्या कर रहे हैं? क्या हम राह में आने वाली रूकावटों को साफ कर रहे हैं? क्या हमारे वरिष्ठ अधिकारीगण को इसके लिए प्रेरित किया जाता है कि वे कुछ नया करें, क्योंकि मुश्किल हालात में काम बंद कर देने के लिए तो हमारे निरीक्षक और नौकरशाह हमेशा तत्पर रहते हैं। क्या हम कुछ नौकरशाहों का मूल्यांकन इस बात के लिए नहीं कर सकते कि उन्होंने कितनी नई कम्पनियों को चालू करवाने में योगदान दिया है?
बड़ा है मैन्युफेक्चरिंग का स्कोप
यह चाइना वर्सेस इंडिया की बहस नहीं है। चीन की अपनी मैन्युफेक्चरिंग ताकत है और वह इस क्षेत्र में एक पॉवरहाउस बना रहेगा। लेकिन आज दुनिया में मैन्युफेक्चरिंग का स्कोप इतना बड़ा है कि भारत भी उसमें एक बड़ा हिस्सा पा सकता है। हम इसके हकदार हैं। दुनिया को बताने का यही समय है कि हम बांहें फैलाकर आपका स्वागत कर रहे हैं, हम बिजनेस करने के लिए तैयार हैं।
Rani Sahu
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