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- चीन का कर्ज, जरूरी...
नवभारत टाइम्स: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीन दिवसीय श्रीलंका यात्रा के दौरान बिम्सटेक देशों के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भी शिरकत की, लेकिन यह दौरा द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से भी खासा महत्वपूर्ण रहा। विदेश मंत्री ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ बातचीत में उन्हें आश्वस्त किया कि भारत उनके देश को आर्थिक मदद देना जारी रखेगा। ध्यान रहे, श्रीलंका इन दिनों अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वहां जरूरी वस्तुओं की जबर्दस्त किल्लत हो गई है, खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं।
पेट्रोल-डीजल की कमी का आलम यह है कि पेट्रोल पंपों पर सुरक्षाकर्मी तैनात करने पड़ रहे हैं। विदेशी मुद्रा की कमी के चलते सरकार के लिए पेट्रोल और खाद्य पदार्थों के आयात का भुगतान करना मुश्किल हो गया है। इन सबके पीछे एक बड़ी वजह तो बेशक कोरोना महामारी ही रही। पर्यटन यहां आमदनी का एक बड़ा स्रोत है और महामारी के इस दौर में पर्यटकों का आना लगभग ठप रहा। लेकिन थोड़ी बारीकी से देखें तो समस्या की पृष्ठभूमि महामारी से काफी पहले ही तैयार हो गई थी। 2005 से 2015 के बीच श्रीलंका ने विदेशी कर्ज लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की नीति अपनाई। इस दौरान खास तौर पर चीन से बड़े पैमाने पर कर्ज लिए गए और हंबनटोटा मेगा पोर्ट सिटी जैसी बड़ी और खर्चीली परियोजनाएं शुरू की गईं। मगर ये परियोजनाएं उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दे पाईं। नतीजा यह कि श्रीलंका कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस गया।
श्रीलंका पर चीन का ही करीब 300 करोड़ डॉलर का कर्ज है। ऐसी स्थिति में कोरोना महामारी का कठिन दौर आ गया। रही-सही कसर यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। दिलचस्प बात यह कि चीन भले ही श्रीलंका को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाता रहा हो, मौजूदा संकट के दौर में मदद भारत ही कर रहा है। कई रीन्यूएबल एनर्जी प्रॉजेक्ट्स जो पहले चीन को दिए गए थे, उन्हें अब भारत आगे बढ़ा रहा है। पिछले कुछ महीनों में ही भारत उसे करीब 240 करोड़ डॉलर की वित्तीय मदद मुहैया करा चुका है।
भारत की पारंपरिक नीति और दोनों देशों के पुराने करीबी रिश्तों के मद्देनजर संकट काल में इस पड़ोसी देश की हर संभव मदद करना उचित भी है। लेकिन ध्यान में रखने की बात यह है कि इन दिनों श्रीलंका में आंतरिक असंतोष चरम पर है। लोग सरकार की नीतियों से और कोरोना काल की चुनौतियों से निपटने के उसके अंदाज से खासे नाराज हैं। खासकर राजपक्षे परिवार इन असंतुष्ट तत्वों के निशाने पर है। ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत की मदद का वहां कोई और मतलब न निकाला जाने लगे। यह बात सबके लिए और हर स्तर पर स्पष्ट रहनी चाहिए कि भारत श्रीलंका के लोगों की मदद कर रहा है, राजपक्षे परिवार की नहीं।