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- चीन का इलाज
Written by जनसत्ता: 'चीन की चाल' (संपादकीय, 23 मई) पढ़ा। कुछ समय पहले गलवान घाटी में मुंह की खाने के बावजूद चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में पैगोंग झील पर दूसरा पुल बनाना और साथ में लद्दाख क्षेत्र से चीनी सेनाओं के हटाने के मामले को लेकर बातचीत जारी रखकर भारत को बेवकूफ बनाना कटु सत्य है! 1962 से चीन ने भारत के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। इसके अलावा, दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों पर अपना अधिकार जता कर चीन लगातार भारत को अपनी आर्थिक तथा सामरिक शक्ति के आधार पर डराने और धमकाने का काम कर रहा है।
चीन एक विस्तारवादी, महत्त्वाकांक्षी, चालाक, झूठा तथा अहंकारी देश है। उसके भारत के अलावा अन्य कई पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद चल रहे हैं। सभी यह सोच कर उसकी दादागिरी सहन कर लेते हैं कि अगर बातचीत से मामला निपट जाए तो अच्छा है। भारत की भी यही सोच है। लेकिन ऐसा लगता है कि किसी न किसी दिन एशिया के दोनों देशों में सैनिक भिड़ंत होकर ही रहेगी। बेशक चीन सामरिक दृष्टि से काफी मजबूत है। लेकिन चीन को अभी तक यह बात समझ में नहीं आई कि 2022 का भारत 1962 का भारत नहीं है। इस बीच हमने अपने आप को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से इतना विकसित कर लिया है कि चीन को उसका मुंहतोड़ जवाब दे सकें।
चीन का इलाज करने का तरीका यही है कि भारत अपने आप को आर्थिक तौर पर इतना आत्मनिर्भर कर ले कि उसे चीन से किसी चीज का आयात न करना पड़े! चीन हमारे ऊपर इसलिए भी हावी होने की कोशिश कर रहा है कि हम अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए बहुत हद तक उस पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा हमें अपने आप को सामरिक दृष्टि से और ज्यादा ताकतवर बनाना चाहिए। इसके अलावा भारत को उन देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत करने चाहिए जो चीन के खिलाफ हैं। चीन का साथ देने वाले रूस, उत्तरी कोरिया आदि के साथ संबंध मधुर बनाने चाहिए, ताकि भारत और चीन में टकराव के समय ये देश तटस्थ रहें।
इसके अतिरिक्त भारत को ताइवान, तिब्बत, चीन में मानव अधिकारों के हनन के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाना चाहिए! भारत को क्वाड के सदस्य के तौर पर, जिसमें अमेरिका, जापान तथा आस्ट्रेलिया शामिल है, सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और इसराइल से भी सहयोग प्राप्त करना चाहिए। भारत को समझ लेना चाहिए कि चीन एक जिद्दी तथा बेशर्म देश है! अभी तक भारत चीन की बदतमीजी से बचने के लिए ही प्रयास करता रहा है, लेकिन जब तक गलवान घाटी की तरह की तरह पूर्वी लद्दाख के पैगोंग झील पर दूसरा पुल बनाने तथा दोनों देशों के सीमावर्ती प्रदेशों में अवैध तौर पर गांव बसाने तथा अन्य निर्माण कार्यों के खिलाफ हम बराबर की कार्रवाई नहीं करेंगे, तब तक चीन हमें डरपोक, दब्बू और कमजोर देश ही समझता रहेगा!
नवजोत सिंह सिद्धू के चौंतीस वर्ष पुराने सड़क पर क्रोधित होकर मारपाटी के मामले में न्यायपरक फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने देश में बहुत अच्छा उदहारण प्रस्तुत किया है। अच्छी बात यह है की दोषी पाए गए सिद्धू ने भी न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए, अविलंब आत्मसमर्पण करके उचित मिसाल पेश की है।
सर्वोच्च न्यायालय ने साबित कर दिया है कि कानून की नजर में सभी अपराधी एक समान हैं और उनके रुतबे या रसूख के आधार पर अपराधियों में फर्क नहीं किया जा सकता। देश की अदालतें अगर किसी व्यक्ति की राजनीतिक या सामाजिक हैसियत के हिसाब से उसके अपराध का आकलन करने लगें तो सामान्य नागरिकों में कानून के प्रति क्या सम्मान रह जाएगा? कानून सबके लिए बराबर है, यह संदेश और सिद्धांत स्पष्ट होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में अपने निर्णय से स्पष्ट कर दिया है कि सड़क पर चलते समय अपने रुतबे को साथ लेकर चलने के बजाय एक सभ्य, आदर्श और जिम्मेदार नागरिक का अपना धर्म निभाना हम सबका प्रथम कर्तव्य है।